For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत: काँटों से नहीं मुझको तो,फूलों से डर लगता है..........................

काँटों से नहीं मुझको तो फूलों से डर लगता है.
मतलब परस्त दोस्तों के वसूलों से डर लगता है.


घबडाते  नहीं है  अब हम तो  गम के आने-जाने से. 
हाँ,चौक जरूर जाते है खुशियों के झलक दिखाने  से,
अश्कों की आँख-मिचौली में नैनों के सपने टूट गये.
सदा डरते रहे हम गैरों से, अपनों के हाथों लूट  गये.

 

अब तो बदनामों से ज्यादा  मक़बूलों से डर लगता है.
मतलब परस्त दोस्तों के वसूलों से डर लगता है. 

 

अफ़सोस,ये जिंदगी दुनिया के रंग में हम ऐसे घूल गये.
जिसके खातिर भूला तुझको वो मुझको भूल गये.
रहते थे जो कल तलक एक साए की तरह
आज देखते है मुझे दूर से पराये की तरह.

 

डूबी कश्ती को सागर के हर,बुलबुलों से डर लगता है.
मतलब परस्त दोस्तों के वसूलों से डर लगता है.

Views: 508

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Noorain Ansari on August 9, 2011 at 11:05am
रवि जी........
बहूत बहूत धन्यवाद..हौसला अफजाई के लिए,,,
हम तो आपके भोजपुरी कविताओं के बहूत बड़े दीवाने है.................
Comment by Noorain Ansari on August 9, 2011 at 11:05am
गणेश जी प्रणाम,
बहूत बहूत धन्यवाद, आप ने अपने अनमोल शब्दों से मेरी हौसला अफजाई की..


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 6, 2011 at 9:55am

काँटों से नहीं मुझको तो फूलों से डर लगता है.
मतलब परस्त दोस्तों के वसूलों से डर लगता है.

 

वाह नुरैन भाई वाह, बहुत ही खुबसूरत गीत आपने प्रस्तुत किया है, बहुत  ही उम्द्दा ख्याल है, बहुत बहुत बधाई नुरैन भाई |

Comment by Rash Bihari Ravi on August 5, 2011 at 1:41pm

अश्कों की आँख-मिचौली में नैनों के सपने टूट गये.
सदा डरते रहे हम गैरों से, अपनों के हाथों लूट  गये.

bahut khubsurat lagta hai ye aap ne hmare liye likh hain

Comment by Noorain Ansari on August 5, 2011 at 12:22pm
आशीष जी..
बहूत बहूत धन्यवाद..हौसला अफजाई के लिए....
Comment by आशीष यादव on August 4, 2011 at 10:16pm

bahut sundar geet. aaj ke jiwan ki hakikat hai.

अब तो बदनामों से ज्यादा  मक़बूलों से डर लगता है.

ye pankti wakai bahut achchhi hai.

bahut-bahut badhai.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service