For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मौसम की मनमानी

मौसम की मनमानी है
सब आँखों में पानी है।

छाया बादल ये कैसा
दर्द दिया रूहानी है।

पावन है जग में सबसे
गंगा का ही पानी है।

जगती है आंखे तेरी
शब को यूं ही जानी है।

तुझको पाने की ख्वाहिश
हमने मन में ठानी है।

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 796

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ketan Parmar on July 12, 2013 at 3:45pm

Saadar Abhaar sweekare.

Dhanyvaad

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 11, 2013 at 10:22pm

सहज सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई श्री केतन परमार जी 

Comment by Amod Kumar Srivastava on July 11, 2013 at 10:11pm

स्ंदर रचना दिल को छूती.... आ0 केतन जी बधाई ... 

Comment by Ketan Parmar on July 4, 2013 at 2:18pm

वीनस केसरी JI

Saadar Abhaar sweekare.

Dhanyvaad

Comment by Ketan Parmar on July 4, 2013 at 2:17pm

वीनस केसरी JI

Aapse ek guzarish hai ke mujhe apke nimlikhit coments ke vishay me vistaar se bataye taki main usko sudhar saku.

जो बात विद्वतजन कहते हैं उनकी ओर ध्यान दें तो ग़ज़ल दोष मुक्त हो सकती है

Comment by Ketan Parmar on July 4, 2013 at 2:13pm
Comment by वीनस केसरी on July 3, 2013 at 11:26pm

मौसम की मनमानी है
सब आँखों में पानी है।

तुझको पाने की ख्वाहिश
हमने मन में ठानी है।

वाह भाई क्या कहने ... छोटी बहर पर यूँ भी कहना मुश्किल होता है मगर आपने बहुत छोटी बहर को लेकर बहुत खूबसूरत ढंग से निभाया है
मेरे ओर से बधाई स्वीकारें

जो बात विद्वतजन कहते हैं उनकी ओर ध्यान दें तो ग़ज़ल दोष मुक्त हो सकती है
मुझे व्यग्तिगत रूप से लगता है इतनी छोटी बहर पर कम से कम ९ अशआर होने चाहिए ...

जगती है आंखे तेरी
शब को यूं ही जानी है।
को
जगती है आंखे तेरी
शब तो यूं ही जानी है।  कर लें तो शायद निखार बढ़ जाए


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 3, 2013 at 9:36pm

आदरणीय केतन परमार जी, छोटी बहर की प्यारी सी गज़ल के लिये बधाइयाँ...........

Comment by Ketan Parmar on July 3, 2013 at 8:53pm

Pandey  Ji Jarur Iss baat ka dhyan rakhunga main or usme jaruri badlaav karunga

Sabhi Mitro kaa bhot bhot sukriya comments ke liye.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 3, 2013 at 8:47pm

आदरणीय केतन परमार जी, आपकी ग़ज़ल अच्छी लगी. अश्आर के संयोज्य भाव प्रभावी लगे किन्तु कुछ और बेहतर आयाम समेकित किये जा सकते थे.

रुहानी शब्द का रु छोटी मात्रा का होता है जबकि रूह का रू  बड़ी मात्रा का होता है. सो दोनों अलग हैं.  आपने ग़ज़ल में  रूहानी के रु में बडी मात्रा ली है अतः अक्षरी दोष होने से मिसरा  दर्द दिया रूहानी है   के बेबह्र होने का अंदेसा बन गया है.

बहरहाल इस प्रस्तुति हेतु आपको हार्दिक बधाइ्याँ.

शुभम्

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"चार बोनस शेर * अब तक न काम एक भी जग में हुआ भला दिखते भले हैं खूब  यूँ  लोगो फिगर से हम।।…"
2 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"221 2121 1221 212 अब और दर्द शे'र में लाएँ किधर से हम काग़ज़ तो लाल कर चुके ख़ून-ए-जिगर से…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"सपने दिखा के आये थे सबको ही घर से हम लेकिन न लौट पाये हैं अब तक नगर से हम।१। कोशिश जहाँ ने …"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"वाक़िफ़ हैं नाज़नीनों की नीची-नज़र से हम दामन जला के बैठे हैं रक़्स-ए-शरर से हम सीना-सिपर हैं…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"जी आदरणीय अमित जी, कॉपी पेस्ट हो गए थे। फिलहाल एडिट कर तीन शेर अलग से कमेंट बॉक्स में पोस्ट कर दिए…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"तीन बोनस शेर  कितना भी दिल कहे यही बोले नजर से हम। बिल्कुल नहीं कहेंगे यूं कुछ भी अधर से…"
7 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"रे हैं आज सुब्ह ख़ुद अपनी नज़र से हम दुबके रहे थे कल जो डकैतों के डर से हम /1 मय्यत पे जो भी आए वो…"
8 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब  आपने १४ अश'आर पोस्ट किए हैं। कृपया एडिट करके इन्हें ११ कर…"
8 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"२२१ २१२१ १२२१ २१२ वाक़िफ़ हुए हैं जब से जहाँ के हुनर से हम डरने लगे हैं अपने ही दीवार-ओ-दर से हम…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"मजाहिया ग़ज़ल हालात वो नहीं हैं कि निकले भी घर से हम।आते दिखे जो यार तो निकले इधर से हम। कितना भी…"
8 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service