For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खुशबू के पल भीने से/नवगीत/कल्पना रामानी

रंग चले निज गेह, सिखाकर

मत घबराना जीने से।

जंग छेड़नी है देहों को,

सूरज, धूप, पसीने से।

 

शीत विदा हो गई पलटकर।

लू लपटें हँस रहीं झपटकर।

वनचर कैद हुए खोहों में,

पाखी बैठे नीड़ सिमटकर।

 

सुबह शाम जन लिपट रहे हैं,

तरण ताल के सीने से।

 

तले भुने पकवान दंग हैं।

शायद इनसे लोग तंग हैं।

देख रहे हैं टुकुर-टुकुर वे,

फल, सलाद, रस के प्रसंग हैं।

 

मात मिली भारी वस्त्रों को,

गात सज रहे झीने से।

 

गोद प्रकृति की हर मन भाई।

दुपहर एसी कूलर लाई। 

बतियाती है रात देर तक,

सुबह गीत गाती पुरवाई।

 

बाँट रहे गुल बाग-बाग में,

खुशबू के पल भीने से।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 750

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on April 5, 2014 at 9:45am

उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय बैद्यनाथ जी

Comment by Saarthi Baidyanath on April 4, 2014 at 11:09pm

बहुत ही प्रभावी कलमकारी ...आनंद्तिरेक हूँ ..वाह ! बहुत सुन्दर व पठनीय भी 

शीत विदा हो गई पलटकर।

लू लपटें हँस रहीं झपटकर।

वनचर कैद हुए खोहों में,

पाखी बैठे नीड़ सिमटकर।

 

सुबह शाम जन लिपट रहे हैं,

तरण ताल के सीने से।.....क्या कहने !

Comment by वेदिका on April 4, 2014 at 10:41pm
आपके अपनेपन से अभिभूत हूँ दीदी। आपके अपनत्व में सुरक्षित महसूस करती हूँ।
Comment by कल्पना रामानी on April 4, 2014 at 9:37pm

प्राची जी, आपने जो भी गलतियाँ बताईं, यह  लापरवाही के कारण ही है। साज तो टंकण की अशुद्धि है, और जंग बिलकुल स्त्रीलिंग है, सब मेरी जल्दबाज़ी के कारण ही होता है।  मैं अभी दुरुस्त कर देती हूँ। आपका हार्दिक आभार। /सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 4, 2014 at 7:31pm

बहुत सहजता से ग्रीष्म ऋतु के आगमन को, उसकी छोटी छोटी बारीकियों को नवगीत में समेटा है... 

सुबह शाम जन लिपट रहे हैं,

तरण ताल के सीने से।.......................वाह! तरण ताल के सीने से ,.इस पंक्ति का जवाब नहीं 

मात मिली भारी वस्त्रों को,

गात साज रहे झीने से।...................मात्रा एक बढ़ रही है ...शायद साज को सज लिखा हो आपने 

और 

जंग छेड़ना है देहों को,.....................जंग के साथ छेड़नी शब्द प्रयुक्त होगा क्योंकि जंग स्त्रीलिंग संज्ञा है 

सूरज, धूप, पसीने से।

सादर शुभकामनाएं 

Comment by कल्पना रामानी on April 4, 2014 at 2:13pm

गीतिका जी, मुझे तो आपको यहाँ देखकर आज बहुत ही अच्छा महसूस हो रहा है। काफी समय से आप अनुपस्थित रही हैं। फेसबुक की मित्र सूची से जब आपको गायब देखा तो बहुत परेशान हो गई थी, आपको वेब पर  बहुत खोजा। न जाने कैसे अनदेखे रिश्ते दिलों को जोड़ देते हैं। खैर, आज बहुत प्रसन्न हूँ। गीत पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद। 

Comment by वेदिका on April 4, 2014 at 11:31am
अहा! मनभावन गीत लिखा आपने। हल्का फुल्का और मधुर गीत, गर्मी की अगुआई करता हुआ, सर्दी को विदा देता हुआ, गेयता भी खूब है।
खूब खूब बधाई आO कल्पना दीदी
सादर
Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 3, 2014 at 10:22pm

आदरणीया कल्पना जी

हिन्दी पर आपका अधिकार है..और आप बहुत सुंदर लिखती है.

तले भुने पकवान दंग हैं।
शायद इनसे लोग तंग हैं।
देख रहे हैं टुकुर-टुकुर वे,
फल, सलाद, रस के प्रसंग हैं।
बड़े ही सहज ढंग से लिखा है आपने..पढ़कर बहुत अच्छा लगा..

Comment by कल्पना रामानी on April 3, 2014 at 10:01pm

आदरणीय श्याम नरेन जी,टिप्पणी द्वारा प्रोत्साहित करने के लिए सादर धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on April 3, 2014 at 9:59pm

आदरणीय शिज्जु जी, उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"इस ज़र्रा नवाज़ी का सहृदय शुक्रिया आदरणीय"
1 minute ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आपके मंच के बेहद महान आदरणीय सदस्य सौरभ जी में ये अहं नहीं तो और क्या है_ 1  समर साहब से तीन…"
6 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आभार। इंगित मिसरे पर…"
30 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई आजी तमाम जी , सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
36 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"बेहद दिलकश ग़ज़ल ! शानदार! ढेरो दाद।"
1 hour ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"//आपको फिलहाल कोई ऐसी किताब पढ़नी चाहिए जो आपका अहं कम कर सके//  आज़ी तमाम महोदय ! इस…"
1 hour ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"//उसकी तारीफ़ में जो कुछ भी ज़ुबां मेरी कहेउसको दरिया-ए-मुहब्बत की रवानी लिखना// वाह! नयापन है इस…"
1 hour ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ! अच्छी ग़ज़ल से मुशाइरा आरंभ किया आपने। बहुत बधाई! // यूँ वसीयत में तो बेटी…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"हर कहानी को कई रूप रुहानी लिखना जाविया दे कहीं हर बात नूरानी लिखना मौलवी हो या वो मुल्ला कहीं…"
2 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"सहृदय शुक्रिया आदरणीय ग़ज़ल पर इस ज़र्रा नवाज़ी का"
3 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"सहृदय शुक्रिया आदरणीय दयाराम जी ग़ज़ल पर इस ज़र्रा नवाज़ी का"
3 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"सादर आदरणीय सौरभ जी आपकी तो बात ही अलग है खैर जो भी है गुरु जी आदरणीय समर कबीर ग़ज़ल के उस्ताद हैं…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service