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ग़ज़ल - जीत गाएगी थोड़ा सबर कीजिए - पूनम शुक्ला

2122. 1221. 2212


जा चुकी यामिनी मुश्तहर कीजिए
हो सके अब तो थोड़ा सहर कीजिए

भेज दें गंध जो भी हो आकाश में
गुलशनों को कहीं तो खबर कीजिए

हर तरफ आग ही आग जलती तो है
तान सीना उसे बेअसर कीजिए

झूठ की आज चारों तरफ जीत है
सत्यता की कहानी अमर कीजिए

जुल्म की रात हरदम डराती हमें
जालिमों का खुलासा मगर कीजिए

तीरगी घेर ले गर कभी राह में.
अश्क से फिर न दामन यूँ तर कीजिए.

रेत सी जिन्दगी हाथ आती नहीं
पत्थरों पर लिखा कुछ मगर कीजिए

रोशनी आने से फिर भी शरमाती हो
जानकर इनको बारे- दिगर कीजिए

एक आवाज़ आएगी आकाश से
बात इतनी हमारी अगर कीजिए

इम्तेहाँ हर कदम में तो आते ही हैं
जीत गाएगी थोड़ा सबर कीजिए

जिन्दगी का दुखों से सरोकार है
हो सके गर बसर तो बसर कीजिए

पूनम शुक्ला

मौलिक एवं अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 23, 2014 at 1:20am

आपकी इस ग़ज़ल ने प्रभावित किया है, आदरणीया. हृदय से बधाई और ढेर सारी दाद !

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 6, 2014 at 12:17pm

जीवन का एक फलसफा साझा करती सुन्दर ग़ज़ल हुई है 

हार्दिक बधाई स्वीकारिये आ० पूनम शुक्ला जी 

Comment by Meena Pathak on March 3, 2014 at 9:50am
Bahut khoob....Badhai
Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on March 2, 2014 at 8:27pm

जुल्म की रात हरदम डराती हमें
जालिमों का खुलासा मगर कीजिए................बहुत खूब आदरणीया!

Comment by बृजेश नीरज on March 2, 2014 at 1:56pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2014 at 2:06am

इम्तेहाँ हर कदम में तो आते ही हैं
जीत गाएगी थोड़ा सबर कीजिए

जिन्दगी का दुखों से सरोकार है
हो सके गर बसर तो बसर कीजिए

बहुत सुंदर भावपूर्ण गजल आदरणीया पूनम जी, आपको हार्दिक बधाई

Comment by Sarita Bhatia on March 1, 2014 at 8:29pm

वाह पूनम जी खुबसूरत 

Comment by annapurna bajpai on March 1, 2014 at 1:24pm

बहुत खूब , आ0 पूनम जी  sundआर भाव पूर्ण गजल के लिए बधाई । 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2014 at 7:11am

आदरणीया, पूनम जी एक भावपूर्ण ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई

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