For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 
प्रति चरण सोलह-सोलह मात्राओं का ऐसा छंद है जिसके कुल चार चरण होते हैं. यानि प्रत्येक चरण में सोलह मात्रायें होती हैं.
चौपाई के दो चरणों को अर्द्धाली कहते हैं. यह अति प्रसिद्ध छंद है.

इसका चरणांत जगण (लघु गुरु लघु यानि ।ऽ। यानि 121) या तगण (गुरु गुरु लघु यानि ऽऽ। यानि 221) से नहीं होता. यानि चरणों के अंत में किसी रूप में गुरु पश्चात तुरत एक लघु न आवे.

इस लिये चरणांत गुरु गुरु (ऽऽ यानि 22) या लघु लघु गुरु (।।ऽ यानि 112) या गुरु लघु लघु (ऽ।। यानि 211) या लघु लघु लघु लघु (।।।। यानि 1111) से होता है.

1. इस छंद में कलों के संयोजन पर विशेष ध्यान रखा जाता है. यानि द्विकल या चौकल के बाद कोई सम मात्रिक कल अर्थात द्विकल या चौकल ही रखते हैं.

2. विषम मात्रिक कल होने पर तुरत एक और विषम मात्रिक कल रख कर सम मात्रिक कर लेते हैं. यह अनिवार्य है. यानि दोनों त्रिकलों को साथ रखने से षटकल बन जाता है जो कि सम मात्रिक कल ही होता है.

3. किसी त्रिकल के बाद कोई सम मात्रिक कल यानि द्विकल या चौकल किसी सूरत में न रखें.

4. यह अवश्य है, कि किसी त्रिकल के बाद का चौकल यदि जगण (लघु गुरु लघु यानि ।ऽ। यानि 121) के रूप में आ रहा हो तो कई बार क्षम्य भी हो सकता है. क्यों कि जगण के पहली दो मात्राएँ उच्चारण के अनुसार त्रिकल का ही निर्माण करती हैं.
जैसे, राम महान कहें सब कोई .. .
 
यहाँ, राम (21) यानि त्रिकल के बाद महान (121) का चौकल आता है लेकिन इसके जगण होने के कारण महान के महा से राम का षटकल बन जाता है तथा महान का बचा हुआ अगले शब्द कहें (12) के त्रिकल के साथ चौकल (न-कहें) बनाता हुआ आने वालों शब्दों सब और कोई के साथ प्रवाह में आजाता है.
यानि उच्चारण विन्यास हुआ -
राम महा - न कहें - सब - कोई .. अर्थात
षटकल - चौकल - द्विकल - चौकल .. इस तरह पूरा चरण संयत रूप से सम मात्रिक शब्दों का समूह हो जाता है.

कलों के विन्यास के अनुसार निम्नलिखित व्यवहार याद रखना आवश्यक है :
1. सम-सम सम-सम सम रखते हैं .. कुल 16 मात्राएँ
2. विषम-विषम पर सम रखते हैं .... . कुल 16 मात्राएँ
3. विषम-विषम पर शब्द रखेंगे .... .... कुल 16 मात्राएँ

चौपाई छंद के समकक्ष पादाकुलक छंद आता है जिसके प्रत्येक चरण में चार चौकल समूह बनते हैं. पादाकुलक छंद के लिए यह अनिवार्य शर्त है. अर्थात हर पादाकुलक चौपाई छंद ही है जबकि हर चौपाई पादाकुलक नहीं हो सकती.
इस विषय पर गहराई से आगे के आयोजनों में प्रकाश डालेंगे जब अन्य सोलह मात्रिक छंदों चर्चा होगी.

