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जिसका वो अंश है ……

जिसका वो अंश है ……

कौन है ज़िंदा ?
वो मैं,जो सांसें लेता है
जिसका प्रतिबिम्ब दर्पण में नज़र आता है
जो झूठे दम्भ के आवरण में जीवन जीता है

या

वो मैं जो अदृश्य हो कर भी सबमें समाया है
न जिसकी कोई काया है
न जिसका कोई साया है

कितना विचित्र विधि का विधान है
एक मैं, नश्वरता से नेह करता है
एक मैं, अमरत्व के लिए मरता है
मैं के परिधान में जो मैं ज़िंदा है
वही प्रभु का सच्चा परिंदा है
दुनियावी मैं को दुनियावी इंसान ले जाते हैं
भस्म होने तक उसे शमशान में जलाते हैं
उसकी भस्म गंगा में बहाते हैं
चार आंसूओं से रिश्तों को निभाते हैं
एक वज़ूद को इतिहास बनाते हैं

एक मैं को चार बन्दे नहीं, स्वयं प्रभु ले जाते हैं
उसे भस्म नहीं, बल्कि अमर बनाते हैं
उसे पुनर्जन्म का आवरण पहनाते हैं

मैं और मैं का ये चक्र यूँ ही चलता रहता है
एक सदा भस्म होता है एक अमरत्व पाता है
मगर जीव इस भेद को कहाँ समझ पाता है
बस साँसों के आने-जाने को ही वो जीवन समझता है
जिस दिन वो मैं और मैं का भेद पा जाएगा
सच, वो जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति पा जाएगा
फिर जिसका वो अंश है उसमें समा जाएगा

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on June 10, 2014 at 2:48pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय  जी रचना पर आपकी  आत्मीय  प्रशंसा का हार्दिक आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 8, 2014 at 9:10pm

द्वैत को सुन्दर शब्द मिले हैं आदरणीय.

हार्दिक बधाइयाँ.

Comment by Sushil Sarna on June 5, 2014 at 12:16pm

आदरणीय  विजय मिश्र जी   रचना पर आपकी  आत्मीय  प्रशंसा का हार्दिक आभार

Comment by विजय मिश्र on June 4, 2014 at 6:36pm
बहुत सुंदर , एक मैं में निहित मैं द्वय की अत्यन्त प्रभावी अभिव्यक्ति , बधाई भाई सुशीलजी |
Comment by Sushil Sarna on June 4, 2014 at 6:05pm

 आदरणीय गिरिराज भंडारी जी   रचना पर आपकी  आत्मीय  प्रशंसा का हार्दिक आभार

Comment by Sushil Sarna on June 4, 2014 at 6:03pm

 आदरणीया अन्नपूर्णा  जी   रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 4, 2014 at 9:45am

आदरणीय , शरीर और आत्मा की वास्त्विकता बहुत सुन्दर बयान किया है आपने , बधाइयाँ ॥

Comment by annapurna bajpai on June 4, 2014 at 7:47am

बहुत बढ़िया !! बधाई आपको इस रचना के लिए । 

Comment by Sushil Sarna on June 2, 2014 at 10:17am

आदरणीया लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला जी  रचना पर आपकी मुक्त आत्मीय  सराहना का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on June 2, 2014 at 10:16am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी  रचना पर आपकी आत्मीय  सराहना का हार्दिक आभार। 

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