For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्वप्न सत्य सा लखता जाऊँ...

तुमको जब मैं संग न पाऊँ
व्याकुल मन कैसे समझाऊँ 
बेकल हो यह सोच रहा कैसे
तुझसे तुझको मैं चुराऊँ

मृदु भावों से कलम भरी है 
प्रीत भरी मन की नगरी है
धन वैभव प्रिय पास न मेरे 
शब्द बना मोती बरसाऊँ

मिलो जो तुम तो खो जाऊं मैं 
जुदा स्वयं से हो जाऊँ मैं 
स्वप्न अगर ये स्वप्न ही सही 
स्वप्न सत्य सा लखता जाऊँ

आठों पहर साथ हो तेरा 
जीवन का हर सांझ सवेरा 
नाम तेरे कर दूँ, सौरभ बन 
श्वांस में तेरी मैं घुल जाऊँ ll—प्रवीण कुमार ‘पर्व’

Views: 473

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by praveen on December 10, 2012 at 12:50am

Er. Ganesh Jee "Bagi" सर सादर आभार आपका..


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 9, 2012 at 9:35am

//तुमको जब मैं संग न पाऊँ
व्याकुल मन कैसे समझाऊँ 
बेकल हो यह सोच रहा है
तुम्हे तुम्ही से क्यों न चुराऊं//

वाह वाह शानदार अभिव्यक्ति |

मिलो अगर तो मैं खो जाऊं
जुदा स्वयं से मैं हो जाऊँ

स्वप्न अगर तो स्वप्न सही ये
स्वप्न सत्य सा लखता जाऊँ

वाह , बहुत ही सुन्दर भाव , बधाई हो |

Comment by praveen on December 8, 2012 at 11:19pm

seema agrawal दीदी हार्दिक आभार आपका..

Comment by seema agrawal on December 8, 2012 at 7:34pm

सुन्दर प्रभावशाली गीत प्रवीण जी   

मिलो जो तुम तो खो जाऊं मैं 
जुदा स्वयं से हो जाऊँ मैं 
स्वप्न अगर ये स्वप्न ही सही 
स्वप्न सत्य सा लखता जाऊँ...पंक्तियों के लिए विशेष बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"जी, सादर आभार।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. रिचा जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"जी सहृदय शुक्रिया आदरणीय इस मंच के और अहम नियम से अवगत कराने के लिए"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आपका सुधार श्लाघनीय है। सादर"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। सादर"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। सादर"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय"
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service