For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदमी से आदमीयत, खो ग है रे कहां ।
आदमी से आदमी को, डर तभी तो है यहां ।।
आदमी में जो पड़ा है, स्वार्थ का साया जहां ।
आदमी अब आदमी से, बच नही पाये यहां ।।

आदमी आतंकवादी, उग्रवादी जो बने ।
आदमी के हाथ दोनो, खून से ही हैं सने ।।
मर्द जो है आदमी में, वो बलत्कारी लगे ।
गोद की बेटी उसे तो, ना दिखे अपने सगे ।।

आदमी को आदमी जो, है बनाना फिर कहीं ।
आदमी में तो जगाओ, आदमीयत फिर वही ।।
आदमी जो आदमी से, प्रेम करने फिर लगे ।
आदमी को आदमी में, सब दिखे अपने सगे ।।
..................................
मौलिक अप्रकाशित

Views: 455

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 6, 2014 at 11:50pm

गीतिका छन्द पर इस प्रयास के लिए बधाइयाँ, भाईजी..

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 19, 2014 at 10:21pm

आदरणीय रमेश भाई , बहुत सुन्दर गीतिका छंद की रचना हुई है ,  सुन्दर संदेश प्रद छंद रचना के लिये बधाइयाँ ॥

Comment by MAHIMA SHREE on June 19, 2014 at 8:00pm

आदमी को आदमी जो, है बनाना फिर कहीं ।
आदमी में तो जगाओ, आदमीयत फिर वही... बहुत अच्छी सोच और संदेश है रमेश जी बहुत-२ बधाई आपको

Comment by रमेश कुमार चौहान on June 18, 2014 at 10:24pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई एवं आदरणीया कुंती दी आप दोनो के उत्साह वर्धन से रचनाकर्म की सार्थक हुआ, सादर साधुवाद

Comment by coontee mukerji on June 18, 2014 at 10:07pm

आदमी से आदमीयत, खो ग है रे कहां ।
आदमी से आदमी को, डर तभी तो है यहां ।।
आदमी में जो पड़ा है, स्वार्थ का साया जहां ।
आदमी अब आदमी से, बच नही पाये यहां ।।...यह संसार जैसे आदमखोरों की बस्ती हो गयी है.अच्छी रचना है...हार्दिक बधाई.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 18, 2014 at 12:19pm

सुंदर सामयिक रचना आदरणीय रमेश जी, हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service