For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अब न मैं भयभीत तुझसे, मेघ माघी..!!

अब न मैं भयभीत तुझसे, मेघ माघी..!!

मैं पड़ी थी,
एक युग से चिर निशा की कालिमा में कैद कल तक,
रश्मि से अनजान, रवि की लालिमा से भी अपरिचित,
दृष्टि में संकोच का संचार, भय से प्राण सिमटे,
दृग झुके से, अश्रु प्लावित, अधर भी अधिकार वंचित,

और यह असहाय, निर्बल चित्र ही प्रतिबिम्ब मेरा,
पी रही थी एक युग से, विष यही मैं जान अमृत,
घर-गृहस्थी-लोक-लज्जा बन चुका कर्त्तव्य मेरा,
और मुझको हो चुका था एक अपना रूप विस्मृत,

किन्तु निकली आज हूँ, मैं भी नया निज-पथ बनाने,
केश धोने वृष्टि में, रवि-रश्मियों में भीग जाने,
तोलने निज प्राण बल को क्रूर जग की क्रूरता से,
अब नियति से छीन जीवन का नया अधिकार लाने,

सुप्त मेरी आत्मा, है आज जागी
अब न मैं भयभीत तुझसे, मेघ माघी..!!

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 492

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 26, 2013 at 12:46pm

आदरणीय अजय कुमार सिंह जी 

सच कहूँ तो मुग्ध हूँ इस भाव प्रस्तुति पर 

प्रवाह, कथ्य, शब्द, जैसे निर्बाध भाव बह चले.... प्राचीरों को खंडित कर हिम्मत बटोर सदियों से दमित नारी का हिम्मत से  जाग उठना 

किन्तु निकली आज हूँ, मैं भी नया निज-पथ बनाने,
केश धोने वृष्टि में, रवि-रश्मियों में भीग जाने,.....................बहुत खूबसूरत शब्द चित्र 
तोलने निज प्राण बल को क्रूर जग की क्रूरता से,
अब नियति से छीन जीवन का नया अधिकार लाने,..................वाह !

बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिये 

Comment by अजय कुमार सिंह on September 26, 2013 at 12:49am

CHANDRA SHEKHAR PANDEY जी - हार्दिक आभारी हूँ.

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on September 25, 2013 at 2:20pm

आदरणीय अजय जी, आपकी प्रस्तुतियां बेहद सुन्दर हैं, मैं इनको पढने से वंचित नहीं रह पाउंगा। बधाई।

Comment by अजय कुमार सिंह on September 24, 2013 at 3:19pm
आदरणीय अरुण जी, रविकर जी, गिरिराज जी, जितेन्द्र जी, बैद्यनाथ जी!
मेरी  रचना की साहित्यिक अपरिपक्वता के बाद भी भाव की प्रस्तुति पसन्द करने के लिये हार्दिक धन्यवाद।
Comment by अरुन 'अनन्त' on September 24, 2013 at 10:47am

आदरणीय अजय भाई कमाल की रचना है भाव पद इतना गहरा और कोमल है कि बस दिल को छू गई आपकी यह अप्रितम रचना भाई. निम्नांकित पंक्तियों हेतु विशेष तौर से बधाई स्वीकारें.

किन्तु निकली आज हूँ, मैं भी नया निज-पथ बनाने,
केश धोने वृष्टि में, रवि-रश्मियों में भीग जाने... आय हाय हाय भाई गज़ब गज़ब

Comment by रविकर on September 23, 2013 at 12:23pm

बढ़िया प्रस्तुति है आदरणीय-
शुभकामनायें-


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 22, 2013 at 2:24pm

 वाह !!! वा !! आदरणीय अजय भाई , बहुत सुन्दर रचना !! नारी शक्ति की जागृति के लिये उठे हुये क़दम को बहुत अच्छे से बयान किया है !! हार्दिक बधाई !!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 22, 2013 at 1:35pm

सुंदर रचना प्रस्तुति, हार्दिक बधाई आदरणीय अजय जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service