For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पाठक नामा- मेरी आपबीती: बेनज़ीर भुट्टो 2

पाठक नामा- मेरी आपबीती: बेनज़ीर भुट्टो 2  

संजीव 'सलिल'

*

१९७१ के बंगला देश समर पर बेनजीर :


==''...मैं नहीं देख पाई कि लोकतान्त्रिक जनादेश की पकिस्तान में अनदेखी हो रहे एही. पूर्वी पकिस्तान का बहुसंख्यक हिस्सा अल्पसंख्यक पश्चिमी पाकिस्तान द्वारा एक उपनिवेश की तरह रखा जा रहा है. पूर्वी पकिस्तान की ३१ अरब की निर्यात की कमाई से पश्चिमी पकिस्तान में सड़कें, स्कूल, यूनिवर्सिटी और अस्पताल बन रहे हैं और पूर्वी पकिस्तान में विकास की कोई गति नहीं है. सेना जो पकिस्तान की सबसे अधिक रोजगार देनेवाली संस्था रही, वहां ९० प्रतिशत भारती पश्चिमी पकिस्तान से की गयी. सरकारी कार्यालयों की ८० प्रतिशत नौकरियां प. पाकिस्तान के लोगों को मिलती हैं. केंद्र सरकार ने उर्दू को राष्ट्रीय भाषा बताया है जबकि पूर्वी पाकिस्तान के कुछ ही लोग उर्दू जानते हैं....
 

'पाकिस्तान एक अग्नि परीक्षा से गुजर रहा है' मेरे पिता ने मुझे एक लंबे पत्र में लिखा... 'एक पाकिस्तानी ही दुसरे पाकिस्तानी को मार रहा है, यह दु:स्वप्न अभी टूटा नहीं है. खून अभी भी बहाया जा रहा है. हिंदुस्तान के बीच में आ जाने से स्थिति और भी गंभीर हो गयी है...'


निर्णायक और मारक आघात ३ दिसंबर १९७१ को सामने आया...व्यवस्था ठीक करने के बहाने ताकि हिन्दुस्तान में बढ़ती शरणार्थियों की भीड़ वापिस भेजी जा सके, हिन्दुस्तान की फौज पूर्वी पकिस्तान में घुस आयी और उसने पश्चिमी पकिस्तान पर हमला बोल दिया.'
 

बेनजीर को सहेली समिया का पत्र 'तुम खुशकिस्मत हो जो यहाँ नहीं हो, यहाँ हर रात हवाई हमले होते हैं और हम लोगों ने अपनी खिडकियों पर काले कागज़ लगा दिए हैं ताकि रोशनी बाहर न जा सके... हमारे पास चिंता करने के अलावा कोई काम नहीं है... अखबार कुछ नहीं बता रहे हैं... सात बजे की खबर बताती है कि हम जीत रहे हैं जबकि बी.बी.सी. की खबर है कि हम कुचले जा रहे हैं... हम सब डरे हुए हैं... ३ बम सडक पर हमारे घर के ठीक सामने गिरे... हिन्दुस्तानी जहाज़ हमारी खिड़की के इतने पास इतने नीचे से गुजरते हैं कि हम पायलट को भी देख सकते हैं... ३ रात पहले विस्फोट इतने तेज़ थे कि मुझे लगा कि उन्होंने हमारे पड़ोस में ही बम गिर दिया है... आसमान एकदम गुलाबी हो रहा था. अगली सुबह पता चला कराची बंदरगाह पर तेल के ठिकाने पर मिसाइल दागी गयी थी....'
 

भुट्टो नीति:
 

'१२ दिसंबर मेरे पिता ने सुरक्षा परिषद् से युद्ध विराम करवाने की मांग की और कहा कि पकिस्तान की सीमा से भारतीय फौजें हटाई जाएं. वहां संयुक्त राष्ट्र की सेना भेजी जाए जिससे पूर्वी पकिस्तान में हिंसा रुके लेकिन मेरे पिता की इस बात का वहां कोई असर नहीं हुआ.... मैं अपने पिता के लिए याहिया खान को पाकिस्तान में फोन मिलाती हूँ... प्रेजिडेंट सो रहे हैं. मेरे पिता फोन मुझसे छीनकर जोर से बोलते हैं... 'प्रेजिडेंट को जगाओ... उन्हें तुरंत पश्चिमी सीमा पर हमला बोल देना चाहिए. हमें पूर्वी पकिस्तान में तुरंत दवाब हटाना है. एक पश्चिमी पत्रकार बताता है जनरल नियाजी ने पूर्वी पकिस्तान में भारत की फौज के आगे आत्मसमर्पण कर दिया है. याहया उपलब्ध नहीं हैं... एक शाम अमरीका से राज्य सचिव हेनरी कीसिंगर और पीपल्स रिपब्लिक के चेयरमैन चीन से हांग हुआ फोन करते हैं. कीसिंगर को लगता है चीन की सेना पाकिस्तान के पक्ष में खड़ी होगी. मेरे पिता का मानना है ऐसा नहीं होगा. जब पापा योजना बनाते हैं कि याह्या को बीजिंग जाने की सलाह दें तभी पता चलता है कि कीसिंगर न्यूयार्क में चीन के लोगों से बात कर रहे हैं. सोवियत रूस का प्रतिनिधि मंडल आकर जाता है. अमरीकी प्रतिनिधि मंडल की अगुवाई जोर्ज बुश कर रहे थे.... पूरी वार्ता के दौरान मैं बेड रूम में फोन के बगल में बैठी हुई झूठे-सच्चे संवाद ले रही हूँ...''

