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मैं और मेरी शायरी

मैं और मेरी शायरी


मुझे अपनी खता मालूम नहीं
पर तेरी खता पर हैराँ हूँ
तकदीर के हाथों बेबस हूँ
अफ़सोस है फिर भी तेरा हूँ

दीपक शर्मा कुल्लुवी

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Comment by Rana Pratap Singh on August 17, 2010 at 11:03pm
गज़ब की शायरी है...
Comment by विवेक मिश्र on August 17, 2010 at 2:10am
वाह-वाह.. क्या बात कही है कुल्लुवी साहब ने.

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