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नज़र कहीं निशाना ताज़ हो रहा बवाल है
मदद नहीं किसान की गरीब घर सवाल है।

ज़मीं सदा इन्हीं की मौत है गरीब की यहाँ
वो मर रहा है भूख से जनाब याँ बवाल है।

कि आइये कभी गंगा तटों जमुन जहान में
वो ज़िन्दगी रहती कहाँ सनम कहाँ कवाल है।

लड़़ो मरो हक़ूक हित दिखाइये वो जख्म भी
जो माँगते थे मिल गया वो फिर कहाँ सवाल है ।

तुम्हारी ही बिरादरी तुम्हारे ही युवा जहाँ
जवान खौफ वो रहा पड़ा वो अस्पताल है।

दंगाइयों की फिक्र है कि चाहिय़े रिहाई है
वो रहबरों की जान हैं वही रहा कमाल है ।

किसान जीस्त खूब हो खराब हो बहार हो
इन्हे तो बस है ख्वाब वो ही दिल्ली घर सवाल है ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Chetan Prakash on February 12, 2021 at 7:24am

आदाब, भाई, लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर', ग़ज़ल आपकी प्रशंसा पा सकी, मैं इसके लिए धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। साभार !

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 5, 2021 at 7:03am

आ. भाई चेतन जी , सादर अभिवादन । वर्तमान परिप्रेक्ष में उत्तम गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

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