For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्लीवत्व नदी बहती

सुनो बली है भारत भू अन्याय नहीं किंचित सहती
सत्ता के गलियारों में तब क्यों क्लीवत्व नदी बहती

सच मानो हर मन में हमको क्रान्ति जगाना आता है
पाक बंग या चीन सरीखों को समझाना आता है
सत्य धर्म की रक्षा में हैं प्राण दान भी दे देते
तुष्ट करे रणचंडी को वो चक्र चलाना आता है

वक्र दृष्टि हो जाये हम पर जो वो दृष्टि नहीं रहती
सत्ता के गलियारों में तब क्यों क्लीवत्व नदी बहती

राष्ट्रवाद बलवान बड़ा है तभी सुनो यह देश टिका

पर क्षत्रप डरपोक बड़ा या दो कौड़ी के मोल बिका
तभी शत्रु मेरे घर में घुसकर अधिकार जताता है
ज्ञानी कह देते प्रभाव भी जाने इसको क्यों कलि का

भारत माँ वीरता त्याग को कभी नहीं सुन लो कहती

सत्ता के गलियारों में तब क्यों क्लीवत्व नदी बहती

ये आह्वान सुनो मेरा है उठो भारती पुत्र चलो
वक्ष चीर दो आज शत्रु का और शीश उसका मसलो
अंशुमान की अग्नि तपाये या हिमगिरि दे हाड़ गला
किन्तु निराशा में आकर तुम मत अपने यों हाथ मलो

ये विवेक से युक्त शक्ति है नहीं किसी को भी डहती
सत्ता के गलियारों में तब क्यों क्लीवत्व नदी बहती

झाला बोला आज स्वर्ग से बोल पडा राणा सांगा
मिला मात्र अधिकार उसी को जिसने लड़कर के माँगा
क्या भिक्षा में पाण्डुपुत्र ले पांच गाँव भी पाए थे
उठा न क्यों यमदण्ड शीश अरि क्यों न उसी पर था टांगा

त्याग तपस्या योग यहीं पर मित्र तरंगित हो लहती
सत्ता के गलियारों में तब क्यों क्लीवत्व नदी बहती

सुनो बली है भारत भू अन्याय नहीं किंचित सहती
सत्ता के गलियारों में तब क्यों क्लीवत्व नदी बहती
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ

Views: 602

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 23, 2013 at 8:44am

बहुत बहुत धन्यवाद अभिनव अरुण जी आपने अभिभूत कर दिया.....पुनः आभार 

Comment by Abhinav Arun on May 22, 2013 at 9:47am


वाह वाह डॉ आशुतोष जी ज़िन्दाबाद रचना एक अरसे बाद दिखी है रोम रोम राष्ट्रवाद और समर्पण भाव से उत्फुल्लित है हार्दिक बधाई और सलाम आपकी साफगोई बेधड़कपन को !!कहते हैं न जो तटस्थ है समय लिखेगा उनका भी अपराध सो हम रचनाकारों को निर्णय तो करना है और करना होता है !!

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 22, 2013 at 9:29am

आभार राम शिरोमणि जी

Comment by ram shiromani pathak on May 21, 2013 at 7:23pm

आदरणीय बाजपेयी जी बहुत ही सुन्दर रचना/////हार्दिक बधाई स्वीकारे। सादर

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 21, 2013 at 6:05pm

बृजेश नीरज जी विजय मिश्र जी Rajesh Kumar Jha ji आप सभी की सराहना और स्नेह से मन अभिभूत है..... बहुत आभार

Comment by राजेश 'मृदु' on May 21, 2013 at 12:56pm

वाह-वाह आदरणीय केवल और केवल वाह की अधिकारी यह रचना बहुत शानदार है, यूं भी आप छंद धनी  हैं आपका इस मंच पर आना हमें एक नई दिशा प्रदान करेगा, सादर

Comment by विजय मिश्र on May 21, 2013 at 11:47am
भाव से भरी वीररस में पगी बहुत ही प्रेरक कविता ,जो आजको अपने गौरवशाली इतिहास का आइना दिखा रही है . युवाओं को जागरण का सन्देश दे रही है . साधुवाद वाजपेयीजी.
Comment by बृजेश नीरज on May 21, 2013 at 10:24am

वाह भाई जी! बहुत ही सुन्दर! वास्तव में आज देश को इन्हीं तेवरों की जरूरत है। बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय!

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 21, 2013 at 9:24am

भाई नीरज मिश्र जी, भाई अशोक कुमार जी, भाई केवल प्रसाद जी आपकी सराहना से मै अभिभूत हुआ....आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by Neeraj Nishchal on May 21, 2013 at 3:16am

आशुतोष बाजपेयी जी बहुत ही सुन्दर रचना हिंदी पर काफी अच्छी पकड़ है आपकी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम. . . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। रोटी पर अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रेरणादायी छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
yesterday
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Thursday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service