For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 34(Closed with 1256 Replies)

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर अभिवादन ।


 इस बार से महा-उत्सव के नियमों में कुछ परिवर्तन किये गए हैं इसलिए नियमों को ध्यानपूर्वक अवश्य पढ़ें |

पिछले 33 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 34 

विषय - "सावन"
आयोजन की अवधि-  शुक्रवार 09 अगस्त 2013 से शनिवार 10 अगस्त 2013 तक 

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)
 
तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दिए हुए विषय को दे डालें एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति. बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य-समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित पद्य-रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :-

ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 34 में सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम दो स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक ही दे सकेंगे, ध्यान रहे प्रति दिन एक, न कि एक ही दिन में दो. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.

सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 09 अगस्त दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तोwww.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालिका 
डॉo प्राची सिंह 
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

Views: 20696

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

भाई राणाजी, आपके इन दोहों से मन प्रसन्न हो गया.  बहुत-बहुत बधाइयाँ.

पडी हुई थी घास भी, जैसे जल बिन मीन
सावन आया हो गई, वह अनुशासनहीन.. . इस दोहे पर तो भाई विशेष बधाइयाँ ..

टी वी पर आये क्रिकेट.. .    इस चरण को देख लें..

शुभ-शुभ

आदरणीय सौरभ सर

दोहों की सराहना के लिए आभार|

अंतिम दोहे में प्रयुक्त "क्रिकेट" शब्द पर आपकी आपत्ति पर इतना ही कहना चाहूंगा कि यह अंग्रेजी भाषा का शब्द कुल तीन मात्राओं का उच्चारण रखता है| इसे १२१ मात्राओं में बाँधना किसी भी प्रकार से उचित नहीं होना चाहिए| मेरा मानना है कि हम आयातित शब्दों पर जितना हो सके कम से कम छेड़ छाड़ करें तो उसके मूल स्वरुप को बचाया जा सकता है|

इसी प्रकार का बर्ताव हमें उर्दू भाषा के अलफ़ाज़ -बेहतर, देहलीज, चेहरा आदि के साथ भी करना होगा|

गलत तलफ्फुज अपनाने से बेहतर होगा कि हम इन शब्दों का प्रयोग ही न करें|

सादर

आपकी बात समझ में न आयी, भाई.

आप आयातित शब्दों की बात कर भाषाविज्ञान की मूल अवधारणा पर ही सवाल खड़ा कर बैठे हैं.  ऐसा आग्रह कितना विन्दुवत होगा या है,  इसे आगे कभी मिल बाँट कर देखा जाये तो उचित होगा.  वर्ना हम दूध, काँटा, बछड़ा आदि जैसे शब्दों से भी हाथ धो बैठेंगे.

आयातित शब्दों का अपने व्यावहारिक रूप में होना किसी एक व्यक्ति या किसी समाज के कुछ व्यक्तियों के व्हिम पर निर्भर नहीं करता, ऐसा मुझे लगता रहा है. बल्कि, ऐसा  भौगोलिक, शारीरिक तथा सामाजिक विन्दुओं और कारणों पर निर्भर करता है.  देखिये न, गिरमिटिया   जैसा अतुकान्त या तथ्यहीन शब्द किसी देश की भाषा का अहम हिस्सा हो जाता है. जबकि उस शब्द का भी मूल है. विश्व की सभी भाषाओं का साहित्य आयातित शब्दों के अपनाये जाने और उन्हें क्षेत्रीय रूप दिये जाने से समृद्ध है. यह किसी क्षेत्रीय भाषा के प्रयोगकर्ताओं की कम-जानकारी का परिचायक मात्र नहीं होता.

अव्वल तो, हिन्दी भाषा की विशेषता यही है कि जो लिखा जाता है अक्सर वही पढ़ा जाता है.

रेडियो अगर लिखा गया है तो वह कभी वेडियो नहीं पढ़ा जाता. जबकि उसका उच्चारण वेडियो ही है.

देवनागरी लिपि भी शब्दों के उच्चारण में यथोचित योगदान करती है.

वैसे यह मेरा मानना है. 

शुभेच्छाएँ

आदरणीय सौरभ सर जी! आपकी बात सही है और आदरणीय राणा जी की भी। वह इस संदर्भ में कि हिन्दी में जैसा लिखा जाता उसी तरह पढ़ा भी जाता है। लेकिन कुछ विदेशी शब्दों खासकर अंग्रेजी के शब्द लिखे कुछ जाते हैं और पढ़े कुछ। अब हम जब अंग्रेजी के शब्दों को हिन्दी में लिखते हैं तो गड़बड़ी स्वाभाविक और अश्यम्भावी है। (इस संदर्भ में मैंने मंच पर एक परिचर्चा भी प्रारम्भ किया किया था लेकिन वह अभी तक बेनतीजा है।) तो इस स्थिति में विचारणीय है कि हम आयातित शब्द के संदर्भ में हिन्दी के नियमों का पालन करें या उस मूल शब्द के मूल उच्चारण का?
इस संदर्भ में मेरा मानना है-
सर्वप्रथम तो इस तरह के शब्दों के प्रयोग से हमें बचना चाहिये।
द्वितीय यदि प्रयोग कर ही रहे हैं तो उस पर हिन्दी के नियमों को ही लागू किया जाय।
तृतीय इस पर भी विचार किया जाना आवश्यक है कि क्या हम मूल उच्चारण को भी अपना सकते हैं?
और चौथा कि क्या इन आयातित शब्दों के बदले हमें अपने शब्दकोश में नये शब्द गढ़ना चाहिये?
यथा स्वमति

