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******* बेवफाई  ********
 दोस्ती का हक़ तो मैंने अदा किया 

 पर उसने मुझे कुछ दगा सा दिया 

जाने किस बात पे वो था रुका 

किस बात पे जाने भुला वो दिया 

दोस्ती .......................................

 

वैसे भीड़ में अपनों के था मै अकेला 

मेरे साथ गैरों ने कुछ उसने भी खेला 

वफ़ा की बातें अब कहाँ तक चलेंगीं 

ठुकराकर मुझे अब समझा वो दिया 

दोस्ती..........................................

 

दुनिया में पैसा है तो खरीदेंगे दिल भी 

जरूरत नहीं है आज अब तेरी अभी 

नहीं आज रहमत है मेरे दिल में 

कहकर ये दामन छुड़ा वो लिया 

दोस्ती..........................................

 

अपने ही मुकद्दर से हैरान हूँ 

उससे मै आज भी अनजान हूँ 

कितना जला हूँ तिल-२ के यारों 

कहकर दिलजला दिल दुखा वो दिया 

दोस्ती..............................................

***********************************

मौलिक और अप्रकाशित

***********************************
        अतेन्द्र कुमार सिंह "रवि"

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Comment

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Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 15, 2013 at 8:55am
सौरभ सर और अरुण जी को सादर प्रणाम और दिल से धन्यवाद .......

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 14, 2013 at 9:31pm

सुंदर प्रयास के लिए बधाई.................


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 14, 2013 at 9:24pm

आपकी प्रस्तुत रचना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, अतेन्द्र भाईजी. .

शुभेच्छाएँ

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 14, 2013 at 4:47pm

प्राची दीदी की मेरा सादर प्रणाम ......वैसे आपने लिखा है की मन में उठते भावो की अभिव्यक्ति अभी काफी अपरिपक्व है...तो कृपया इंगित भी करे कि जो मन में भावना उठी है उसको और कैसे अभिव्यक्त किया जा सकता है , हम आपके बहुत आभारी रहेंगे ....वैसे ये हमारी बहुत पुरानी रचना है ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 14, 2013 at 2:30pm

मन में उठते भावो की अभिव्यक्ति अभी काफी अपरिपक्व है...

और रचनाकारों की रचनाएँ भी पड़ें काफी कुछ स्वयमेव ही समझ आने लगेगा 

शुभकामनाएँ 

Comment by Sumit Naithani on July 12, 2013 at 4:23pm

अपने ही मुकद्दर से हैरान हूँ 

उससे मै आज भी अनजान हूँ 

कितना जला हूँ तिल-२ के यारों 

कहकर दिलजला दिल दुखा वो दिया 

कृपया ध्यान दे...

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