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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २७ (Now Closed)

माननीय साथियो,


"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के २७ वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. जैसा कि आप सब को ज्ञात ही है कि तरही मुशायरा दरअसल ग़ज़ल विधा में अपनी कलम की धार चमकाने की एक कवायद मानी जाती है जिस में किसी वरिष्ठ शायर की ग़ज़ल से एक खास मिसरा चुन कर उस पर ग़ज़ल कहने की दावत दी जाती है.  इस बार का मिसरा-ए-तरह जनाब श्याम कश्यप बेचैन साहब की ग़ज़ल से लिया गया है जिसकी बहर और तकतीह इस प्रकार है: 

"तपकर दुखों की आँच में कुछ तो निखर गया

२२१          २१२१            १२२१          २१२ 
मफऊलु      फाइलातु     मफाईलु      फ़ाइलुन 
(बह्र: बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ)
 
रदीफ़ :- गया 
काफिया :- अर (उधर, उतर, इधर,बिखर, पसर, गुज़र आदि)


मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २८ सितम्बर दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३० सितम्बर दिन रविवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा | 

अति आवश्यक सूचना :-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के इस अंक से प्रति सदस्य अधिकतम दो गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं |
  • शायर गण एक दिन में केवल एक ही ग़ज़ल प्रस्तुत करें
  • एक ग़ज़ल में कम से कम ५ और ज्यादा से ज्यादा ११ अशआर ही होने चाहिएँ.
  • शायर गण तरही मिसरा मतले में इस्तेमाल न करें
  • माननीय शायर गण अपनी रचनाएँ लेफ्ट एलाइन एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.  
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें.
  • नियम विरूद्ध एवं अस्तरीय रचनाएँ बिना किसी सूचना से हटाई जा सकती हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी. . 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २८ सितम्बर दिन शुकवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें | 



मंच संचालक 
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह) 
ओपन बुक्स ऑनलाइन

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Replies to This Discussion

आदरणीय मोहतरम लक्ष्मण भाई सा!

//तेरी सताइश का है अंदाज़े  बयाँ और

मैं लाऊं कहाँ से तेरे वास्ते जुबां और//

आपकी बातें उलजलूल नहीं, पर मजाहिया ज़रूर हैं! शुक्रिया 

सादर.

शुक्रिया

वाह वाह वाह राज़ साहिब, इस दफा बहुत ही सधा हुआ प्रयास हुआ है. आपका कलाम दिल को सुकून पहुंचाने वाला है. बावज्न शेअरों के मुतल्लिक भाई वीनस जी ने पहले ही इशारा कर दिया है. बहरहाल इस खूबसूरत प्रयास के लिए मेरी दिली मुबारकबाद कबूल फरमाएँ.  

बहुत बहुत शुक्रिया भाई योगराज जी, आपकी दिली मुबारकबाद का हम दिल से शुक्रिया अदा करते हैं. सादर! 

शेरोसुखन की बात थी तू था ख्याल में

तेरे बगैर सोचने का भी हुनर गया

वाह !!!!!!!! कमाल का शेर...........

तहेदिल से शुक्रिया अरुण जी! 

 वाह राज साहब आपकी ये गजल तो और भी बेमिसाल है

हर शेर एक से बढ़ कर एक है 

हार्दिक बधाई 

शुक्रिया जनाब उमाशंकर जी. आपका हृदय से आभार.

//कारेवफ़ा का तर्ज़ भी समझेंगे बावफ़ा

फ़ित्ना है इश्क इसलिए ज़ेरोज़बर गया

 

तुम भी बदलते दौर में मुझसे बदल गए

उल्फत का भूत मेरे भी सर से उतर गया//

इस खूबसूरत गज़ल के लिए दिली मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं जनाब !

टूटा यूँ इख्तियार कि सब कुछ ठहर गया,
इक तेरे बदल जाने से सब कुछ बिखर गया ll

 

दुश्वारियाँ से दिल को बचाया नहीं,चलो,
तप कर दुखों की आँच में कुछ तो निखर गया ll

 

वीरां दिल की दुनिया है कोई भी नहीं है,
ये इज़्तिराब[१] क्यूँ मेरे हर सू पसर गया ll

 

उफ़ गुनगुनाती शाम की उठती हुई पलकें,
दिल को बचाने का मेरे सारा हुनर गया ll

उल्फत को बंदगी की तरह हम निभा गए,
इल्जाम-ए-कुफ्र[२] देके वो वादा मुकर गया ll

 

लफ़्ज़ों को तराशा है 'पर्व' हमने इस तरह, 
जज्बाते लफ्ज़ हर मिरा उसके ही घर गया ll —प्रवीण कुमार ‘पर्व’

 शब्दार्थ 

[१] इज़्तिराब—बैचनी,व्याकुलता

[२] इल्जाम-ए-कुफ्र— धर्म विरोधी होने का इल्जाम

निवेदन:-
पहले शेर में त्रुटि रह गयी हैं...अत: एडमिन जी से निवेदन हैं इससे एडिट कर दे इस प्रकार....
'टूटा यूँ इख्तियार कि सब कुछ ठहर गया,'
 आभार सहित धन्यबाद !!

 

ऐडमिन {2012092903}

वांछित सुधार कर दिया गया है प्रवीन जी.

 

सादर आभार एडमिन जी..

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