उदाहरणार्थ कुछ चौपाइयाँ :
छाता छाता मेरा छाता । बादल जैसा छाया छाता ॥
आरे बादल काले बादल । गर्मी दूर भगा रे बादल ॥ ........ ... . ..... (अज्ञात)

या,
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर । जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ॥
राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनि पुत्र पवन सुत नामा ॥ .... . (तुलसी)

या,
दैहिक दैविक भौतिक तापा । राम राज नहिं काहुँहि व्यापा ॥
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। रहहिं स्वधर्म निरत स्रुति नीती॥ ...... (तुलसी)

आगे, कुछ कहने के पूर्व मैं यह कहता चलूँ  कि चौपाई में कई लोगों के लिए चरण और पद अक्सर गड्डमड्ड हो जाते हैं. कारण कि, तुकान्त पंक्तियों के अपने-अपने भागों में कोई यति नहीं होती.
यथा,
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ।  जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ॥
<-----------चरण--------------->।<------------चरण-------------------->

<------------------------------पद/अर्द्धाली--------------------------------->
उपरोक्त एक-एक पंक्ति को लोग अलग-अलग यानि दो चरणों की तरह बताते हैं. यानि, उपरोक्त एक पद में दो चरण हुए. लेकिन, परेशानी तो तब होती है जब कुछ विद्वान इन पंक्तियों को दो पदों का होना बताते हैं.  

इसे दोहा छंद के माध्यम से इसे समझना उचित होगा.
दोहा छंद के एक पद में दो चरण होते हैं. यानि एक पद के बीच एक यति आती है जो किसी एक पद को दो भागों में बाँटती है. ये दो भाग अलग-अलग चरण कहलाते हैं.
किन्तु, जैसा कि स्पष्ट किया गया है, चौपाई के मामले में यह बात नहीं होती. इसकी दो पंक्तियों में तुकान्तता तो होती है लेकिन उन पंक्तियों में यति नहीं आती. यहाँ तुकान्त ही यति है. सारी उलझन यहीं और इसी कारण से है.

मैं ऐसे इसलिए कह रहा हूँ कि अगल-अलग छंद-विद्वानों ने चरण और पद जैसे शब्दों को अपने-अपने ढंग से इस्तमाल किया है.

तो हमें किसी एक स्कूल को मजबूती से पकड़े रहना होगा. तथ्य के एक बार स्पष्ट हो जाने के बाद फिर कोई परेशानी नहीं होती. जैसे, गुरुवार कहिये या वीरवार मतलब वृहस्पतिवार से है.

अब आइये, चौपाइयों की असली गिनती पर.
इस लेख में कहा ही गया है कि दो चरणों की अर्द्धाली होती है. यानि, यह आधी चौपाई होती है.

जैसे,
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ।
जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ॥
उपरोक्त दो चरणों की हुई एक अर्द्धाली. यही एक पद भी हुआ.
इस तरह से आप देखियेगा कि हनुमान चालीसा में कुल 80 पंक्तियाँ यानि 40 अर्द्धालियाँ हैं. इ

इन्हीं 40 पदों के कारण चालीसा नाम पड़ा है.

**********************

ध्यातव्य : आलेख उपलब्ध जानकारियों के आधार पर है.

Views: 47051

Replies to This Discussion

भारतीय छंद समूह में चौपाई छंद से सम्बंधित ऐसे सुन्दर और ज्ञानवर्धक आलेख की कमी महसूस हो रही थी. आपने यह आलेख मंच पर लाकर मुझ जैसे असंख्य छंद प्रेमियों पर बहुत बड़ा उपकार किया है. यह आलेख इस समय और भी बहुत लाभप्रद हो गया है, क्योंकि इसी महीने के "चित्र से काव्य तक" छन्दोत्सव के दो छंदों में एक छंद चौपाई भी है. मेरा मानना है कि इससे आयोजन के सभी प्रतिभागी अवश्य लाभान्वित होंगे. इस अति विशिष्ट और सामायिक आलेख हेतु मेरी हार्दिक बधाई निवेदित है आ० सौरभ भाई जी.

आपका उत्साहवर्द्धन मेरी पूँजी है, आदरणीय योगराजभाईजी. यह अवश्य है कि छंदों को लेकर इस मंच पर तेज़ी से परिवर्तन हो रहा है. लेकिन यह परिवर्तन एकांगी नहीं हो सकता. पाठकों और अभ्यासकर्ताओं का उत्फुल्ल सहयोग न मिला तो यह प्रयास सखे कुएँ  में लगायी गयी आवाज़ भर हो कर रह जायेगा.

