For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : सोन मछली आपको रोहू नज़र आने लगे

बहर : २१२२ २१२२ २१२२ २१२

----------------------------

जिस घड़ी बाजू मेरे चप्पू नज़र आने लगे

झील सागर ताल सब चुल्लू नज़र आने लगे

 

झुक गये हम क्या जरा सा जिंदगी के बोझ से

लाट साहब को निरा टट्टू नज़र आने लगे

 

हर पुलिस वाला अहिंसक हो गया अब देश में

पाँच सौ के नोट पे बापू नज़र आने लगे

 

कल तलक तो ये नदी थी आज ऐसा क्या हुआ

स्वर्ग जाने को यहाँ तंबू नज़र आने लगे

 

भूख इतनी भी न बढ़ने दीजिए मेरे हुजूर

सोन मछली आपको रोहू नज़र आने लगे

 ---------------------

स्वरचित एवं अप्रकाशित

Views: 847

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 1, 2013 at 7:25pm

बहुत बहुत शुक्रिया संदीप साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 1, 2013 at 7:24pm

rajesh kumari जी, बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरमा। स्नेह यूं ही बनाये रखें। ग़ज़ल में घमंडी शेर भी चल जाते हैं :)

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 1, 2013 at 7:22pm

विजय मिश्र जी, बहुत बहुत धन्यवाद जनाब, आगे भी स्नेह यूँ ही बना रहे।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 1, 2013 at 7:22pm

वीनस केसरी जी, जनाब आपको पसंद आई तो मन को थोड़ा सुकून मिला। बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 1, 2013 at 7:21pm

सौरभ जी आपके स्नेह से अभिभूत हूँ। स्नेह बनाये रखें। बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 1, 2013 at 7:19pm

बहुत बहुत धन्यवाद आशीष नैथानी 'सलिल' जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 1, 2013 at 7:19pm

बहुत बहुत धन्यवाद बृजेश कुमार सिंह जी 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 1, 2013 at 7:16pm

बहुत बहुत शुक्रिया Dr.Prachi Singh जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 1, 2013 at 7:15pm

 बहुत बहुत धन्यवाद Laxman Prasad Ladiwala जी,रोहू एक मछली है जो खाई जाती है।

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 1, 2013 at 2:50pm

वाह वाह आदरणीय धर्मेन्द्र सर जी सादर प्रणाम
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल क्या बात है
इक इक शेर मे आपकी छाप साफ नज़र आती है
हर शेर पे ढेरों दाद क़ुबूल फरमाइए

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
10 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
11 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
12 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
13 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
16 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
20 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
22 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service