For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

न जाने कब चाँद निकलेगा

जब सूरज चला जाता है
अस्ताचल की ओट में
और चाँद नहीं निकलता है.
दिखती है उफक पर
पश्चिम दिशा की ओर
लाल लकीरें.
पूरब में काली आँखों वाला राक्षस
खोलता है मुंह
लेता है जोर की साँसे
चलती है तेज हवाएं.
लाल लकीरें डूब जाती हैं,
फिर सब हो जाता है प्रशांत.
मैं पाता हूँ स्वयं को
एक अंध विवर में
हो जाता हूँ विलीन
तम से एकाकार .
खो जाता है मेरा वजूद.
न जाने कब चाँद निकलेगा.

..नीरज कुमार नीर .

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 670

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Neer on June 21, 2014 at 4:43pm

आदरणीय विजय निकोरे जी आपका हार्दिक आभार ,

Comment by Neeraj Neer on June 21, 2014 at 4:43pm

धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी 

Comment by vijay nikore on June 20, 2014 at 7:46am

मनोस्थिति की सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई, आदरणीय नीरज जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 19, 2014 at 11:31pm

वाह ! .. बहुत सुन्दर !

Comment by Neeraj Neer on June 19, 2014 at 7:56pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी आपके इस खूबसूरत टिप्पणी के लिए आपका आभार व्यक्त करता हूँ. 

Comment by Neeraj Neer on June 19, 2014 at 7:54pm

आदरणीया कुंती मुख़र्जी जी कविता पर आकर प्रोत्साहित करने के लिए सादर आभार.. 

Comment by Neeraj Neer on June 19, 2014 at 7:54pm

शुक्रिया आ. मीना पाठक जी 

Comment by Neeraj Neer on June 19, 2014 at 7:53pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आपका आभार. 

Comment by Neeraj Neer on June 19, 2014 at 7:53pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस प्रोत्साहन के लिए आपका हार्दिक आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 19, 2014 at 11:52am

प्रकृति का बहुत खूबसूरत चित्रण होना

सूर्य का अस्त हो जाना और चाँद का न आना...अंध तमस में उजास की किरण को प्रतीक्षारत मन की स्थिति का सुन्दर वर्णन 

हार्दिक बधाई आ० नीरज जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service