For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

विशेष रचना : षडऋतु-दर्शन --- * संजीव 'सलिल'

विशेष रचना :
                                                                                   
षडऋतु-दर्शन                 
*
संजीव 'सलिल'
*
षडऋतु में नित नव सज-धजकर,
     कुदरत मुकुलित मनसिज-जित है.

मुदितकमल सी, विमल-अमल नव,
     सुरभित मलयज नित प्रवहित है.
नभ से धरा निहार-हारकर,
     दिनकर थकित, 'सलिल' विस्मित है.
रूप-अरूप, अनूप, अनूठा,
     'प्रकृति-पुरुष' सुषमा अविजित है.                                  
                   ***
षडऋतु का मनहर व्यापार.
कमल सी शोभा अपरम्पार.
रूप अनूप देखकर मौन-
हुआ है विधि-हरि-हर करतार.

शाकुंतल सुषमा सुकुमार.
प्रकृति पुलक ले बन्दनवार.
शशिवदनी-शशिधर हैं मौन-
नाग शांत, भूले फुंकार.

भूपर रीझा गगन निहार.
दिग-दिगंत हो रहे निसार.
निशा, उषा, संध्या हैं मौन-                                                                 
शत कवित्त रच रहा बयार.

वीणापाणी लिये सितार.
गुनें-सुनें अनहद गुंजार.
रमा-शक्ति ध्यानस्थित मौन-
चकित लखें लीला-सहकार.
                ***
                             शिशिर

स्वागत शिशिर ओस-पाले के बाँधे बंदनवार
   वसुधा स्वागत करे, खेत में उपजे अन्न अपार.         
धुंध हटाता है जैसे रवि, हो हर विपदा दूर-
    नये वर्ष-क्रिसमस पर सबको खुशियाँ मिलें हजार..


                              बसंत
 
आम्र-बौर, मादक महुआ सज्जित वसुधा-गुलनार, 
       रूप निहारें गगन, चंद्र, रवि, उषा-निशा बलिहार.
गौरा-बौरा रति-रतिपति सम, कसे हुए भुजपाश- 
  नयन-नयन मिल, अधर-अधर मिल, बहा रहे रसधार.. 

                              ग्रीष्म 

संध्या-उषा, निशा को शशि संग देख सूर्य अंगार.
         
विरह-व्यथा से तप्त धरा ने छोड़ी रंग-फुहार.
झूम-झूम फागें-कबीर गा, मन ने तजा गुबार-
         चुटकी भर सेंदुर ने जोड़े जन्म-जन्म के तार..
 
                               वर्षा  

दमक दामिनी, गरज मेघ ने, पाया-खोया प्यार,
      रिमझिम से आरम्भ किन्तु था अंत मूसलाधार.
बब्बा आसमान बैरागी, शांत देखते खेल- 
      कोख धरा की भरी, दैव की महिमा अपरम्पार..

                             शरद

चन्द्र-चन्द्रिका अमिय लुटाकर, करते हैं सत्कार, 
     आत्म-दीप निज करो प्रज्वलित, तब होगा उद्धार. 
बाँटा-पाया, जोड़-गँवाया, कोरी ही है चादर- 
      काया-माया-छाया का तज मोह, वरो सहकार.. 

                            हेमन्त 

कंत बिना हेमंत न भाये, ठांड़ी बाँह पसार. 
    खुशियों के पल नगद नहीं तो दे-दे दैव उधार.
गदराई है फसल, हाय मुरझाई मेरी प्रीत- 
    नियति-नटी दे भेज उन्हें, हो मौसम सदा बहार.. 
                                  ***
बिन नागा सूरज उगे सुबह ढले हर शाम.
यत्न सतत करते रहें, बिना रुके निष्काम..
                                   *
अंतिम पल तक दिये से, तिमिर न पाता जीत. 
सफर साँस का इस तरह, पूर्ण करें हम मीत..
                                  *
संयम तज हम बजायें, व्यर्थ न अपने गाल.
बन संतोषी हों सुखी, रखकर उन्नत भाल..
                              ***
ढाई आखर पढ़े बिन पढ़े, तज अद्वैत वर द्वैत.  
मैं-तुम मिटे, बचे हम ही हम, जब-जब खेले बैत.. 
                               *
जीत हार में, हार जीत में, पायी हुआ कमाल.
'सलिल'-साधना सफल हो सके, सबकी अबकी साल..

                                         ************************************ 

Views: 1283

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by BIJAY PATHAK on December 30, 2010 at 11:54am

Sree संजीव 'सलिलji

Aapke dwara rachit kavita padh kar kakcha 9-10 ki wo kavitaye yaad aa gai jinki rachna desh ke agraz  kaviyo athwa kavitriyo ne kiya hai.Muzhe aapki kavita unse kisi mayne mein kam nahi lagi,maaf kijiyega main tulna nahi karna cjahata, balki aapki kavita padhne ke uprant barbas ye soch mere man mein aayi|

Bahut Bahut Dhanyabad,

Bijay Pathak

Comment by Rash Bihari Ravi on December 29, 2010 at 6:00pm
bahut khubsurat man bhawan
Comment by Lata R.Ojha on December 29, 2010 at 4:10pm
मन के आनंद को शब्दों में समेटना अभी तो संभव नही 'सलिल ' जी.
प्रकृति के पल पल ,मौसम मौसम बदलते रूप- श्रिगार को बड़े ही मनोहारी ढंग से प्रस्तुत किया है आपने..धन्यवाद :)

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 29, 2010 at 12:58pm
आ हा हा हा हा हा  - एक साथ सभी ऋतुओं का दर्शन करवा दिया आपकी कविता ने आचार्य जी, पढ़कर मन आनंदित हो गया ! इस सारगर्भित रचना के लिए दिल से साधुवाद !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service