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मेरे वतन
------------
देश खड़ा चौराहे पर
मुखिया करते हैं मक्कर
घर घुस हमको मार रहे
प्रेम से बोलते उन्हें तस्कर
सांझ सवेरे युगल गीत सुन
कायर अरि प्रतिदिन बहक रहा
मत टोक मुझे मत रोक मुझे
अंगार ह्रदय में दहक रहा
पिया दूध माँ तेरा हमने
अमृत, वो नही था पानी
आकर तुझको आँख दिखाये
जियूं में व्यर्थ ऐसी जवानी
नभ में तिरंगा फहरेगा
माँ न कर तू दिल मे मलाल
भले शीश गिरे धरती पर
धरा रक्त से हो जाय लाल
मौलिक /अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
१४.८. २०१३

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 25, 2013 at 11:24am

आदरणीय प्रदीपजी, लेखन के प्रति आपका आग्रह अभिभूत करता है. लेकिन मेरा अनुरोध है -- हम एक लेखक या रचनाकार के तौर पर हम यह अवश्य सोचें कि प्रस्तुत हुई रचना को कोई पाठक क्यो शुरु से अंत तक पढ़े ? या, रचना की अपनी सत्ता कैसी है ?

किसी रचनाकार द्वारा हुआ निवेदन या लिखना अत्यंत सरल कार्य है. लेकिन संप्रेषण कठिन. इसके लिए वस्तुतः प्रयास करना पड़ता है.

मैं विन्दुवत बातें करता हूँ, आदरणीय -

देश खड़ा चौराहे पर
मुखिया करते हैं मक्कर .. . .    यह मक्कर  क्या है ?


घर घुस हमको मार रहे
प्रेम से बोलते उन्हें तस्कर ... .  घर में घुस कर मारने वालों को तस्कर कहते हैं ?


सांझ सवेरे युगल गीत सुन
कायर अरि प्रतिदिन बहक रहा...  कायर अरि बहक रहा ? क्या यहाँ बहुवचन की संज्ञा आवश्यक नहीं ? और अरि ? क्या रचना के परिदश्य में यह आरोपित शब्द नहीं लग रहा ?

आदरणीय, हर कविता या रचना अपनी औसत भाषा के अनुरूप ही शब्द चाहती है. ऐसा मेरा मानना है.

 
मत टोक मुझे मत रोक मुझे
अंगार ह्रदय में दहक रहा.......    हृदय सही वर्तनी है.


पिया दूध माँ तेरा हमने
अमृत, वो नही था पानी
आकर तुझको आँख दिखाये
जियूं में व्यर्थ ऐसी जवानी
नभ में तिरंगा फहरेगा......... ..  यह संवेदना थोड़ी और कोशिश मांगती है. 


माँ न कर तू दिल मे मलाल
भले शीश गिरे धरती पर...........भले शीश गिरे धरती पर.. . किसका आदरणीय ? माँ का ? आप अवश्य ना कहेंगे. लेकिन पंक्तियों से क्या संप्रेषित हो रहा है !  .. शुभ-शुभ !


मेरा निवेदन रचनाधर्मिता की सार्थकता के प्रति है, नकि रचनाकर्म के विरुद्ध. 

इस क्रम में यदि मुझसे धृष्टता हो गयी हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ.

सादर

Comment by Vinita Shukla on August 16, 2013 at 2:34pm

स्वतंत्रता दिवस पर, प्रेरक, समसामयिक पोस्ट. बधाई आदरणीय कुशवाहा जी.

Comment by MAHIMA SHREE on August 15, 2013 at 10:06pm
आदरणीय प्रदीप सर , सादर नमस्कार
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति बधाई स्वीकार करें/

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 15, 2013 at 7:43pm

आदरणीय, अति सुन्दर सामयिक रचना है , बधाई !!

Comment by D P Mathur on August 15, 2013 at 9:33am

आदरणीय कुशवाहा सर नमस्कार, आपकी इस रचना में जोश भरा है आपको बहुत बहुत बधाई!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 14, 2013 at 9:50pm

आ0 कुशवाहा सर जी, सादर प्रणाम! वाह! देश प्रेम की बेहतरीन रचना। तहेदिल से बधाई स्वीकार करें। सादर,

Comment by annapurna bajpai on August 14, 2013 at 8:14pm

आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी बहुत बढ़िया ।

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