आदरणीय विन्ध्येश्वरी जी चर्चा को गति प्रदान करने के लिए धन्यवाद|

आदरणीय सौरभ जी की बातों से आंशिक रूप से सहमत होते हुए मैं यह कहना चाहूंगा कि भाषा में आये हुए बाहर के शब्द निश्चित तौर पर पर क्षेत्रीयता के रंग में रंग कर अपना रूप बदल लेते हैं परन्तु यह प्रत्येक शब्द के साथ हो यह भी तो आवश्यक नहीं| उदाहरण के तौर पर "क्रिकेट" को भारत के विभिन्न प्रान्तों में रहने वाले कितने लोग क्रिकेट (१२१) का उच्चारण करते हैं? इसी प्रकार बेहतर(२१११/२१२) उच्चारण करते हैं| मात्र इसलिए की हम लिखते ऐसा हैं इसलिए इसका उच्चारण ऐसा होना चाहिए यह तर्कसंगत नहीं लगता है|

जी आदरणीय राणा जी! मैं उर्दू के बारे में तो विशेष नहीं कह सकता (ज्यादातर मैं प्रचलित उर्दू का ही प्रयोग करता हूँ वह भी जैसा हमने आजतक उच्चरित किया है।) लेकिन अंग्रेजी के शब्दों के प्रयोग के समय मैं काफी दिक्कत का सामना करता हूँ, क्योंकि हमने आज तक उच्चरित कुछ किया लिखा कुछ गया था। जैसे- एक शब्द है pen हम इसका उच्चारण पेन (कुछ पन जैसा करते हैं या "पे" पूरा कहते हैं और "न" हल वर्ण की तरह उच्चरित करते हैं लेकिन जब हिन्दी में लिखते हैं तो यहाँ "पे" दीर्घ वर्ण की तरह और "न" लघु वर्ण की तरह उच्चरित होता है। प्रथम स्थिति में पेन केवल 2 (।।) मात्रा होता है जबकि द्वितीय स्थिति में 3(ऽ।) मात्रा।
यह स्थिति कुछ ऑफ और ओफ जैसी है। हम "ऑ" को पूरा "ओ" नहीं मान सकते और ओ अलग हटकर उच्चरित भी नहीं कर सकते।ठीक इसी प्रकार क्रिकेट में भी े की मात्रा का पूरा उच्चारण नहीं हो रहा।
शेष तो गुरुजन ही कहेंगे।

बात निकली है, तो रह-रह कर आगे भी निकलती रहेगी और ऐसे में मालूम है कि दूर ही नहीं बहुत दूर तक जायेगी.

एक बात इस संदर्भ में निवेदन करना तथा साझा करना चाहूँगा कि अन्य भाषाओं के शब्दों के उच्चारण उनके अपने होते हैं, जो कई बातों पर निर्भर करते हैं. हो सकता है कि उनके उच्चारण दूसरे भाषा-भाषी उसी ढंग से न कर पायें. यह कई कारणों में से एक मुख्य कारण है कि कई शब्द अन्य भाषाओं में अपने रूप बदल लेते हैं.
 
इसी क्रम में कहना चाहूँगा कि हिन्दी वर्णमाला के स्वर भी पूरी तरह से अन्य भाषाओं के शब्दों के उच्चारणों को संतुष्ट नहीं कर पाते हैं.  क्योंकि इनका होना और उद्येश्य हिन्दी शब्दों को उच्चारण देना है. यही कारण है कि कई आंचलिक भाषाओं को हिन्दी वर्णमाला के स्वरों के सहयोग से लिखना कठिन होता है और लोग अनावश्यक ही छंदों में दीर्घ स्वरों से बने अक्षरों की मात्राओं को गिराने की बातें करने लगते हैं. ठीक यही विदेशज या अन्यान्य तत्सम शब्दों के लिए सही है. अ और आ, ह्रस्व इ और दीर्घ ई, ह्रस्व उ और दीर्घ ऊ, ए तथा ऐ, ओ तथा औ के बीच या उनके इर्द-गिर्द कई ऐसे स्वर (यानि टाइम स्पैन इन प्रोननशियेशन) आते हैं जिनका वर्णन हिन्दी की स्वर-सूची नहीं कर पाती. सारी समस्या यहीं है.
 
