For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"OBO लाइव महा उत्सव" अंक १८(Now closed with 1542 replies)

आदरणीय साहित्य प्रेमियों

सादर वन्दे,

"ओबीओ लाईव महा उत्सव" के १८ वे अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. पिछले १७  कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने १७  विभिन्न विषयों पर बड़े जोशो खरोश के साथ और बढ़ चढ़ कर कलम आजमाई की. जैसा कि आप सब को ज्ञात ही है कि दरअसल यह आयोजन रचनाकारों के लिए अपनी कलम की धार को और भी तेज़ करने का अवसर प्रदान करता है, इस आयोजन पर एक कोई विषय या शब्द देकर रचनाकारों को उस पर अपनी रचनायें प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है:-

"OBO लाइव महा उत्सव" अंक  १८    

.
विषय - "सपने"

  आयोजन की अवधि- ७ अप्रैल २०१२ शनिवार से ९ अप्रैल  २०१२ सोमवार तक  

तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दे डालें अपने अपने सपनो को हकीकत का रूप. बात बेशक छोटी हो लेकिन घाव गंभीर करने वाली हो तो बात का लुत्फ़ दोबाला हो जाए. महा उत्सव के लिए दिए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है |

उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है: -

  1. तुकांत कविता
  2. अतुकांत आधुनिक कविता
  3. हास्य कविता
  4. गीत-नवगीत
  5. ग़ज़ल
  6. हाइकु
  7. व्यंग्य काव्य
  8. मुक्तक
  9. छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका इत्यादि) 

अति आवश्यक सूचना :- "OBO लाइव महा उत्सव" अंक- 18  में सदस्यगण  आयोजन अवधि में अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ  ही प्रस्तुत कर सकेंगे | नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा गैर स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा, यह अधिकार प्रबंधन सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी |


(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो शनिवार ७ अप्रैल लगते ही खोल दिया जायेगा ) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तोwww.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |

"महा उत्सव"  के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...

"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

मंच संचालक

धर्मेन्द्र शर्मा (धरम)

Views: 20849

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

बहुत खूबसूरत दोहे

सादर आभार/नमन आदरणीय तिलक सर...


आदरणीय हबीब जी, आपके दोहे दो रंग के पढ़ कर बरबस निदा फाज़ली साहिब के दोहे याद आ गया. ये अन्याय ही होगा यदि मैं दो पंक्तियों में बहुत सुन्दर कहकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड लूँ. इसलिए हर रंग के लिए प्रतिक्रिया करूँगा और वो भी हृदय से.

//सपने कांटे एक हैं, चुभ चुभ करते तंग।
मोती सागर में बसे, या आँखों के संग। //
बहुत ही दार्शनिक अंदाज़ से शुरात की है आपने...बहुत खूब.

//अँखियों में लहरा रहे, फसल घने आबाद।
सपने जीवन के लिए, बरखा पानी खाद॥ //
सपनों की सही जमीन तलाश की है इस दोहे में आपने....अद्वितीय !!

//साहस सा गर साज हो, आशा हो आलाप।
सीढ़ी सपनों की लिए, आसमान भी नाप॥ //
एक सच्ची सकारात्मक सोच होने से सब कुछ पाना आसान है...कितनी गहरी बात कितने सादा अंदाज़ में आपने कह दी...बहुत खूब.

//हर रेखा कर की कहे, किस्मत तेरे हाथ।
पंछी सपनों को गुंथे, तिनके भी दें साथ॥ //
वाह, नि:शब्द कर गया ये दोहा तो....कायनात की हर ताक़त हमारा साथ देती है अगर सच्ची लगन और सपने हों तो.

//अपनी मंजिल तय करें, जैसे उड़ते बाज।
खोल पंख आराम तज, अंबर दे आवाज॥ //
वाह, क्या लहजा है...कमाल का दोहा....

//यूं सपनों को साधते, कदम बढ़ा अविराम।
नैनों में सूरज पले, फिर कब आये शाम? //
मंजिल आँखों में हो तो आराम आ भी नहीं सकता प्रभु....बहुत खूब कहा आपने.

//नींद उड़ा दे ख्वाब जो, उनसे करना प्यार।
सपनों का मत नींद से, रिश्ता रखना यार॥//
ये दोहा सबसे वजनी है....एक बार के लिए तो सिट्टी पिट्टी गम कर देता है...अत्यंत गहन और महा सार्थक दोहा !!

इतने सुन्दर और भावपूर्ण दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई...आपकी इस कृति ने तो मंच लूट लिया है आदरणीय हबीब भाई....

