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अलादीन का चिराग हूँ मैं

अलादीन का चिराग हूँ मैं

एक हसीन ख्वाब हूँ मैं

 

मचलती सुबह हूँ मैं

खिलखिलाती शाम हूँ मैं

 

हँसी का अंदाज हूँ मैं

प्रीत हूँ प्यार हूँ मैं

 

पहचान मेरी मुझसे है

दो कुलों की शान हूँ  मैं

 

दायरों मे बंधी हूँ मैं

शर्म से सजी हूँ मैं

 

छाया हूँ बाबुल के आंगन की

पिया की परछाई हूँ मैं

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on July 27, 2013 at 4:14am

आदरणीया प्रज्ञा जी इन दो अशआरो पर विशेष बधाई स्वीकारें -

पहचान मेरी मुझसे है

दो कुलों की शान हूँ मैं



दायरों मे बंधी हूँ मैं

शर्म से सजी हूँ मैं

शब्दों का चयन और संचयन चमत्कृत करते हैं लिखते सीखते रहीए शुभकामनायें !

Comment by वीनस केसरी on July 27, 2013 at 1:08am

वाह वाह बहुत शानदार ... क्या कहने ...

ग़ज़ल के शिल्प की ओर बढिए तो आगे और भी शानदार रचनाएं पढ़ने को मिलें
शुभकामनाएं

Comment by वेदिका on July 18, 2013 at 9:28pm

पहचान मेरी मुझसे है

दो कुलों की शान हूँ  मैं

 

यह पद तो विशेष सुन्दरता लिए है, बधाई!!  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 18, 2013 at 9:05pm

बहुत बहुत बधाई. 

नैसर्गिकता को व्याकरण दें ..

शुभम्

Comment by Pragya Srivastava on July 17, 2013 at 7:01pm

 आदरणीय रक्ताले जी आपका बहुत -बहुत धन्यवाद आपने जो उत्तम मार्ग प्रशस्त किया है उसका अनुसरण करूंगी

Comment by Pragya Srivastava on July 17, 2013 at 6:56pm

आदरणीय बग्गी जी,आपका बहुत- बहुत आभार प्रयास करती रहूंगी, मार्ग दर्शन देते रहें


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 16, 2013 at 9:06pm

प्राकृतिक रूप से जन्मे कथ्य को लेखिका ने स्वभाविक रूप में रख दिया है, इस अभिव्यक्ति पर बधाई, प्रयास करती रहें , सादर । 

Comment by बृजेश नीरज on July 16, 2013 at 6:00pm

आदरणीया प्रज्ञा जी इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!
आदरणीय रक्ताले जी के कहे पर ध्यान दें।

Comment by विजय मिश्र on July 16, 2013 at 6:00pm
वाह ! कितनी मौलिक सरोकार इतने सरल शब्दों में रखी आपने . साधुवाद प्रज्ञाजी इस जीवन्त रचना प्रस्तुति पर. बधाई .
Comment by Shyam Narain Verma on July 16, 2013 at 9:49am
बहुत ही सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई......................................."

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