For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- बलराम धाकड़ (हम अपनी ज़िंदगी भर ज़िंदगी बर्दाश्त करते हैं)

1222 1222 1222 1222
सुबह से शाम तक नाराज़गी बर्दाश्त करते हैं।
हम अपने अफ़सरों की ज़्यादती बर्दाश्त करते हैं।
अज़ल से हम उजाले के रहे हैं मुन्तज़िर लेकिन,
मुक़द्दर ये कि अबतक तीरगी बर्दाश्त करते हैं।
सँभालो लड़खड़ाते अपने क़दमों को, ख़ुदा वालो,
ये पैमाने तो कितनी बेख़ुदी बर्दाश्त करते हैं।
सुना है, मौत महबूबा है, उसकी इंतज़ारी में,
हम अपनी ज़िंदगी भर ज़िंदगी बर्दाश्त करते हैं।
कुछ ऐसे शख़्स जो हमदर्दियों के कारोबारी हैं,
वो अपनी नेकियों से हर बदी बर्दाश्त करते हैं।
तुम्हारे कान के झुमके सहमकर, कसमसाकर भी,
तुम्हारी ज़ुल्फ़ की पेचीदगी बर्दाश्त करते हैं।
बस अपने दो निवालों के लिए मीलों तलक उड़कर,
कबूतर चिट्ठियों की तस्करी बर्दाश्त करते हैं।
हज़ारों खूबियां और ना-शनासा इश्क़ से होना,
चलो हम आपमें इतनी कमी बर्दाश्त करते हैं।
मौलिक/अप्रकाशित।
- बलराम धाकड़ ।

Views: 548

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Balram Dhakar on February 14, 2019 at 9:56pm

आदरणीय समर सर, ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

कबूतर वाले शे'र में कुछ बदलाव की कोशिश करूँगा।

आदरणीय मिथिलेश वामनकर सर को यह शे'र सुनाया तो था किंतु आपकी टिप्पणी बाद उनके नज़रिये में शे'र के प्रति बदलाव भी आ सकता है... हा हा हा...

सादर।

Comment by Samar kabeer on February 13, 2019 at 4:20pm

जनाब बलराम धाकड़ जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मतला तो आप पर फिट बैठता है,हा हा हा..

'बस अपने दो निवालों के लिए मीलों तलक उड़कर,
कबूतर चिट्ठियों की तस्करी बर्दाश्त करते हैं'
ये शैर तार्किकता की दृष्टि से मुनासिब नहीं,क्योंकि आज के दौर में कबूतरों से ये काम नहीं लिया जाता,दूसरी बात ये कि हर कबूतर ये काम नहीं करता,वो कुछ ख़ास कबूतर होते हैं,जिन्हें "नामाबर" कहते हैं,और ये काम वो दो निवालों के लिए नहीं करते,ग़ौर करें ।
Comment by Balram Dhakar on February 13, 2019 at 11:22am

आदरणीय सुशील जी, ग़ज़ल पर इस सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

सादर।

Comment by Balram Dhakar on February 13, 2019 at 11:21am

बहुत बहुत शुक्रिया जनाब सुरख़ाब बशर साहब।

सादर।

Comment by Sushil Sarna on February 12, 2019 at 7:57pm

आदरणीय बलराम धाकड़ जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by Surkhab Bashar on February 12, 2019 at 7:49pm

जनाब बलराम धाकड़ जी उम्दा ग़ज़ल के लिये मुबारक बाद कुबूल करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
14 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
14 hours ago
Tilak Raj Kapoor updated their profile
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service