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तरही मिसरा
'हाफिज़ नासिर' की मशहूर ग़ज़ल का इक मिसरा
"तूने क्या मुझको मुहब्बत में बना रक्खा है "
वज्न- २१२२११२२११२२२२
काफिया- आ की मात्रा
रद्दीफ़- रक्खा है
तो आ जाइये मुशायरे की रौनक बढ़ाने के लिए अपनी ग़ज़लों के साथ, ग़ज़ल नहीं तो कम से कम एक दो शेर ही सही|

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मै सोचा ना था एक दी आप सब मिलोगे ,
मेरी किस्मत सभी को दोस्त बना रखा हैं
waah, mujhe to padhne me hi bhut maza aa raha hai
वाह वाह, आपकी ग़ज़ल तो जान डाल दी इस तरही मुशायरा मे, बहुत खूब आज़र साहब, जबरदस्त ग़ज़ल कही है आपने,

पिछले सप्ताह मेरे बड़े भाई श्री नवीन चतुर्वेदी जी की पहल पर प्रायोगिक तौर पर शुरू किये गए तरही मुशायरे का आज समापन किया जा रहा है| कई शायरों ने इस मुशायरे में बढचढ कर हिस्सा लिया तो कईयों ने एक्के दुक्के शे'र ही चलाये| 

कई सदस्यों की ज़ोरदार मांग है कि ऐसे आयोजन हर सप्ताह किये जाएं| अतः इस मांग को मद्देनज़र रखते हुए अगले सप्ताह के तरही मिसरे की घोषणा कल अर्थात गुरुवार को की जाएगी और मुशायरे की शुरुवात शनिवार सुबह से की जाएगी|

(आदरणीय संजीव सलिल जी द्वारा "तरही मुशायरा" के लिये भेजी गई ग़ज़ल जो मैं हुबहू यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ)
"तूने क्या मुझको मुहब्बत में बना रक्खा है "
वज्न- २१२२११२२११२२२२ = २३
काफिया- आ की मात्रा
रद्दीफ़- रक्खा है

हास्य मुक्तिका

संजीव 'सलिल'

आत्मीय!
वन्दे मातरम.
मैं गजल तो कहता नहीं, मुक्तिका की कोशिश है. यदि आपके पैमाने पर ठीक हो तो ही दें अन्यथा छोड़ दें.

हास्य मुक्तिका

संजीव 'सलिल'

मेरे दिल ने तो तुझे रब्बा बना रक्खा है.
तूने मेकप का मुझे डब्बा बना रक्खा है..

मैं तो दीवाना हूँ तेरा तहे-दिल से जानम.
तूने पर्दा किया, क्या बब्बा बना रक्खा है..

मैंने दामन को जो थामा तो झटकती क्यों हो?
मैं तो नेता नहीं, जो धब्बा बना रक्खा है..

गले मिलती हो अकेले में, कोई आये तो.
दूर हो जाती हो क्या अब्बा बना रक्खा है..

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"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
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सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
17 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
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Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
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Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

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