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कृष्ण तुमने छल किया है.

छलिया हो तुम

सारी दुनिया को काम पर लगा दिया

कह कर ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’.

 

फ़ल की आशा किससे न करे?

तुमसे?

चलो, तुम तो सखा हो

मीत को सताना तुम्हारा हक है.

प्रेम भी तो करते हो.

पर तुम्हारे जो ये कारिन्दें है न,

जीना मुश्किल कर दिया है.

हक मांगने जाओ, तो तुम्हारी बात दुहराते हैं.

अब, तुम तो आओगे नही

हमसे काम लेने.

वैसे तुम्हारा काम तो मै बिना दाम भी कर देता.

तुम हो ही इतने मोहक, मोहन.

 

पर वह जो दिन रात सामान्य ज्ञान रट रहा है

ट्यूसन करके फ़ार्म भरता है

पेपर भी अच्छा ही करता है.

पर ‘मक्खन’ कोई और ले जाता है.

समझाओ न इन्हें

ये खुद को  यदुनन्दन ‘कन्हैया’ मान बैठे है.

‘कर्मण्ये...’ का प्रवचन देते है.

और माखन (क्रीम) की हर परत

उठा ले जाते है

और तो और कहते फ़िरते है

‘मै तो बहियन को छोटो,

छिको किस विध पायो.’

 

तुमने वादा किया था

‘यदा यदा धर्मस्य ...’ वगैरह वगैरह

देखों न ‘पांचालियों’ की स्थिति.

तुमने हमें धर्म और कर्म में उलझा दिया

और वे पाप करते रहे.

 

‘जैसा कर्म करोगे, वैसा फ़ल देगें भगवान

ये है गीता का ज्ञान’

पर रेत माफ़ियाओं ने तो उसे ट्रक से कुचल दिया न.

 

हां, तुम्हारे कदमों की आहट कभी आती तो हूं

बडी खुशी से पलक पांवडे बिछा कर इन्तजार करने लगता हूं

दरवाजे तक खोल देता हूं

पर तभी कोई कंस, कोई जरासंध जीत जाता है.

 

कृष्ण, एक बार फ़िर से गीता का उपदेश दो.

‘कर्म’ समझाओ न.

आओ.

आओगे न.

.

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2016 at 3:28pm

आदरणीय विनय भाई , वर्तमान पर अच्छा हास्य व्यंग्य की रचना की आपने , दिल से बधाइयाँ ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 10, 2016 at 10:38am

सुंदर अतिसुंदर

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