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अपने हाथों के लकीरों को बदल जाऊंगा.............

अपने हाथों के लकीरों को बदल जाऊंगा
यूँ लगा है की सितारों पे टहल जाऊंगा ll

जर्रे-जर्रे में इनायत है खुदाया अब तो
तू है दिल में बसा मैं खुद में ही ढल जाऊंगा ll

रो लिया चुपके जरा हस लिया हमनें ऐसे
ज़ख्म तो दिल के दबाकर मैं बहल जाऊंगा ll

प्यार में गम है मिला दिल हो गया ये घायल
ठोकरें खा के मुहब्बत में संभल जाऊंगा ll

है कशिश तीरे नज़र टकरा गयी हमसे जो
इक छुवन से ही जरा उसके मचल जाऊंगा ll

तू खुदा, बंदा मैं हूँ , हाथ जो सर पे रख दे
" मैं " से यूँ तोड़ के नाते तो पिघल जाऊंगा ll

शायरी मेरी  निशानीं जो रहे बाकी यहाँ
ऐक दिन कह के कहानी मैं भी चल जाऊंगा ll
===============================

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 16, 2014 at 9:50pm

जर्रे-जर्रे में इनायत है खुदाया अब तो
तू है दिल में बसा मैं खुद में ही ढल जाऊंगा ll.........बहुत खूब आदरणीय....जीतनी तारीफ़ की जाय कम.....

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on February 15, 2014 at 2:38pm

आदरणीय गिरिराज जी सादर नमस्कार ....ग़ज़ल की बह्र कुछ इस प्रकार है .....2122/1122/1122/22या 112

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 15, 2014 at 11:34am

आदरणीय अतेन्द्र जी...बेहतरीन ग़ज़ल के लिए तहे दी बधाई ..सादर 

प्यार में गम है मिला दिल हो गया ये घायल
ठोकरें खा के मुहब्बत में संभल जाऊंगा ll..ये शेर मुझे बेहद रूप से पसन् आया .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 15, 2014 at 8:52am

बहुत सुंदर गजल, बधाई आदरणीय अतेन्द्र जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 15, 2014 at 7:54am

आदरणीय अतेन्द्र भाई ,  गज़ल का प्र्यास बहुत अच्छा है , बधाइयाँ ॥ आपने बह्र का उल्लेख नही किया है , इस लिये जादा कुछ नही कह सकता ॥

Comment by Shyam Narain Verma on February 14, 2014 at 5:40pm
बहुत खूब ....
Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on February 14, 2014 at 5:36pm

आप सब सुधी जनों से विनम्र आग्रह है कि मेरी इस ग़ज़ल में अगर कोई खामी तो तो जरूर इंगित करने कि कृपा करें ....हम आपके आभारी रहेगें ...

Comment by Meena Pathak on February 14, 2014 at 3:49pm

बहुत सुन्दर गज़ल .. बधाई आप को 

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