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विधना तेरे रूप में, आया कहां निखार

बेशकीमती ब्‍लीच औ, लोशन मले हजार

मौनी बाबा टल्‍ली हैं, आफत में युवराज

घूर रहा जो ताज को, गुजराती परबाज

शहर गाल में गांव हैं, कोलतार में पैर

बेदम होकर हांफती, सुबह-शाम की सैर

ट्रैफिक की हर चीख पर, सिग्‍नल मारे आंख

रेल-बसों में चुप खड़े, सहमे डैने, पांख

अनशन पर कोई अड़ा, कोई हुआ मलंग

इटली वाले रंग में, किसने घोला भंग

नदी रही नाला हुई, किसपर नखरे नाज ?

सिलती सौ-सौ दामिनी, फटती जाती लाज

योग भगाता रोग जो, दवा करे क्‍या काम

छंद ना मापो हे कवि, होगा काम तमाम

चल री अनगढ़ लेखनी, ढूंढें दूजा छोर

तेरे धूसर पांव को, लेगा शहर खखोर

पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by राजेश 'मृदु' on April 4, 2013 at 4:30pm

उसी को पढ़ रहा हूं अरून जी, बहुत आभार

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 4, 2013 at 4:26pm

राजेश भाई लिंक मिला क्या नहीं तो यह लीजिये हम ले आये. http://openbooksonline.com/group/hindi_ki_kaksha/forum/topics/51702...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 4, 2013 at 4:23pm

हिंदी की कक्षा समूह में कुछ आलेख हैं मात्रा गणना पर आप उन्हें देखिये 

Comment by राजेश 'मृदु' on April 4, 2013 at 4:12pm

आप सभी का हार्दिक आभार,मात्रा बड़ी सताती है कोई आलेख सुझाएं निवेदन है


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 4, 2013 at 12:44am

सार्थक और सम्यक प्रयास हुआ है, भाईराजेशजी.

अन्य सुधीजनों ने जो कुछ कहा है वह भी सार्थक है.

दोहे के विषम को गुरु गुरु से कदापि अंत न करें. न ही उसका अंत भगण से ही होता है.

नदी रही नाला हुई, किसपर नखरे नाज ?

सिलती सौ-सौ दामिनी, फटती जाती लाज..  .. इस अति उच्च कहन से समृद्ध दोहे के लिए विशेष-विशेष बधाई.. .

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 3, 2013 at 9:31pm

बहुत सुन्दर दोहे रचे हैं आदरणीय राजेश जी सादर बधाई स्वीकार करें

तत कुछ सुधार अपेक्षित हैं

मौनी बाबा टल्‍ली हैं.......१४  मात्राएँ प्रवाह बाधित है

किसने घोला भंग ...........घोला की जगह शायद घोली होना चाहिए था

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 3, 2013 at 7:58pm

आदरणीय राजेश कुमार झा जी, आपके दोहे सुन्दर एवं रोचक हैं। हां आदरणीय अरून शर्मा जी की बात पर गौर करें।  बहुत-बहुत बधाई।  सादर,

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 3, 2013 at 3:21pm

आदरणीय राजेश भाई दोहों के जरिये वर्तमान परिस्थिति पर बढ़िया व्यंग कसा है. मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें.

नदी रही नाला हुई, किसपर नखरे नाज ? भाई प्रश्न चिन्ह आपने सही लगाया है यह तो मुझे समझ नहीं आया.

सिलती सौ-सौ दामिनी, फटती जाती लाज . सत्य एवं निःशब्द.

मौनी बाबा टल्‍ली हैं, आफत में युवराज ..मौनी बाबा टल्‍ली हैं मात्रा गणना पुनः कर लें.

घूर रहा जो ताज को, गुजराती परबाज

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