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इंसान का कद

इंसान का कद इतना ऊँचा होगया

कि इंसानियत उसमें अब दिखती नहीं

दिल इतना छोटा होगया कि

भावनाएं उसमें टिक पाती नहीं

जिन्दगी कागज़ के फूलों सी

सजी संवरी दिखती तो है

पर प्रेम प्यार और संवेदनाओ

की कहीं खुशबू नहीं

चकाचौंध भरी दुनिया की इस भीड़ में

 इतना आगे निकल गया कि

अपनों के आँसू उसे अब दिखते नहीं

आसमां को छूने की जिद्द में

पैर ज़मी पर टिकते नहीं

सिवा अपने सब छोटे-छोटे

कीड़े मकोड़े से दिखते हैं उसे

कुचल कर उन्हें आगे बढ़ो

यही उसकी 

नियति बन गई अब 

ऐसा कद भी किस काम का

जिससे माँ का आँचल छोटा पड़ जाए

 पिता गर्व से उन

कंधों को थपथपा भी न सके

जिस पर बैठ , वह कभी बड़ा हुआ था

ऐसा कद भी किस काम का…?

 *****************

  महेश्वरी कनेरी

मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Meena Pathak on May 18, 2014 at 8:48pm

बहुत सुन्दर चित्रण .. बधाई 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 18, 2014 at 8:20pm

ऐसा कद भी किस काम का

जिससे माँ का आँचल छोटा पड़ जाए

 पिता गर्व से उन

कंधों को थपथपा भी न सके

जिस पर बैठ , वह कभी बड़ा हुआ था

ऐसा कद भी किस काम का…?

लाजवाब!

Comment by Maheshwari Kaneri on May 17, 2014 at 3:56pm

   उत्साहवर्धन के लिए आप सभी का आभार..

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 16, 2014 at 5:13pm

वर्तमान परिस्थिति का बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है आपने आदरणीया यथार्थ लिखा है बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 16, 2014 at 4:39pm

सुन्दर भाव रचित सार्थक रचना प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया महेश्वरी कनेरी जी 

Comment by coontee mukerji on May 15, 2014 at 7:40pm

ऐसा कद भी किस काम का

जिससे माँ का आँचल छोटा पड़ जाए

 पिता गर्व से उन

कंधों को थपथपा भी न सके

जिस पर बैठ , वह कभी बड़ा हुआ था

ऐसा कद भी किस काम का…?.....एक सार्थक रचना.....समाज के उस दंभी वर्ग पर एक ज़ोरदार तमाचा. हार्दिक बधाई.महेश्वरी जी.

Comment by Sushil Sarna on May 15, 2014 at 6:02pm

अंतर्मन की भावनाओं की बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति प्रस्तुत  की है आपने आदरणीया - हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 15, 2014 at 5:37pm

आदरणीया महेश्वरी जी आपको इस रचना के कथ्य के लिये हार्दिक बधाई
सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 15, 2014 at 5:03pm

आदरणीया माहेश्वरी कनेरी जी 

यदि कोइ इंसान अपने को इतना ऊंचा समझने लगे की इंसानियत ही भुला दे और उसके कद के आगे माता पिता और भाव युक्त हृदय भी बहुत छोटे/तुच्छ हो जाएं ..तो निश्चय ही जीवन अपने सार्थक मायने खोने लगता है. इस सार्थक कथ्य को स्वर देने के लिए बधाई ....लेकिन आपसे प्रस्तुतियों में थोड़ी और मेहनत अवश्य ही अपेक्षित है 

शुभकामनाएं 

Comment by Shyam Narain Verma on May 15, 2014 at 3:23pm
बहुत  ही सुन्दर भावात्मक प्रस्तुति .. बधाई ...............

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