For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

२ १ २ २     २ १  २ १    १ २ १ २

.

छोडो अपनी ढाई चाल बहुत हुआ

खून में आया उबाल बहुत हुआ

 

आम जनता की आवाज दबे नहीं

देश में लाये भूचाल बहुत हुआ  

 

खींच लेगा आज वक़्त ये कुर्सियां

कर चुके जितना धमाल बहुत हुआ

 

अब सियासी हंडिया ये उतार दो    

पक चुकी जितनी  ये दाल बहुत हुआ

 

दोगुला अब तो   चलन ये   चले नहीं

बेहयाई का कमाल बहुत हुआ 

 

क़र्ज़ में अब  देश खूब   डुबा चुके

आज रूपये का ये हाल बहुत हुआ

देश की जनता है  जाग उठी  अभी 

नोंच लेगी  बाल खाल बहुत हुआ

********************************************

मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

Views: 636

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 8, 2013 at 10:50pm

सादर आभार जवाहर लाल जी वक़्त तो बदलता ही है 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on September 8, 2013 at 4:50pm

नोच लेगी बाल खाल बहुत हुआ!... चेतावनी अगर वे समझ पायें!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 7, 2013 at 11:58pm

आदरणीय सुरेन्द्र कुमार शुक्ल जी ग़ज़ल के मर्म का अनुमोदन कर लेखन को कृतार्थ किया ,अब वक़्त है जागने का .आम जनता ठगी जा रही है बस मस्तिष्क में यही भाव हलचल मचा  रहे थे सो लिख दिया आपको पसंद आये तहे दिल से आभारी हूँ । 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 7, 2013 at 11:53pm

क़र्ज़ में अब  देश खूब   डुबा चुके

आज रूपये का ये हाल बहुत हुआ

देश की जनता है  जाग उठी  अभी 

नोंच लेगी  बाल खाल बहुत हुआ

आदरणीया राजेश कुमारी जी ..सामयिक विषयाधारित ...और चेतावनी देती अच्छी रचना ..काश आँखें अब भी खुलें

आभार
भ्रमर ५


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 7, 2013 at 11:39pm

ब्रजेश नीरज जी  ग़ज़ल आपको अच्छी लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से शुक्रिया|

Comment by बृजेश नीरज on September 7, 2013 at 11:35pm

वाह! बहुत सुन्दर गज़ल! आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 7, 2013 at 11:23pm

आदरणीया मंजरी पाण्डेय  जी ग़ज़ल आपको अच्छी लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 7, 2013 at 11:22pm

जितेन्द्र गीत जी ग़ज़ल आपको प्रभावित कर सकी मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार |

Comment by mrs manjari pandey on September 7, 2013 at 10:17pm

   आदरणीया राजेश् कुमारी जी  सुन्देर शेर  ‍ बधाई !

    

क़र्ज़ में अब  देश खूब   डुबा चुके

आज रूपये का ये हाल बहुत हुआ

देश की जनता है  जाग उठी  अभी 

नोंच लेगी  बाल खाल बहुत हुआ

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 7, 2013 at 10:09pm

खींच लेगा आज वक़्त ये कुर्सियां

कर चुके जितना धमाल बहुत हुआ.....सही चेतावनी देता हुआ शेर

अब सियासी हंडिया ये उतार दो    

पक चुकी जितनी  ये दाल बहुत हुआ.......यह शेर बहुत पसंद आया

सटीक व् करारी चोट देती गजल , बहुत बहुत बधाई आदरणीया राजेश जी

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service