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शीत ऋतु के आगमन के साथ ही प्रेम और फिर मुहब्बत के सागर में खूब  गोते लगाए हमने आपने | बड़ा ही आनंद आया दोस्तो, और अब बारी है नव-वर्ष से एक और नयी शुरुआत करने की |

सीखने / सिखाने की पहल से जुड़ा हुआ ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार आप सभी के अपरिमित उत्साह को देख कर दंग है | कितने सारे रचनाकार और हर एक के अंदर कितनी सारी रचनात्मकता, भई वाह! जहाँ एक ओर जूनियर्स पूरे जोशोखरोश  के साथ मंच पर अपनी प्रस्तुतियों के साथ हाजिर होते दिखते हैं, वहीं स्थापित रचनाकार भी अपने ज्ञान और अनुभव को अपने मित्रों के साथ बाँटने को सदा उद्यत दिखाई पड़ते हैं |

दूसरे महा इवेंट में १० से ज़्यादा रचनाकार पहली बार शामिल हुए, जो अपने आप में एक उपलब्धि है|

"ओबिओ लाइव महा इवेंट" अंक-1 और २ के अनुभव के आधार पर कुछ परिवर्तन किए गये हैं इस बार, जो आप सभी से साझा करते हैं|

[१] महा इवेंट कुल ३ दिन का होगा|

[२] ओबिओ परिवार की अपेक्षा है कि हर रचनाकार एक से अधिक विधाओं / फ़ॉर्मेटस में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करे | मसलन एक रचनाकार ३ दिन में ३ अलग अलग विधाओं में ३ अलग अलग रचनाएँ प्रस्तुत कर सकता है | पर स्पष्ट करना ज़रूरी होगा कि यह बाध्यकारी नहीं है | हाँ इतनी अपेक्षा ज़रूर है कि एक दिन में यदि एक से अधिक रचना प्रस्तुत करनी हों, तो विधा भी अलग से लें| उदाहरण के लिए यदि किसी रचनाकार को एक दिन में ३ रचनाएँ प्रस्तुत करनी हैं तो वो [अपनी पसंद के मुताबिक] ग़ज़ल, गीत और कविता की विधाएँ ले सकता है|

वैसे हम में से ज़्यादातर लोग जिन विधाओं में आसानी से पोस्ट कर सकते हैं वो हैं:- ग़ज़ल, गीत, कविता, मुक्तक, लघु कथा, दोहे, कव्वाली वग़ैरह| इसी बात के मद्देनजर १६ मात्रा वाले सबसे सरल छंद चौपाई के बारे में हम लोगों ने ओबिओ पर अलग से चर्चा शुरू की हुई है| इच्छुक रचनाकार उस चर्चा से लाभान्वित हो सकते हैं| हमें प्रसन्नता होगी यदि कोई रचनाकार किसी आँचलिक विधा को भी हम सभी के साथ साझा करे|

तो दोस्तों, प्रस्तुत है ओपन बुक्स ऑनलाइन का एक और धमाका

"OBO लाइव महा इवेंट" अंक-३

इस महा इवेंट में आप सभी को दिए गये विषय को लक्ष्य करते हुए अपनी अपनी रचनाएँ पोस्ट करनी हैं | इस बारे में ऊपर विस्तार से चर्चा की गयी है| आप सभी से सविनय निवेदन है कि सर्व ज्ञात अनुशासन बनाए रखते हुए अपनी अपनी कला से दूसरों को रु-ब-रु होने का मौका दें तथा अन्य रचनाकारों की रचनाओं पर अपना महत्वपूर्ण विचार रख उनका उत्साह वर्धन भी करें |

 

यह इवेंट शुरू होगा दिनांक ०३.०१.२०११ को और समाप्त होगा ०५.०१.२०११ को|
इस बार के "OBO लाइव महा इवेंट" अंक-३ का विषय है "लोकतंत्र"

इस विषय को थोड़ा और विस्तार दे देते हैं| जब हम लोकतंत्र की बात करते हैं तो उस में भ्रष्टाचार, राजनीति, कुव्यवस्था, पंचायत राज, आतंकवाद, उग्रवाद, देश प्रेम, स्वतंत्रता, आज़ादी, गणतंत्र भारत, वोट बॅंक जैसे और भी कई सारे विषय अपने आप आ जाते हैं| ध्यान रहे हमें भावनाओं को भड़काने वाली या द्वेष फैलने वाली बातों से बचना है| यदि कोई सदस्य मर्यादा का उलंघन करता हुआ पाया जाएगा, तो एडमिन उनकी रचना / टिप्पणी को रद्द कर सकता है|


