अभी चलना है बाकी, रास्ते को मंजिल मान लूं कैसे तुम ही बताओ, मैं कातिल को मसीहा मान लूं कैसे चारों तरफ फैला है अंधेरा, मैं रात को दिन मान लूं कैसे महाभारत की कथा में कौरवों द्वारा वनवास के दौरान पाण्डवों को लाक्षागृह में जलाकर मारने की साजिश की गई थी। कौरवों की यह साजिश सफल नहीं हो पाई। इसका बड़ा कारण पाण्डवों के कुशल एवं चतुर नीतिकार विदुर थे। पाण्डवों के रूप में सत्य एवं धर्म के प्रति निष्ठावान विदुर ने अधर्मी कौरवों से उनकी रक्षा की। महाभारत के दौरान छल और कपट से हस्तिनापुर की राजगद्दी हासिल करने के लिए तरह-तरह के षडय़ंत्र करने वाले दुर्योधन को बार-बार अपनी जीत और अपनी साजिश के सफल होने की गलतफहमी बनी रही। लेकिन कौरवों की साजिश कभी सफल नहीं हुई। सर्वविदित है कि अंत में कौरव पराजित हुए और जीत सत्य की हुई। महाभारत काल यह प्रसंग उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री मेजर जनरल (अप्रा) भुवनचंद खण्डूड़ी की कोटद्वार में हुई हार के बाद चरितार्थ हुआ दिखाई पड़ता है। खण्डूड़ी की अप्रत्याशित हार से भाजपा के साजिशकर्ताओं को भले ही कोई दु:ख न हो या फिर उन्हें अपनी साजिश के कामयाब होने पर खुशी का एहसास हो रहा हो, लेकिन उनकी इस पराजय से उत्तराखण्ड का हर वह आदमी दु:खी है जो उत्तराखण्ड को फलते फूलते देखना चाहता है, जो भ्रष्टïाचार से मुक्ति चाहता है। उत्तराखण्ड का हर वह व्यक्ति जो उत्तराखण्ड को देश के आदर्श एवं समृद्घ राज्य के रूप में देखना चाहता है वह हर व्यक्ति इस पराजय से आहत है। खण्डूड़ी के व्यक्तित्व की खामियां अगर कोई है तो वह यह है कि वे ईमानदार हैं, स्पष्टïवादी हैं, छलकपट से दूर हैं, राजनैतिक प्रपंचों में माहिर नहीं हैं। क्षेत्र एवं जातिवाद जैसी मानसिक संर्कीणताओं से ऊपर हैं। उत्तराखण्ड के विकास के प्रति ईमानदार सोच ही नहीं रखते बल्कि उत्तराखण्ड के आम जनमानस के दु:ख को अन्र्तमन से अनुभव भी करते हैं और उन्हें दूर करने का प्रयास भी करते हैं। ये सब खामियां उत्तराखण्ड को देश का भाल बताकर उसे अपने स्वार्थों के लिए कलंकित करने वाले भाजपा के नेताओं को रास नहीं आती। खण्डूड़ी को चुनाव में शिकस्त देने की साजिश करने वाले उन्हें चुनाव में हरा सकते हैं लेकिन ईमानदार एवं साफ सुथरी छवि वाले उत्तराखण्ड के सच्चे सपूत बीसी खण्डूड़ी के उत्तराखण्ड प्रेम और उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति को पराजित नहीं कर सकते। षडयंत्रकारियों ने कोटद्वार के कुछ लोगों को गुमराह कर भले ही विधानसभा चुनाव में शिकस्त दे दी हो लेकिन उत्तराखण्ड के लोगों के दिलों से उन्हें दूर नहीं कर पाए। कोटद्वार विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं ने खण्डूड़ी के खिलाफ जनादेश देकर एक राजनैतिक निर्णय नहीं बल्कि बड़ी भूल की है। इस भूल के लिए उत्तराखण्ड का इतिहास शायद ही उन्हें माफ कर पाए। कोटद्वार के लोगों को समझ लेना चाहिए कि यह ऐ प्रत्याशी के रूप में खण्डूड़ी का नहीं बल्कि स्वयं उनका दुर्भाग्य है। इसके साथ ही खण्डूड़ी को भी यह समझना होगा कि राजनीति के इस महाभारत में भ्रष्टाचार में लिप्त षडयंत्रकारी कौरवों से बचने के लिए चाटुकारों की नहीं बल्कि ईमानदार तथा सत्य के प्रति निष्ठावान विदुर जैसे शुभचिंतकों एवं नीतिकारों की आवश्यकता है।
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भाई हरीश जी, आप उत्तराखण्ड की घटनाओं को निकट से देख-भोग रहे हैं. जबकि हम बाहर से घटनाओं को पढ़-सुन कर अनुमान भर ही लगा पाते हैं. लेकिन आपकी बात हर उस क्षेत्र के लिये सत्य है जहाँ षड्यंत्र हावी होकर अपनी पैठ बना लेता है. किन्तु, यह भी सही है कि सत्य का सूर्य ओट में भले हो जाये, उसे कोई हमेशा के लिये अगवा नहीं कर सकता.
हरीश जी यहाँ पर तो इमानदारों सच्चे देश भक्तों की कोई अहमियत नहीं है गुंडे पनप रहे हैं क्यूँ की कलयुग है ये ...अब खंडूरी जी की हार से तो यह स्पष्ट हो ही गया है किन्तु जनता ने भी लगता है अपना विवेक और बुद्धि ताक पर रख दी है
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