सादर

आदरणीय सौरभ भाई , आपके भारतीय छंद सिखाने के सतत प्रयासों को मेरा विनम्र नमन ॥ सुन्दर , विस्तार  से जानकारी साझा करने के लिये आपको बहुत साधुवाद , और बधाइयाँ ॥

सादर धन्यवाद, आदरणीय गिरराज भाईजी

आदरणीय सौरभ सर आपके द्वारा द्विकल त्रिकल व्यवस्था बताये जाने से इन छंदों पर काम सरल हो जाएगा यद्यपि अभी मैंने प्रयास शुरू नहीं किया है उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ |लेकिन करना है यह तय है |
सर एक बात को लेकर मन में संदेह है वह यह कि चौपाई में चार चरण होते हैं क्योंकि रामचरित मानस में अनेक स्थानों पर दोहे से दोहे के बीच चरणों के चार-२ के समूह नहीं बनते यह बात मैनें नेट पर किसी और मंच पर भी पूछी थी तो मुझे कहा गया कि आजकल उपलब्ध मानस की प्रतियों में काफी गलतियाँ हैं ...यह बात स्वीकार्य है किन्तु चालीसा...इसमें अस्सी चरण हैं इन्हें २ से विभाजित करने पर चालीस (चालीसा )बनता है या १६० चरण होने पर चालीसा बनेगा या चालीस चरण होने चाहिए | चार चरणों के समूह में कथन का सातत्य भी आवश्यक तौर पर नहीं मिलता |मेरे पास उपलब्ध छंद सम्बन्धी पुस्तकों में चौपाई के चरण सम्बन्धी बात नहीं दी गयीहै जबकि अन्य छंदों में दी गयी है|

आदरणीया वन्दनाजी, सर्वप्रथम इस बात के लिए क्षमा कि मैं आपके प्रश्न पर इतने विलम्ब से आ पारहा हूँ. मैं कई कारणों से मंच पर व्यवस्थित उपस्थिति नहीं बना पा रहा हूँ.  खैर.


आपका चौपाई के चरणों या अर्द्धाली से सम्बन्धित प्रश्न समीचीन तो है लेकिन एक बात और भी है जो मुझे प्रतीत हो रहा है. वो ये कि चरण शब्द का सही अर्थ संभवतः आपको स्पष्ट नहीं हुआ है.

लेख के अनुसार, चौपाई के दो चरणों को अर्द्धाली कहते हैं.

कुछ कहने के पूर्व मैं यह कहता चलूँ  कि चौपाई में चरण और पद गड्डमड्ड हो जाते हैं. कारण कि, तुकान्त पंक्तियों के अपने-अपने भागों में कोई यति नहीं होती.
यथा,
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ।  जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ॥

उपरोक्त एक-एक पंक्ति को लोग अलग-अलग चरण कहते हैं. यानि उपरोक्त एक पद के दो चरण हुए. लेकिन, परेशानी तो तब होती है जब कुछ विद्वान इन पंक्तियों को दो पदों का होना बताते हैं.  

दोहा छंद के माध्यम से इसे समझना उचित होगा.
दोहा छंद के एक पद में दो चरण होते हैं. यानि एक पद के बीच एक यति आती है जो किसी एक पद को दो भागों में बाँटती है. ये दो भाग अलग-अलग चरण कहलाते हैं.
किन्तु, जैसा कि स्पष्ट किया गया है, चौपाई के मामले में यह बात नहीं होती. इसकी दो पंक्तियों में तुकान्तता तो होती है लेकिन उन पंक्तियों में यति नहीं आती. तुकान्त ही यति है.

सारी उलझन यहीं और इसी कारण से है.
मैं ऐसे इसलिए कह रहा हूँ कि कई छंद-विद्वानों ने चरण और पद जैसे शब्दों को अपने तौर पर इस्तमाल किया है.

तो हमें किसी एक स्कूल को मजबूती से पकड़े रहना होगा. फिर, तथ्य के एक बार स्पष्ट हो जाने के बाद कोई परेशानी नहीं रह जाती. जैसे गुरुवार कहिये या वीरवार मतलब वृहस्पतिवार से है. :-)))

अब आइये, चौपाइयों की असली गिनती पर.
इस लेख में कहा ही गया है कि चार चरणों की अर्द्धालियों की एक चौपाई होती है. सही है न ?


