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उसकी बातों पे मुझे आज यकीं कुछ कम है
ये अलग है कि वो चर्चे में नहीं कुछ कम है

जबसे दो चार नए पंख लगे हैं उगने
तबसे कहता है कि ये सारी ज़मीं कुछ कम है

मैं ये कहता हूँ कि तुम गौर से देखो तो सही
जो जियादा है जहां वो ही वहीँ कुछ कम है

मुल्क तो दूर की बात अपने ही घर में देखो
'कहीं कुछ चीज जियादा है कहीं कुछ कम है'

देख कर जलवा ए रुख आज वही दंग हुए
जो थे कहते तेरा महबूब हसीं कुछ कम है

कुछ तो अनबन है ज़रूर उसकी, खुदा से 'राणा'
आज सजदे में झुकी उसकी ज़बीं कुछ कम है

मौलिक तथा अप्रकाशित

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Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on December 4, 2013 at 11:27pm

सभी अश'आर बुलंद हैं आदरणीय। जबसे दो चार नए पंख लगे हैं उगने 
तबसे कहता है कि ये सारी ज़मीं कुछ कम है //इस शेर का क्या कहना! हार्दिक बधाई।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 20, 2013 at 1:50pm

सभी अशआर पसंद आये, अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई प्रिय राणा प्रताप जी |

Comment by annapurna bajpai on November 18, 2013 at 2:17pm

सुंदर गजल आ० राणा प्रताप जी , बधाई । 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 17, 2013 at 7:27am

देख कर जलवा ए रुख आज वही दंग हुए
जो थे कहते तेरा महबूब हसीं कुछ कम है ----- वाह क्या ख्याल है,अच्छी ग़ज़ल है .

Comment by Neeraj Neer on November 15, 2013 at 8:43am

जबसे दो चार नए पंख लगे हैं उगने 
तबसे कहता है कि ये सारी ज़मीं कुछ कम है.. वाह क्या ख्याल है , बहुत ही उम्दा.. सुन्दर ग़ज़ल हुई है ..

Comment by वेदिका on November 13, 2013 at 1:26pm

जबसे दो चार नए पंख लगे हैं उगने
तबसे कहता है कि ये सारी ज़मीं कुछ कम है,, बहुत खूब अंदाज से गज़ल की पेशकश हुयी है|

बधाई आ0 राणा जी!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 13, 2013 at 8:04am

आदरणीया वन्दना जी शेर पसंद करने के लिए शुक्रिया|


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 13, 2013 at 8:03am

आदरणीय निलेश जी बहुत बहुत शुक्रिया|


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 13, 2013 at 8:02am

आदरणीय विजय निकोर जी ग़ज़ल पसंद करने के लिए शुक्रिया|


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 13, 2013 at 8:02am

आदरणीय डा. आशुतोष जी आपने ग़ज़ल पसंद किया जिसके लिए मैं आभारी हूँ|

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