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गाँव बदले हुए हैं ,शहर हो गए ,
स्वार्थ की आत्म-केंद्रित नहर हो गए,
सूर्य में थीं यहीं नेह की रश्मियाँ
रिश्ते सब गर्म अब दोपहर हो गए !
*
आओ मिलकर मोड दें पन्ने किताब के ,
और ढूँढें फूल कुछ सूखे गुलाब के ,
सकपकाई उम्र ,वो बारिश सवालों की
खूबसूरत झूठ ,वो किस्से जवाब के !
*
दर्द को खूब लिखा ,
गहरे जा डूब लिखा ,
पाँव जब जलने लगे
पथ को हरी दूब लिखा !
*
रूप की एक नदी बहती है,,
खूबसूरत ए हंसी लगती है,
फूल,घाटी ,पहाड़ ये झरने
कोई तस्वीर सजी लगती है !
________________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल ,लखनऊ

(मौलिक और अप्रकाशित रचना)

Views: 474

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Comment by बृजेश नीरज on June 12, 2013 at 7:29am

आपके इस प्रयास पर मेरी ढेरों बधाई!

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 10, 2013 at 11:01pm

रचनाओं का संज्ञान लेने और सराहना की दृष्टि का हार्दिक आभार ------श्याम नारायण वर्मा जी,प्रज्ञा श्रीवास्तव जी ,डी.पी. माथुर जी ,अमन कुमार जी ,जवाहर लाल सिंह जी ,यतीन्द्र पाण्डेय जी !

Comment by Shyam Narain Verma on June 10, 2013 at 11:58am
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.
Comment by Pragya Srivastava on June 10, 2013 at 11:10am

अति सुंदर

Comment by D P Mathur on June 10, 2013 at 10:28am

दर्द को खूब लिखा ,
गहरे जा डूब लिखा,
पाँव जब जलने लगे
पथ को हरी दूब लिखा !
बहुत गहराई से सरोबार पंक्तिया , बधाई ,बहुत अच्छी रचना !!!
डी पी माथुर

Comment by aman kumar on June 10, 2013 at 8:58am

उम्र  के हर मोड़ पर यादे हमें अपनी भावनायो से ही भिगो देती है ! 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 10, 2013 at 8:29am

बहुत ही सुंदर!

Comment by yatindra pandey on June 9, 2013 at 11:57pm

HAILO SIR

BEHTRIN RACHNA DIL MAI BAS GAYI

 

कृपया ध्यान दे...

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