रोचकता को बनाये रखने हेतु एडमिन जी से निवेदन है कि फिलहाल रिप्लाइ बॉक्स को बंद कर दे तथा इसे ०२.११.२०११ और ०३.११.२०११ की मध्यरात्रि को खोल दे जिससे सभी फनकार सीधे अपनी रचना को पोस्ट कर सके तथा रचनाओं पर टिप्पणियाँ दे सकें|

आप सभी सम्मानित फनकार इस महा इवेंट मे मित्र मंडली सहित सादर आमंत्रित है| जो फनकार अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है उनसे अनुरोध है कि www.openbooksonline.com पर लोग इन होकर साइन उप कर ले तथा "OBO लाइव महा इवेंट" अंक-३ मे शिरकत करें |

तो आइए नये साल में मिलते हैं और आप सभी की धमाकेदार रचनाओं का जायका लेते हैं|

प्रतीक्षा में
ओबिओ परिवार

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धन्यवाद,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

 

लोकतंत्र का मेढ़क

 

मेढ़क को अगर, 

उबलते हुए पानी में डाल दिया जाय, 

तो वह उछल कर बाहर आ जाता है;

 

मगर यदि उसे डाला जाय,

धीरे धीरे गर्म हो रहे पानी में,

तो उसका दिमाग,

उस गर्मी को सह लेता है,

और मेढ़क उबल कर मर जाता है;

 

छात्रों को मेढ़क काटकर,

उसके अंगों की संचरना तो समझाई जाती है,

पर उसके खून का यह गुण,

पूरी तरह गुप्त रखा जाता है,

हमारी सरकार द्वारा;

 

तभी तो हमारा सरकारी तंत्र,

युवा आत्माओं को,

भ्रष्टाचार की धीमी आँच से,

उबालकर मारने में,

इतना सफल है;

 

कुछेक खुशकिस्मत आत्माएँ ही,

इस साजिश को समझ पाती हैं,

और इससे लड़ने की कोशिश करती हैं,

पर इस गर्म हो रहे पानी से,

लड़ने का कोई फ़ायदा नहीं होता,

इस पर लगे घाव,

पल भर में भर जाते हैं,

और लड़ने वाले आखिर में,

थक कर डूब जाते हैं,

और खत्म हो जाते हैं;

 

एकाध आत्मा ही,

छलाँग लगाकर,

इससे बाहर निकल पाती है;

नहीं तो आप ही बताइये,

इस देश में किरन बेदी जैसी,

और आत्माएँ क्यों नहीं हैं?

रचना पसंद करने के लिए धन्यवाद नवीन भाई

लोकतंत्र का मेढ़क!

 

Wah Dharmendra Bhai !  Kya baat hai aapki. Sach main aapko padna anand dayi hai. Pehle file ki yatra aur ab medak kamaal hai. Aapko dheron shubh kamnayen . Wah!Wah!

धन्यवाद शेखर भाई। स्नेह बनाए रखियेगा
वाह - 2 धर्मेन्द्र जी...... क्या दिखाया है आपने मेंढक का जलवा........ दिल खुश हो गया और दुखी भी....... खुश इसलिए कि आपकी रचना एकदम सटीक प्रहार है लोकतंत्र पर और दुखी इसलिए कि हमें अपने ही लोकतंत्र के बारे में ऐसा क्यों लिखना पड़ रहा है........ बहुत सुंदर प्रस्तुति....... सचमुच धमाका कर दिया आपने..... बधाई हो...
धन्यवाद सुशील भाई। इस उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए
धन्यवाद तिवारी जी।
thanks
एक
  
लोकलाज का भय नहीं, फैला भ्रष्टाचार |
बदनामी का डर नहीं , कैसा शिष्टाचार||
कैसा शिष्टाचार, देश को कौन बचाये|
अब तो जगदाधार इन्हें कुछ राह दिखाएँ ||
लोकतंत्र का ढोंग देखती है आबादी |
कैसा ये आज़ाद देश, कैसी आज़ादी||
दो
 
बाबा और नाती चले, करने को सत्संग |
हुआ धमाका जोर से, रह गए सारे दंग ||
रह गए सारे दंग, न कुछ समझे बेचारे |
हाथों में ले हाथ, साथ में स्वर्ग सिधारे ||
बोला उस पल 'एक', भला क्या हुआ वाकया |
'दूजा' बोला 'लोकतंत्र' का खून हो गया ||
 
 
 
 
सुंदर कुंडलियों के लिए बधाई स्वीकार करें
बोला उस पल 'एक', भला क्या हुआ वाकया |
'दूजा' बोला 'लोकतंत्र' का खून हो गया ||

वाह अरविन्द जी, वाह,वाह.

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