For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल: प्यार में कैसी ये त्रासदी हो गई/शकील जमशेदपुरी

बह्र: 212 212 212 212

__________________________

प्यार में कैसी ये त्रासदी हो गई

देख कर पीर पलकें दुखी हो गई

तेरी यादों ने दिल पे यूं दस्तक दिया
आंख बहने लगी औ नदी हो गई

संग तेरे तो बरसों भी पल भर लगा
एक पल की जुदाई सदी हो गई

प्रेम के मानकों पर जो परखा नहीं
भूल बस एक हम से यही हो गई

शेअर ऐसे नहीं हैं जो दिल पर लगे
आज फिर दर्दे दिल में कमी हो गई

कश्मकश में अभी तक पड़ा है ‘शकील’
कैसे इक शख्स की वो सगी हो गई?

-शकील जमशेदपुरी
________________________________

*मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 708

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil.Joshi on October 24, 2013 at 8:01pm

भावों का सुंदर संप्रेषण है आ0 शकील भाई..... बधाई स्वीकारें...... शिल्प के मापदंडों से मैं अनभिज्ञ हूँ.....

Comment by शकील समर on October 22, 2013 at 10:49am

आदरणीय सौरभ सर

आपने दुरुस्त फरमाया। जल्दबाजी तो कर दी मैंने। आइंदा से ख्याल रखूंगा। आभार इस सुझाव के लिए।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 22, 2013 at 10:30am

भाईजी, मतला ही गड़बड़ हो गया है. रदीफ़ को देखिये आपसी एकवचन और बहुवचन गड्डमड्ड हो रहे हैं.

मक्ता .. के लिए खूब वाह-वाह लीजिये.  लेकिन अन्य सभी शेर आपसे समय मांग रहे हैं. 

वैसे ग़ज़ल पर अबतक बनी या लगातार बन रही आपकी समझ आश्वस्त करती है.

कमसेकम आप ज़ल्दबाज़ी से खुद को बचायें. जो ऐसा कर रहे हैं उनसे आपको क्या . .. :-))))

शुभेच्छाएँ

Comment by शकील समर on October 22, 2013 at 9:49am

आ. vandana जी, Pankaj Mishra जी, डॉ. अनुराग सैनी जी, गिरिराज भंडारी जी, Dr Ashutosh Mishra जी और  जितेन्द्र 'गीत' जी,

आप सभी का बहुत बहुत आभार।

Comment by vandana on October 22, 2013 at 7:20am

प्रेम के मानकों पर जो परखा नहीं
भूल बस एक हम से यही हो गई

बहुत खूब आदरणीय शकील सर 

Comment by Pankaj Mishra on October 22, 2013 at 12:05am

बहुत खूब ............भाव जबरदस्त है

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 21, 2013 at 11:05pm

ग़ज़ल अपने मनको पर खरी हो या न हो मगर भाव जबरदस्त है | बहुत बहुत बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 21, 2013 at 8:46pm

आदरणीय शकील भाई , बहुत सुन्दर गज़ल कही है भाई !!! बधाई !!! वीनस भाई की बातें ज़रूर ध्यान मे लायें !!!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 21, 2013 at 12:32pm

संग तेरे तो बरसों भी पल भर लगा
एक पल की जुदाई सदी हो गई..आदरणीय शकील जी इस बेहतरीन शेर के लिए ढेरो दाद कबूलें 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 21, 2013 at 9:52am

प्रेम के मानकों पर जो परखा नहीं
भूल बस एक हम से यही हो गई........वाह ! यह तो जानलेवा शेर हुआ

बेहतरीन गजल , दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय शकील साहब

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service