यानि,
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ।
जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ॥
यह हुई एक चौपाई.      

[ऐडमिन: इस चौपाई को अर्द्धाली पढ़ा जाय. यानि, वस्तुतः इसी गलत वाक्य हो जाने के कारण संवादों और समझ में आगे तमाम दिक्कत आयी है.]

इस तरह से आप देखियेगा कि हनुमान चालीसा में कुल 80 पंक्तियाँ यानि 40 अर्द्धालियाँ हैं. यानि, यथा नाम तथा गुण !!
बस समस्या समाप्त !
सादर
 

माफ़ी चाहती हूँ सर दुस्साहस कर रही हूँ ...किन्तु इसे मेरी जिज्ञासा ही मानियेगा या तो कुछ और स्पष्टीकरण होना चाहिए क्योंकि 

"जय हनुमान ज्ञान गुण सागर । 
जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ॥
यह हुई एक चौपाई". 

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ... यहाँ 16 मात्रा हैं और चरण ? दो ?

जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ॥....यहाँ भी 16 मात्रा...   अब यदि यहाँ अर्द्धाली में  चरण दो माने जाएँ तो एक चौपाई में  चार चरण सिद्ध होते हैं लेकिन  प्रत्येक चरण में सोलह मात्रा  वाली बात सिद्ध नहीं हो पाती

 

सादर निवेदित 

//जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ... यहाँ 16 मात्रा हैं और चरण ? दो ? //

चरण क्यों दो ? दो चरण कैसे हों ? क्या मैंने लिखा है कहीं ? कि, इस पंक्ति के बीच में यति है ? फिर चरण दो कैसे हुए ?

आदरणीया, मैं इसी तथ्य को आपके पूछने पर अपने हिसाब से स्पष्ट करने की कोशिश की है. कृपया फिर से देख लिया जाय.

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर  .. यह एक चरण हुआ.

दो चरणों का अर्थ है - 

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर । .. एक चरण

जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ॥.. दूसरा चरण

यह चौपाई छंद की अर्द्धाली है. यानि,  चौपाई की एक अर्द्धाली हुई.

चालीसा में ऐसे ही जोड़े हैं, जिनकी संख्या चालीस है.

कृपया, मेरे कहे को एक बार फिर से पढ़ें तो शायद तथ्य और स्पष्ट हो.

आदरणीय सर आप कृपया नाराज मत होइये मैं वाकई नहीं समझ पा रही हूँ 

ऊपर मेरे प्रश्न के उत्तर में आपने लिखा है -

//अब आइये, चौपाइयों की असली गिनती पर. 

इस लेख में कहा ही गया है कि दो अर्द्धालियों की एक चौपाई होती है. सही है न ?


यानि,
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर । 
जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ॥
यह हुई एक चौपाई. //

यहाँ चार चरण कैसे गिनेंगे 

और चालीसा के सन्दर्भ में 40 अर्द्धालियों का समूह  बनेगा ...चालीस या 160 चरणों का नहीं.. यही तो मैनें पूछना चाहा था 


//अब आइये, चौपाइयों की असली गिनती पर. 
इस लेख में कहा ही गया है कि दो अर्द्धालियों की एक चौपाई होती है. सही है न ?


यानि,
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर । 
जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ॥
उपरोक्त दो चरणों की हुई एक अर्द्धाली. यही चौपाई छंद हुआ.  
इस तरह से आप देखियेगा कि हनुमान चालीसा में कुल 80 पंक्तियाँ यानि 40 चौपाइयाँ हैं. //

40 चौपाई के चार-२ चरण कैसे गिने जायेंगे ?

यही मेरा मूल प्रश्न था -

//सर एक बात को लेकर मन में संदेह है वह यह कि चौपाई में चार चरण होते हैं क्योंकि रामचरित मानस में अनेक स्थानों पर दोहे से दोहे के बीच चरणों के चार-२ के समूह नहीं बनते.....