आदरणीय धरम भाई जी, दोहे दर दोहे आपकी आपकी मर्म को छूती समीक्षा शब्द दर शब्द ह्रदय में संघनित होकर निःशब्द कर गए हैं मुझे...

पुलकित मन का सादर आभार स्वीकार करें आदरणीय बंधुवर...

आदरणीय हबीब भाई, ये टिपण्णी दोहे के दूसरे रंग के लिए....

//सपने रिश्ते एक से, पल में बिखरे टूट।
जड़ तो सारे एक हैं, शाखाओं में फूट॥ //
प्रकृति के कितने करीब और मन मष्तिष्क के कितने गहरे अंतर्द्वंद्व....दिल को भा गया.

//मैया सपने कातती, तकली बन नौ माह।
बिटवा दिखला दे उसे, वृद्धाश्रम की राह॥ //
बहुत ही गहरी वेदना को अभिव्यक्ति दे गया ये दोहा...आँखें नम कर गया सच में.

//अभी विदा हो वह गई, कितने सपने संग।
लालच के घर में धुले, नयनों के सब रंग॥ //
नव-ब्याहता की पीड़ा को बड़ी सशक्त अभिव्यक्ति दी है इस दोहे ने....साधुवाद

//बच्चे मेहनत कर रहे, सपने लेकर हाथ।
किस्मत की देवी गई, आरक्षण के साथ॥ //
गहरा कटाक्ष और समसामयिक विषय पर एक नयी बहस के लिए आमंत्रित करता दोहा!

//भाई के मुख में कहाँ, वो नेहिल मुस्कान।
अपने सपनों के लिए, रिश्ते सब क़ुरबान॥ //
बदलते रिश्तों की कलई खोल गया ये दोहा कितने सादा शब्दों में... बहुत सही कहा आपने आदरणीय हबीब जी

//रिश्तों में यदि रंध्र हों, सपने जायेँ रूठ।
हरियाली खो कर भला, मुस्कायेगा ठूंठ? //
बदलते पर्यावरण और बदलते रिश्तों के ठूंठ होने की अवस्था को बहुत ही संभाल कर उकेरा है आपने....बहुत बहुत गहरे भाव.

//घर ना घर से अब रहे, सपने खोते रूप।
आँगन में आते हुये, डर डर जाती धूप॥ //
संयुक्त परिवार से एकल परिवार और कारोबारी विवशताओं को बहुत सहज भाषा में कहा है आपने इस दोहे में...

एक एक दोहा जीवन दर्शन और वर्तमान परिवेश की फुआर छोड़ता सा प्रतीत हुआ....मेरे पास तो जैसे शब्दों का अकाल सा ही पड़ गया है आपकी रचनाओं की प्रशंसा करने के लिए...और क्या कहूँ आदरणीय.

आदरणीय धरम भाई जी, सच तो यह है की दूसरे रंग के दोहों को रचते हुए लगभग आँखें नम थीं... आपकी नम आँखें देख कर मेरी आँखें फिर से नम हो गईं... जड़ तक पहुच कर आपकी  समीक्षा दोहों को नया आयाम दे जा रही है...

यदि कुछ सार्थक रच पाया तो यह ओ बी ओ में गुरुजनों के मार्गदर्शन का ही प्रभाव हो सकता है....

सादर आभार नमन.

जय ओ बी ओ


आपके सादा जीवन उच्च विचार से मैं सदैव प्रभावित रहा हूँ आदरणीय हबीब जी...

एक एक दोहा जीवन दर्शन और वर्तमान परिवेश की फुआर छोड़ता सा प्रतीत हुआ....मेरे पास तो जैसे शब्दों का अकाल सा ही पड़ गया है आपकी रचनाओं की प्रशंसा करने के लिए...और क्या कहूँ आदरणीय

आदरणीय धरम जी और हबीब जी आप दोनों को मैं दाद देता हूँ, इतनी अच्छी कविता मंच पर रखने के लिए !

संजय जी दोहों के माध्यम से सपनों की परिभाषा को अलग ढंग से पेश किया है सुन्दर ...... सुरिन्दर रत्ती - मुंबई

सपने रिश्ते एक से, पल में बिखरे टूट।

जड़ तो सारे एक हैं, शाखाओं में फूट॥

उत्साह वर्धन के लिए सादर आभार आदरणीय सुरिंदर भाई जी...

सुगढ़-सुगढ़ मोती चुना, गूँथी सुन्दर माल

हर दोहा उन्नत बना, संजय करें कमाल  !!  ....

बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें,  भाई संजय ’हबीब’ ..

मिली गुरु की सराहना, बढ़ा रक्त संचार.

शाबाशी है आपकी, रचना का आधार.

सादर नमन/आभार गुरुवर.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
15 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service