For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जन्माष्टी के उपलक्ष में निवेदित रचना-
 

विमुग्ध हो फूल का रसपान कर

ज्यों त्यागते हों भ्रमर !


भाँति तेरे कृष्ण भी,
बंशी सुनाते,
चुरा कर चित्त कुब्जा में रमें
छोड़ दी मेरी खबर ।
पीत पर लहराता है तू भी,
निज मित्र के पट पीत सम,
तू भी काला श्याम सा
कपटी कुचाली प्रीति डोरी तोड़ पल में
मन रिझाता है ।
भृंग की भनक संदेश है क्या?


पर...
गोपियां सुनतीं व्यथा कह उससे,
द्वन्द्व, मन का घटातीं,
प्रेम जो आधार है ।
प्रेम के करतब निराले
शान अद्भुत् और अगणित आयाम हैं ।
प्रेम से ही श्याम कपटी मूढ़ भौंरा
घनश्याम के समान है ।

***********************************

*संशोधित
-विन्दु
(मौलिक/अप्रकाशित)

Views: 529

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vindu Babu on October 2, 2013 at 11:35pm
आदरणीय सुरेन्द्र शुक्ला जी आप यहां पधारे इसके लिए आपका बहुत आभार।
मैं आदरणीय एडमिन महोदय से निवेदन कर चुकी हूं,कि रचना को आदरणीय सौरभ सर द्वारा सुझाये विन्यास में परिवर्तित कर दें,पर मुझे नहीं मालूम कि उन्हें वह फारमेट गद्य में क्यों दिखा,इसलिए संशोधन नहीं हो सका। मैं पुन: निवेदन करूंगी।
आदरणीय आपकी टिप्पणी के अन्त में लिखा 'भ्रमर ५' मैं नहीं समझ पाई।
सादर
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 2, 2013 at 11:26pm

वंदना जी जय श्री राधे बहुत सुन्दर भाव ...श्याम श्याम हो गया मन ..हमारे विद्वद भ्राता सौरभ जी ने जो वाक्य विन्यास सुझा के रचना का श्रृंगार किया है उस पर ध्यान दीजियेगा ...
आभार
भ्रमर ५

Comment by Vindu Babu on September 9, 2013 at 6:35pm
जी आदरणीय मैं अभी एडमिन से निवेदन करती हूं रचना को संशोधित करने के लिए।
अतुकान्त के बारे सार्थक जानकारी साझा करने के लिए आपका बहुत आभार आदरणीय।
स्नेह बनाए रखें।
सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2013 at 1:03am

मेरे कहे को अनुमोदित करने के लिए आपका सादर आभार, आदरणीय श्यामजी.

शुभम्


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2013 at 12:22am

कविता का आधार बहुत संयत होते हुए भी प्रस्तुतीकरण के लिहाज से असंप्रेषणीय हो गयी है.

अतुकान्त कविताओं में भी गठन होता है जिसके प्रति संवेदनशील होना आवश्यक है.

आपकी कविता को पुनः संयोजित करने का प्रयास किया है .. देखियेगा -

विमुग्ध हो फूल का रसपान कर

ज्यों त्यागते हों भ्रमर !


भाँति तेरे कृष्ण भी,
बंशी सुनाते,
चुरा कर चित्त कुब्जा में रमें
छोड़ दी मेरी खबर ।
पीत पर लहराता है तू भी,
निज मित्र के पट पीत सम,
तू भी काला श्याम सा
कपटी कुचाली प्रीति डोरी तोड़ पल में
मन रिझाता है ।
भृंग की भनक संदेश है क्या?


पर...
गोपियां सुनतीं व्यथा कह उससे,
द्वन्द्व, मन का घटातीं,
प्रेम जो आधार है ।
प्रेम के करतब निराले
शान अद्भुत् और अगणित आयाम हैं ।
प्रेम से ही श्याम कपटी मूढ़ भौंरा
घनश्याम के समान है ।

इस रचना के भाव के अनुरूप वाक्यांश नहीं हुआ है. न ही उस अनुरूप शब्द बन पाये हैं. इससे संप्रेषणीयता भी सटीक नहीं बन पायी है. अतुकान्त रचना के वाक्यों का भी विन्यास होता है.

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
44 minutes ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service