चालीसा...इसमें अस्सी चरण हैं इन्हें २ से विभाजित करने पर चालीस (चालीसा )बनता है या १६० चरण होने पर चालीसा बनेगा या चालीस चरण होने चाहिए | //

आदरणीया वन्दनाजी,
आप ऐसा कत्तई न समझें कि मैं नाराज़ हो रहा हूँ. वस्तुतः मैं स्वयं नहीं समझ पा रहा था.. (देखिये, मैं था का प्रयोग कर रहा हूँ..)  कि, आपसी अस्पष्टता किस विन्दु के कारण हो रही है.

वो विन्दु अब दिख गया है, आदरणीया. उस हिसाब से आपको अब तक हुए हर तरह के कष्ट और हुई परेशानियों के लिए मैं हृदय से क्षमा-प्रार्थी हूँ.
लेकिन, मैं उपरोक्त इन सारी बातों को एक सिरे से हटाते हुए बिना शर्त क्षमा-याचना करता हूँ. और समस्त गफ़लत के लिए खुद को उत्तरदायी मानता हूँ.

मैंने जो लिखा -

//जय हनुमान ज्ञान गुण सागर । 
जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ॥
यह हुई एक चौपाई.  //

यहाँ भूलवश चौपाई लिखा जाना ही सारी परेशानियों और ग़फ़लत का सबब बन गया. यह मात्र भूलवश हुआ. इसी टिप्पणी-संवाद को मैंने फिर मूल लेख में जोड दिया. ताकि लेख मुकम्मल रहे.

चौपाई छंद का नाम है न कि मात्र दो चरणों को चौपाई कहते हैं. दो चरणों को पद या अर्द्धाली कहते हैं.


यह अवश्य है कि मैं अपनी टिप्पणियों के माध्यम से बन रहे अपने संवादों में सारी बातें आगे स्पष्ट रूप से कहने का भरपूर प्रयास करता रहा. परन्तु, जिस विन्दु के कारण आपके और आप जैसे पाठकों के मन में अस्पष्टता बन चुकी हो उसकी ओर ध्यान ही नहीं जा रहा था. और मैं स्वयं चकित होता रहा था कि अस्पष्टता का कारण क्या है.

और, आदरणीया आपका संशय मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था.

वस्तुतः पुनः कहूँ, चौपाई एक छंद का नाम है, आदरणीया. इसे हम ध्यान से समझें. और एक अर्द्धाली ही एक पद हैं. यानि एक पद में दो चरण. ऐसे ही दो-दो चरणों से बनी अर्द्धालियों या पदों की कुल चालीस संख्या चालीसा कहलाती है

जल्दबाजी में या लापरवाही में हुई गलती से आपको नाहक ही कष्ट हुआ.

मैं मूल लेख में सुधार कर लेता हूँ.

सादर

आदरणीय सर मैं क्षमा चाहूँगी यदि मेरी भाषा आपको कहीं असंयत प्रतीत हुई हो 

बधाइ। मगर.....

इतना सुंदर आलेख छंद पर लिख कर क्यों अतुकांत वालों को दुखी कर रहे हैं। वे तो बिना मेहनत किये ही कवि बनते फिरते है :))))))

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"ओबीओ का मेल चेक करें "
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय सौरभ सर सादर नमन....दोष तो दोष है उसे स्वीकारने और सुधारने में कोई संकोच नहीं है।  माफ़ी…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"भाई बृजेश जी, आपको ओबीओ के मेल के जरिये इस व्याकरण सम्बन्धी दोष के प्रति अगाह किया था. लेकिन ऐसा…"
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय धामी जी स्नेहिल सलाह के लिए आपका अभिनन्दन और आभार....आपकी सलाह को ध्यान में रखते हुए…"
2 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय गिरिराज जी उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत-बहुत आभार और नमन करता हूँ...आपसे आदरणीय नीलेश…"
2 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय नीलेश जी सर्व प्रथम रचना पटल पे उपस्थिति के लिए आपका हार्दिक आभार....वैसे ये…"
3 hours ago
Admin posted discussions
13 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ सड़सठवाँ आयोजन है।.…See More
14 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
" आदरणीय सुशील सरना जी सादर, जीवन के सत्य पर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थित और मार्गदर्शन के लिए आभार। कुछ सुधार किया है…"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
21 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service