For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक रात अचानक पुलिस वाले उसे उग्रवादी बता कर घर से उठा कर ले गए. क्या क्या ज़ुल्म नहीं किये गए थे उस पर. वह चीख चीख कर खुद को बेनुगाह बताता रहा लेकिन सब कुछ सुनते हुए भी सरकारी जल्लाद बहरे बने रहे. यातनाएं सहते सहते तक़रीबन छह महीने बीत गए थे. तभी एक दिन सरकार ने अपनी नई नीति के अनुसार उसे रिहा कर दिया ताकि वह भी राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल हो सके. उसके वापिस लौटने से घर में ख़ुशी का वातावरण था, लेकिन वह जड़वत बैठा न जाने कहाँ खोया रहता. वृद्ध पिता ने एक दिन उसके कंधे पर हाथ रखकर पूछा:

"बहुत दिन हो गए तुम्हें वापिस आए हुए, कुछ काम काज का सोचा?"
"नौकरी तो अब मिलने से रही..... तो ……"
"बेटा, अगर कहो तो लोन लेकर तुम्हें एक टैक्सी दिलवा दें?"      
"टैक्सी नहीं, मुझे एक बन्दूक दिलवा दो बापू." 
अंदर की आग अब उसकी आँखों में उतर आई थी। 
.
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 929

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 17, 2017 at 10:48pm

ek निर्दोष के अंतर्मन की व्यथा | सर ऐसा समय जिसने भी झेला होगा सच में कितना कष्टदायक  रहा होगा ! आज भी सोचते है तो आह निकल जाती है | पर कहीं न कहीं आज भी ऐसे निर्दोष होंगे जो पीड़ित होंगे | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 17, 2014 at 1:34am

निर्दोष के अंतर्मन में यातना के परिणाम स्वरुप विद्रोह पनपता है तो यही स्थिति बनती है.... व्यवस्था तब वो कारखाना बन जाती है जिसमे अपराधी बनते है.... बेहतरीन, मार्मिक  और सार्थक लघुकथा के लिए हृदय से बधाई 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 9, 2014 at 3:01pm

आदरणीय सौरभ भाई जी, आपका अनुमोदन प्राप्त कर रचना और रचनाकार दोनों धन्य हुए. दिल से शुक्रिया आदरणीय।  


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 9, 2014 at 2:59pm

अस्सी के दशक में जब पंजाब प्रदेश पूरी तरह उग्रवाद की चपेट में था तब ऐसे काफी किस्से देखने सुनने को मिला करते थे. बहुत से निरापराध लोगों ने पुलिस अत्याचार सहने के बाद हथियार उठाने का फैसला किया था. यही नहीं उस समय सरकारी कारागारों ने किसी अपराध यूनिवर्सिटी की तरह काम किया, मासूम से लड़के वहाँ से पूरी तरह अपराधी बन कर आते हुए भी सुने गए. बस उसी तरह की एक घटना को शब्द देने का प्रयास किया है. आपको यह प्रयास पसंद आया यह मेरे लिए अतयंत हर्ष का विषय है, आपकी औदार्यपूर्ण टिप्प्णी हेतु आपका सादर धन्यवाद।         


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 9, 2014 at 12:30pm

आ० कुंती मुकर्जी लघुकथा आपको पसंद आई यह जान कर बहुत अच्छा लगा, सादर आभार।


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 9, 2014 at 12:29pm

दिल से शुक्रिया भाई केवल प्रसाद जी. 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 9, 2014 at 12:28pm

रचना को मान देने के लिए सादर धन्यवाद आ० गिरिराज भंडारी जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 9, 2014 at 12:27pm

आपकी इस उदार और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया ने मेरा हौसला बढ़ाया है आ० अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, सादर आभार।  


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 9, 2014 at 12:25pm

सादर आभार आ० अन्नपूर्णा बाजपेई जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 9, 2014 at 12:24pm

आदरणीय मीना पाठक जी, लघुकथा ने आपके दिल को छुया जान कर बेहद हर्ष हुआ, सादर धन्यवाद स्वीकारें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना कि कुछ तो परदा नशीन रखना।कदम अना के हजार कुचले,न आस रखते हैं आसमां…See More
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ओबीओ द्वारा इस सफल आयोजन की हार्दिक बधाई।"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
yesterday
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service