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माधव अपने चाचू के साथ चिड़ियाघर घूम रहा था। बीच में ही चाचू से घर चलने की जिद करने लगा।
चाचू ने कहा- ''बेटा इतनी दूर आए हैं,पूरा ज़ू देख तो लें। जानवरो की गतिविधियां तो तुम्हे बहुत अच्छी लगती है। बड़ी उत्सुकता से देखा करते थे,आज क्या हुआ तुम्हे?''
माधव ने तेवर तीखे करते हुए कहा-''चाचू मैं और आप इन कटघरों में बन्द होता तो?''
चाचू- ''अरे बेटा! पशुओं से खुद की तुलना क्यों कर रहे हो?''
माधव-''चाचू,पशु बोल नहीं पाते तो क्या उनके हमारे तरह मन भी नहीं होता? उनका तो स्वभाव ही आजाद रहना होता है।''
उसके चाचू उसकी जिद पूरी करते हुए घर की ओर चल दिये।
रास्ते में दोनो चुप थे। काफी देर बाद चुप्पी तोड़ते हुए माधव ने कहा- ''आपको याद है चाचू,सरकस में बेचारे पशु कैसे इशारे पर करतब दिखा रहे थे।''
चाचू-''हाँ बेटा यही मनुष्य की कला है जो जानवर को भी...''
बीच मे ही काटते हुए माधव बोला-''क्या कला,अबोध पशुओं की स्वतन्त्रता से खिलवाड़ करें।पैसे कमाएं और हम लोग देख कर मस्ती करते रहें।''
इसबार उसके चाचा शान्त रहे।
अभी दोनो घर पहुंचे नहीं थे कि अचानक एक मदारी दिख गया। उसके चाचा ने सोचा अब माधव पुरानी बात भूल गया होगा। अभी बच्चा ही तो है। यही सोच कर चाचा ने कहा-''माधव बंदरिया नाचते हुए देखोगे? वह देखो मदारी।''
माधव ने तपाक से उत्तर दिया-''चाचू अभी मेरे गले में जंजीर पड़ी होती,इस बंदरिया की तरह तब भी आप इतने ही खुश होते?''
तब तक दोनो घर के करीब पहुंच चुके थे। माधव दौड़ा-दौड़ा गया अपने पट्टे को उड़ा दिया। जब तक सब रोकते उसने अपने जिम्मी नाम के प्यारे कुत्ते को भी मुक्त दिया।
उसने सबकी डांट चुपचाप खुशी से सुन ली। अब माधव खुद को स्वतन्त्र महसूस कर रहा था। बन्धन मुक्त कर देने के बाद भी माधव के प्यारे पट्टूं और जिम्मी रोज माधव से मिलने आते हैं।

-वन्दना
(मौलिक/अप्रकाशित)

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Replies to This Discussion

भावनाओं से ओतप्रोत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.... 

Bhateeje ki adbhut samvedna.. yatharth se kahin door prateet hoti ha. Bal rachna mein bal manovigyan ka dhyan avashya rakhein. Premchand ki idgah ka hameed sab nahi ho sakte. Vaisa shilp hi durlabh ha. Aapka katha shilp theek ha kewal vishayavastu ke chunao mein thori savdhani achche parinam degi.

वन्दनाजी, बालकथा पर आपकी कोशिश भली लगी है. मैं आदरणीय गोपालनारायण जी के कहे से सहमत हूँ. रचना में व्याकरण पर ध्यान देने की आवश्यकता है. न केवल भाषायी तौर पर बल्कि कहने के ढंग और मनोविज्ञान के अनुसार भी बाल-रचनाएँ कठिन (Demanding) विधा होती हैं.

शुभ-शुभ

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