For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इक दीवाना मुसव्विर

"कुछ दिनों बाद
पूछेगी जब ये दुनिया मुझसे
हुआ क्या तेरी कलम को
क्यों रूठी है तुझसे वो
जबाब क्या दूँगा जानता नहीं
क्या कहूँ के क्यों कर लिया
तर्क ए ताल्लुक मैंने उससे...............
दरअसल लिखता क्या था मैं
ये मैं खुद ही जानता नहीं
और ये भी नहीं मालूम
जो लिखता था वो सार्थक था
या निरर्थक...............

मैं तो बस उतारता था उसे
इक तसव्वुर जो दिल में बसा था
इक तस्वीर जो अक्स था उसका
वो इक अज़ब मासूम सा शख्स
बस पुकारता रहता था मैं उसे...........
जब कविता मेरी चित्रपटल होती थी
और शब्दों के रंग
मोहब्बत की बड़ी सुंदर सी कूची थी मेरी
और मैं
एक दीवाना मुसव्विर........................
जो मुन्तजिर था उसका
और तलाशता रहता था उसे ही अपनी फनकारी में .........

जब वीरान रातों में मैं भटकता था
और मेरी चाँदनी पसरी होती थी
दूर दूर तक
और होती थी निस्तब्धता
बड़ी मनभावन थी ये दुनिया मेरी
ज़माने की नज़रों से दूर
जहाँ केवल शांति थी
न कोई चिंता न फ़िक्र
इक ख्वाबों की फ़रेबी दुनिया
जहाँ मैं खोया रहता था
वो पूरा चाँद उसका दर्पण होता था
जो ऐसा लगता था जैसे
उसके चेहरे के नूर से ही दमक रहा होता था
गूँजता था चारों ओर प्रेमगीत कोई
जिसमें उसे कहने के लिए मैं शब्द खोजता था
अज़ब ही सा समाँ होता था वो भी ........
अचानक यूँ लगता था
के वो मेरे सामने ही तो बैठी है
और मेरी दीवानगी पे हँस रही है
जब वो हँसती थी तो फूल झरते थे
और मैं तो बस उसकी तस्वीर बनाता रहता था
वारफ़्ता उसकी निश्छल मुस्कराहट में .........
उसकी उस तस्वीर को ही
दुनिया मेरी कविता समझती थी
और मुझको शायर ......................

अब जब वो मुझसे दूर है
न शब्द है मेरे पास न भावना
न कोई रंग न कल्पना
न वो सैलाब ए तखय्युल है
और चांदनी भी अब सुहानी नहीं लगती
न तरन्नुम ही बजती है अब कोई
हाँ ,वीरानियाँ आज भी मेरी साथी है
जो अब भी मुझे उतनी ही प्यारी हैं
शायद इन्ही वीरानियों और
तनहाइयों में गुम हो गया हूँ मैं
मगर गलती भी तो मेरी ही थी
उससे दिल लगाने की
क्योंकि वो तो आसमाँ की जीनत थी
और मैं
फ़क़त वो ही दीवाना मुस्सविर ........................

नि:शब्द हूँ मैं अब............
के ये सब फ़क़त झूठा सपना था
अब तो रोशनाई भी नहीं कलम में
के उभार सकूँ फिर उसका रूप मैं
हाँ ,चश्म ए पुरनम जरुर बख्श गई है वो मुझको
मगर पगली ,आँसुओं के रंग नहीं होते
नहीं तो उकेरता फिर तुझे ही
अपनी कल्पना के किरचों से उसी चित्रपटल पे
मगर कैसे
मैं शायर न था ,न हूँ और न रहूँ कभी ................''

~~~ चिराग़

MAY 18,2013 

[पूर्णतः मौलिक व अप्रकाशित]

तर्क ए ताल्लुक - सम्बन्ध विच्छेद

मुसव्विर - चित्रकार

मुन्तजिर - प्रतीक्षारत

वारफ़्ता - खोया हुआ

तखय्युल - कल्पना

जीनत - शोभा

चश्म ए पुरनम - भींगी आँखें

Views: 485

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Kedia Chhirag on May 24, 2013 at 9:35am

आदरणीय अशोक जी ,ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद ...सर्वथा स्नेहाशीष की अभिलाषा रहेगी .....

Comment by Kedia Chhirag on May 24, 2013 at 9:34am

आदरणीय शालिनी जी, आपने मेरा बहुत उत्साहवर्धन किया ...बहुत बहुत शुक्रगुज़ार हूँ आपका ......

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 23, 2013 at 11:45pm

बहुत सुन्दर रचना आदरणीय चिराग जी.

Comment by shalini kaushik on May 21, 2013 at 12:59am
भावनात्मक अभिव्यक्ति
Comment by Kedia Chhirag on May 20, 2013 at 9:35pm

अभिनव जी ,बन्धु बहुत बहुत धन्यवाद ,आप सभी अग्रजों और गुरुजनों के आशीर्वाद और पथप्रदर्शन के लिए प्रतीक्षारत हूँ ...आपने अपना स्नेहाशीष प्रदान करके मुझे कृतार्थ कर दिया.....

Comment by Abhinav Arun on May 20, 2013 at 3:48pm


बहुत खूब चिराग जी आपकी इस अंतर्यात्रा में मैं भी पढ़ते पढ़ते खो सा गया , अच्छी बहती सी कविता है .. बहुत खूब बधाई आपको !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
15 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service