पेन (Pen) या ऐसे ही कई शब्दो को मज़बूरन पेन लिखना पड़ता है. Football वस्तुतः फुटबाल है ही नहीं. पेन के लिए प के साथ ए की मात्रा सटीक है ही नहीं. लेकिन Pen के लिए पेन ही लिखा जाता है. War  को हर जगह वार लिखा जाता है. जबकि दोनों के उच्चारण वैसे नहीं हैं. War वस्तुतः वॉ  है और पेन के लिए प के ऊपर अर्द्धचन्द्र लगाना तथा तदनुरूप उच्चारण करना अधिक सटीक होगा. यही कुछ Ball के साथ है जिसे बाल न लिख कर बॉल लिखना अधिक मुफ़ीद है. जबकि अर्द्धचन्द्र हिन्दी स्वर-सूची का सदस्य नहीं है.  

ऐसे शब्दों को हिन्दी में उपलब्ध स्वर-सूची के सहयोग से लिखा जाय तो उच्चारण दोष होता है. इस दोष को संवेदना के साथ टैक्ल करने की है.

ऐसे शब्दों की मात्राएँ दुविधा का कारण हैं.

अब क्रिकेट शब्द पर आऊँ. तो, मैंने क्रिकेट को क्रिकट का उच्चारण अबतक किया ही नहीं था.  मैं इस शब्द को क्रिकेट ही कहता रहा हूँ और सुनता रहा हूँ. यह मेरी न-जानकारी भी है या हो सकती है.  इसी कारण जब राणा भाई ने क्रिकेट लिख कर क्रिकट पढ़ने या उच्चारण करने का आग्रह किया तो मुझे कुछ भी समझ नहीं आया था.

सादर

आप सही कह रहे हैं सर!
और आयातित शब्दों से सम्बंधित यही समस्या हिन्दी में मात्रा गणना के मार्ग में अवरोधक है।
फिर क्या किया जाये?
जो शब्द वर्तमान में हिन्दी में जिस रूप में प्रचलित हैं, उसी रूप में ग्रहण किये जायें?
या
जिस भाषा से आये हैं उस अपने मूल रूप में ग्रहण किये जायें?
या
उसके बदले अपनी भाषा के शब्दों को निर्मित किया जाये?
सादर

यथासम्भव  उच्चारणो को शब्दानुसार यानि जिस भाषा से आये हैं उनके  मूल रूप में ग्रहण किये जायें..  लेकिन इसकी सीमा है . अतः जो शब्द वर्तमान में हिन्दी में जिस रूप में प्रचलित हैं, उसी रूप में ग्रहण किये जायें.  

यानि सुन्दर तालमेल और संतुलन बना रहे. बिना दुराग्रह के.

कोई चीख-पुकार नहीं है.

शुभ-शुभ

विनय जी ! नये शब्द गढ़ने की कतई आवश्यकता नहीं है। जो शब्द हिन्दी ने अपना लिये हैं उन्हें वैसा ही प्रयोग करना उचित है। फिर तत्सम, तद्भव और देशज के साथ साथ चैथी कोटि विदेशी शब्दों की भी है। यदि आप विदेशी शब्दों के लिये शब्द गढ़ना आरंभ करेंगे तो आपको ‘हिन्दी’ शब्द के लिये भी शब्द गढ़ना पड़ेगा। तब तो सारा गढ़बड़ ही हो जायेगा।

आदरणीय सुलभ सर! जहाँ तक मैं समझता हूँ गद्य में विदेशी शब्दों का प्रयोग आसानी से किया जा सकता है, अतुकांत कविता में भी किया जा सकता है लेकिन छंदबद्ध रचनाओं या हिन्दी गजल में मेरे जैसे नौसुखिओं को प्रयोग करने में कठिनाई होती है।
या हम विभ्रम के शिकार रहते हैं।
इस स्थिति से निपटने हेतु हम क्या कर सकते हैं? इस पर विचार करना प्रासंगिक है।
जहाँ तक विदेशी शब्दों के के स्थान पर स्वदेशी शब्दों के गढ़ने की बात है यह मैं समीचीन समझता हूँ। हमें ऐसा प्रयास करना चाहिये।
या
इन शब्दों को यथा स्थिति स्वीकार कर लेना चाहिये?
हिन्दी शब्द की उत्पत्ति के प्रश्न पर कोई मतैक्य नहीं है।
यह विवादास्पद है कि हिन्दी फारसी भाषा के प्रभाव से उत्पन्न हुआ है। मेरा मानना है कि यह अंग्रेजों की कुत्सित चाल है। क्या इस संदर्भ में कोई प्रामाणिक प्राचीन दस्तावेज उपलब्ध है? या हम केवल गोरों के कहे अनुसार मान बैठे हैं? बुद्धिजीवियों को इस संदर्भ में विचार करना चाहिये।

आपके आखिरी कुछ वाक्य या वाक्यांश सटीक होते हुए भी इस समय और स्थान की चर्चा के समीचीन नहीं हैं, भाई विंध्येश्वरीजी.

वैसे आपकी बातें ससंदर्भ अन्य कई स्थानों पर उचित हैं.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
8 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service