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जब करूंगा अंतिम प्रयाण
ढहते हुए भवन को छोडकर
निकलूँगा जब बाहर
किस माध्यम से होकर गुज़रूँगा ?
वहाँ हवा होगी या निर्वात होगा?
होगी गहराई या ऊंचाई में उड़ूँगा
मुझे ऊंचाई से डर लगता है
तैरना भी नहीं आता
क्या यह डर तब भी होगा
मेरा हाथ थामे कोई ले चलेगा
या मैं अकेले ही जाऊंगा
चारो ओर होगा प्रकाश
या अंधेरे ने मुझे घेरा होगा
मुझे अकेलेपन और अंधकार से भी डर लगता है
क्या यह डर तब भी होगा?
भय तो विचारों से होते हैं उत्पन्न
क्या विचार तब भी मेरा पीछा करेंगे ?
लक्ष्य सुज्ञात होगा
या भटकूंगा लक्ष्यहीन
क्या होगा तब ?

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Neeraj Neer on May 6, 2015 at 7:57am

आपकी इस टिप्पणी से बहुत उत्साह बढ़ा है आदरणीय मिथिलेश जी ... आपका हार्दिक आभार .... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 5, 2015 at 10:35pm

आदरणीय नीरज जी कमाल की कल्पना होती है आपकी कविताओं में और आपकी सोच की गहराई मुग्ध कर देती है. इस प्रस्तुति पर दिल  से बधाई दे रहा हूँ. 

Comment by Neeraj Neer on May 5, 2015 at 7:30pm

आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया  जी धन्यवाद ॥  

Comment by Neeraj Neer on May 5, 2015 at 7:30pm

आदरणीय मोहन सेठी इंतज़ार जी आपकी इस उत्साह बढ़ाने वाली टिप्पणी हेतू हार्दिक धन्यवाद..... 

Comment by Neeraj Neer on May 5, 2015 at 7:28pm

आदरणीय जनाब Samar kabeer साहब इस उत्साहवर्धन हेतू आपका आभार। 

Comment by Neeraj Neer on May 5, 2015 at 7:27pm

.....हार्दिक आभार आपका आदरणीय Manoj kumar Ahsaas जी .... 

Comment by Neeraj Neer on May 5, 2015 at 7:26pm

आदरणीय  Dr. Vijai Shanker जी आपका हार्दिक आभार मान्यवर 

.....

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 5, 2015 at 9:34am

अनुपम रचना. बधाई आदरणीय नीरज जी

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 5, 2015 at 7:49am

सार्थक रचना के लिये बधाई स्वीकार करें .....सादर 

Comment by Samar kabeer on May 4, 2015 at 11:54pm
जनाब नीरज कुमार 'नीर' जी,आदाब,आपकी सोच की गहराई आप की रचना में साफ़ दिखाई देती है,मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

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