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नवगीत. आओ यह संकल्प उठाएं

आओ यह संकल्प उठाएं*

आओ यह संकल्प उठाएं
सब मिल पर्यावरण बचाएं

जंगल सूने सूने लगते
साँसों में जो जीवनभरते
पेड़ काट घर रोज
सजाते,
पेड़ कहीं तो एक उगाएं
आओ यह संकल्प उठाएं

धरती को यूं बंजर न करें
प्रकृति के कोप से सभी डरें
सुन लें पुकार हम
धरनी की,
अब विष की ना बेल बिछाएं
आओ यह संकल्प उठाएं

और निकट संसृति के जाएं
हम पेड़ों को मित्र बनाएं
स्वस्थ सुगन्धित वायु
के तले,
पढ़ें लिखें औ योग सिखाएं
आओ यह संकल्प उठाएं

जड़मूल पात फल फूल तना
सर्वस्व हमें देते अपना
न हवा ना बरखा
पेड़ों बिन,
संभलें अब वन सभी बचाएं
आओ यह संकल्प....

धरती वायु नदियाँ अम्बर
सब कुछ अपना देनें तत्पर
जीना दुर्भर हो
जायेगा,
कुदरत का ना चक्र मिटाएं
आओ यह संकल्प...
सीमा हरि शर्मा 14,06,2014( मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by seemahari sharma on September 15, 2014 at 7:34pm
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ह्रदय से आभार आपका आपने रचना को इतन समय दिया आदरणीय आपने जो सुझाव दिए है मैं उन्हें एडिट कर दूंगी इसी तरह आपना मार्गदर्शन देतें एसी आशा करती हूँ सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 15, 2014 at 6:52pm

सीमा जी

बेहतरीन i सामयिक i सन्देश प्रद i  धरती को धरनी करना आवश्यक नहीं था i  एक संशोधन मेरे हिसाबसे - धरती वायु नदियाँ अंबर i सब कुछ है देने को तत्पर .  बहुत सुन्दर प्रयास .आदरणीया .

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