For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भंवरों ने घेरा

पहुंचाया अवसादों की गर्तो में

संयोग बड़ ही सुखकर थे जिनके

उनके ही वियोग भुजंग बने,लगे डसने

कौन शक्ति? जो हर क्षण

अपनी ही ओर हमें है खींच रही

कल से खींचा,आज छुड़ाया

जो आयेगा वो भी छुटेगा

नश्वरता में इक दिन जीवन ही डूबेगा 

क्षणभंगुरता से हो विकल हृदय

साश्वत खोज में जब भी तड़फा है

मोहवार्तों ने आलिंगन कर

जिज्ञासु तड़फ को मोड़ा है।

खार उदधि की हर विंदु में

रुचिकर रस का भास हुआ

भास भास ही सिद्ध हुआ 

सत कुछ भी तो दिखा नहीं

हे अविनाशी!

अविनाशी कर के भान करा दे

मेरी तड़फ को

जिसकी चिंगारी का 

कुछ बूंदों ने पल में नाश किया।

      -

विन्दु

(मौलिक,अप्रकाशित)

Views: 727

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vindu Babu on December 14, 2013 at 2:00pm

टंकण त्रुटियों के लिए पुनः  क्षमा चाहती हूँ..शीघ्र ही सही करवा लूँगी।

ध्यानाकर्षण...!! क्या करना आदरणीय बृजेश सर,आप सभी ने मेरी अभिव्यक्ति को मान दिया...बहुत है।

'चिर सत्ता' को समर्पित हैम यह अभिव्यक्ति,इसलिए ध्यानाकर्षण आदि पर विशेष ध्यान भी नहीं।

आप सभी का बारम्बार आभार।

सादर

Comment by Vindu Babu on December 14, 2013 at 1:44pm

हार्दिक आभार आदरणीया अन्नपूर्णा दीदी।

आप यहाँ पधारीं...अच्छा लगा।

सादर

Comment by Vindu Babu on December 14, 2013 at 1:42pm

आदरणीया मीना दीदी शुक्रिया।

सादर

Comment by Vindu Babu on December 14, 2013 at 1:39pm

आदरणीय विजय सर आपकी उपस्थिति ही मुझे संबल प्रदान करती है।

इस साधारण से प्रयास पर आपकी प्रितिक्रिया पाकर बहुत अच्छा लगा।

सम्प्रेष्ण की परिपक्वता नहीं पर इसके भाव genuine हैं आदरणीय।

आपको उक्त पंक्तियाँ अच्छी लगी,जानकर  मनोबल बढ़ा।

आपका हार्दिक आभार आदरनीय।

सादर

Comment by Vindu Babu on December 14, 2013 at 1:32pm

आदरणीय आशुतोष जी आप यहाँ पधारे,प्रयास सार्थक हुआ।

सादर आभार आदरणीय

Comment by Vindu Babu on December 14, 2013 at 1:30pm

आदरणीय श्रीवास्तव महोदय आप की प्रतिक्रिया उत्साहवर्धन करती है।

स्नेह बनाये रखें आदरणीय।

सादर

Comment by Vindu Babu on December 14, 2013 at 1:28pm

आदरणीय जितेन्द्र जी आप भी मेरा हार्दिक आभार स्वीकारें।

सादर

Comment by Vindu Babu on December 14, 2013 at 1:27pm

आदरणीय गिरिराज सर बहुत शुक्रिया।

मैं अमल करूँगी।

सादर

Comment by Vindu Babu on December 14, 2013 at 1:25pm

सादर धन्यवाद आदरणीय उमेश महोदय।

Comment by Vindu Babu on December 14, 2013 at 1:24pm

आदरणीया गीतिका जी आपका आभार।

क्षमा करें टंकण में त्रुटि हो गयी।

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
4 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service