For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बह्र-ए- खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
2122 1212 22

इश्क में डूब इन्तहाँ कर ली,
यार मुश्किल में अपनी जाँ कर ली,

भा गई सादगी अदा हमको,
जल्दबाजी में हमने हाँ कर ली,

वश में पागल ये दिल नहीं अब तो,
धडकनें छेड़ बेलगाँ कर ली,

पाँव जख्मी लहू से लथपथ हैं,
राह ने ठोकरें जवाँ कर ली,

नाम बदनाम हो न महफ़िल में,
शायरी मैंने बेजबाँ कर ली..

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 1062

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 14, 2014 at 7:20pm

प्रिय अरुण भाई जी 

बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है... दिली बधाई पेश है 

इस ग़ज़ल पर बहुत सार्थक चर्चा भी हुई है, जिसका लाभ मैंने भी भरपूर उठाया है..

एक संशय मुझे भी है 

पाँव जख्मी लहू से लथपथ हैं,
राह ने ठोकरें जवाँ कर ली,..............मुझे लगता है यहाँ पर अंत में ली की जगह लीं होना चाहिए क्योंकि ठोकरें बहुवचन शब्द है 

शुभकामनाएं 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 9, 2014 at 2:08am

आपकी ग़ज़ल पर हुई बहस एक सार्थक बहस है..

शुभेच्छाएँ

Comment by बृजेश नीरज on January 7, 2014 at 1:09pm

अह! गज़ब! बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 6, 2014 at 10:55am

भाई अजय शर्मा जी यदि आपको स्पष्ट नहीं हो रहा है तो मैं कुछ नहीं कर सकता. समझने का प्रयास करेंगे तो शायद समझ आये. सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 6, 2014 at 10:53am

आभार बैद्यनाथ भाई जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 6, 2014 at 10:52am

आदरणीय शिज्जु भाई जी आपका भी हार्दिक आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 6, 2014 at 10:52am

आदरणीय श्री योगराज सर हार्दिक आभार आपका आपने स्पष्ट किया मैं पुनः सुधारने का प्रयास करता हूँ. आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 6, 2014 at 10:48am

आदरणीया वंदना जी सर्वप्रथम आप क्षमा न मांगे आपने कोई जुर्म नहीं किया है, यहाँ हम सब सीखने और सिखाने ही आते हैं यदि कहीं कुछ त्रुटि है तो बात होनी चाहिए. और आप ऐसा कदापि न सोचें कि आपकी टिप्पणियों से मैं आहत हुआ या मुझे बुरा लगा है अपितु मैं स्वयं आपका आभारी हूँ कि आपने ग़ज़ल पर यह सारी बातें की जिससे कि मुझे स्वयं काफी कुछ स्पष्ट हो गया. इस हेतु हार्दिक आभार आपका स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.

Comment by vandana on January 6, 2014 at 6:40am

आदरणीय अरुण जी एक बात जो सबसे पहली टिप्पणी में छूट गयी थी और नहीं छूटनी चाहिए थी ....

//यही बात यहाँ  भी लागू है हाँ का मेल जबां , जवां के साथ नहीं होना चाहिए //के बाद लिखनाचाहती थी कि  ...

यही बात यहाँ  भी लागू है | इस तरह  हाँ का मेल जबां , जवां के साथ नहीं होना चाहिए,लेकिन इन्हें हमकाफ़िया माना जाता है 

Comment by Saarthi Baidyanath on January 5, 2014 at 11:10pm

बहुत बढ़िया व सराहनीय प्रयास .....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
10 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।  गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। भाई तिलकराज जी द्वार…"
11 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए आभार।…"
14 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तितलियों पर अपने खूब पकड़ा है। इस पर मेरा ध्यान नहीं गया। "
42 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी नमस्कार बहुत- बहुत शुक्रिया आपका आपने वक़्त निकाला विशेष बधाई के लिए भी…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय शिज्जू भाई, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकार करें. सादर "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी, बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय नीलेश भाई, क्या ही खूब ग़ज़ल कही है. वाह. शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. बाकी अभ्यास…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें. गुनीजनों की सलाह पर अवश्य…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"धन्यवाद आ. गुरप्रीत भाई. आपसे शिक़ायत यह है कि हमें आपकी ग़ज़लें पढ़ने को नहीं मिल रही…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service