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गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं

सार छंद / ललित छंद [प्रथम प्रयास]

छन्न पकैया छन्न पकैया के स्थान पर 

गुरु  का आओ सम्मान करें 

....................................................

गुरु का आओ सम्मान करें , 'गुरु' मतलब समझाएं
'गु' से होता अज्ञान तिमिर का, 'रु' से उसको हटाएँ

गुरु का आओ सम्मान करें ,गुरु पूर्णिमा आई
अज्ञान तिमिर का जो हर रहे ,सबके मन का भाई

गुरु का आओ सम्मान करें, अँधेरा दूर हटाएँ
गुरु दक्षिणा आज उसे देवें, ज्ञान प्रकाश बढ़ाएं

गुरु का आओ सम्मान करें, अत्याचार हटाएँ
वेद पुराणों का ज्ञान दिया, व्यास जयंति मनाएं

              ........................

             मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Abhinav Arun on July 23, 2013 at 9:17pm

गुरु के सम्मान में अभिवृद्धि करती रचना सशक्त है  . बहुत बहुत शुभकामनाये आपको !!

Comment by Sarita Bhatia on July 23, 2013 at 8:25pm

सभी के स्नेह रूपी पुष्प पाकर मन गदगद हो गया ,अपना आशीर्वाद ,स्नेह बनाए रखें ,तह दिल से आभारी हूँ 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 23, 2013 at 7:37pm

गुरु शब्दार्थ को साधते हुए सुन्दर रचना के लिए बधाई और गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाए -

श्रद्धा भाव जाग्रत करे, गुरु ज्ञान मिल जाय,
गुरुज्ञान जो मिल गया, सब कुछही मिलजाय |

Comment by annapurna bajpai on July 23, 2013 at 7:09pm

अज्ञानता के तिमिर को दूर भगाने वाले गुरुओं को मेरा भी प्रनाम व सम्मान , इस कविता के लिए हार्दिक बधाई सरिता जी ।

Comment by विजय मिश्र on July 23, 2013 at 12:52pm
समसामयिक और सुंदर भाव . साधुवाद सरिताजी .
Comment by Shyam Narain Verma on July 23, 2013 at 11:16am
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.................
Comment by बृजेश नीरज on July 22, 2013 at 11:20pm

आदरणीया सरिता जी आपको भी गुरू पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं!
मैं अभी जब ओबीओ पर आया तो इच्छा थी अपने उस गुरू को प्रणाम पुष्प अर्पित करूं जिन्होंने मुझे बहुत कुछ सिखाया परन्तु अभी तक उन्हें गुरूदेव कहने का अधिकार मुझे प्राप्त नहीं हुआ। आपकी रचना ने इस अवसर पर उनको प्रणाम कहने का अवसर प्रदान किया।
आपका हार्दिक आभार! अपने साहित्यिक गुरू को इस एकलव्य का प्रणाम!

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