मेरे पिता मुझसे कहते हैं 'मीटिंग को ख़त्म कर दो, अगर रूसी दल हो तो मुझसे कहो कि चीन का दल लाइन पर है, अगर अमरीकन हो तो मुझे कहो कि रूसी या हिन्दुस्तानी लाइन पर है. सचमुच किसी को भी मत बताओ कि कौन है इधर. कूटनीति का एक पाठ समझ लो वह यह कि संदेह पैदा करो और अपने सारे पत्ते मेज पर मत फैला कर रखो.' मैं उनके निर्देश को मानती हूँ लेकिन यह पाठ नहीं मानती. मैं हमेशा अपने सारे पत्ते खोलकर रखती हूँ. कूटनीति का खेल न्यूयार्क में जारी है और सब कुछ अचानक थम जाता है. याहया पश्चिमी सीमा पर हमला नहीं करते. फ़ौजी हुकूमत ने मन ही मन पूर्वी पाकिस्तान का खो जाना स्वीकार कर लिया है और उम्मीद हार चुके हैं... हिन्दुस्तान जानता है पूर्वी पाकिस्तान में हमारा कमांडर मोर्चा छोड़ देना चाहता है... 

 

सुरक्षा परिषद् के सदस्य समझ गए हैं कि ढाका अब गिरने ही वाला है. मेरे पिता १५ दिसंबर को सुरक्षा परिषद् में ब्रिटेन और फ़्रांस की ओर उंगली उठाते हैं जिन्होंने अपने निजी स्वार्थों के कारण वोट नहीं दिया था 'उदासीन प्राणी जैसा कुछ नहीं होता, आपको किसी एक और अपनी राय रखनी होगी चाहे न्याय की ओर या अन्याय की ऑर. आपको किसी एक का पक्ष चुनना ही होगा, चाहे आक्रामक का या उसका जिस पर हमला किया गया है. उदासीनता जैसी कोई स्थिति नहीं होती.'... 

 

मैंने एक पाठ सीखा स्वीकृति या विरोध, महाशक्तियां जैसे हठपूर्वक पाकिस्तान के विरोध में हैं इसका मतलब कि इसमें उनकी स्वीकृति है जिसका मतलब है आक्रमण को न्यायसंगत मान लेना, कब्जे को उचित ठहराना, उस सबको मान्यता देना जो १५ दिसंबर १९७१ तक गैर कानूनी था. मेरे पिता फट पड़ते हैं 'मैं इस निर्णय में भागीदार नहीं हूँ. संभालिये अपनी सुरक्षा परिषद्. मैं जा रहा हूँ.' मेरे पिता उठते हैं और बाहर चल पड़ते हैं, मैं तेजी से सारे कागज़ बटोरती पीछे-पीछे चल पडती हूँ. वाशिंगटन पोस्ट ने मेरे पिता के सुरक्षा परिषद् में उठाये कदम को जीता-जागता नाटक बताया था.
 

'अगर हम ढाका में फ़ौजी आत्म-समर्पण करते भी हैं तब भी यह हमारा राजनैतिक रूप से हार मान लेना नहीं होना चाहिए.' मेरे पिता ने मुझे सुरक्षा परिषद् से बाहर निकलकर न्यूयार्क की सडकों पर चलते हुए कहा था. 'इस तरह वहां से बाहर निकल आने के जरिए मैंने यह संदेश छोड़ा कि हम भले ही भौतिक रूप से हार गए हों हमारी कौमी इज्जत इस तरह से कुचली नहीं जा सकती.' और ढाका हमारे हाथ से चला गया... हमारा  संयुक्त धर्म इस्लाम जिसे हम सोचते थे कि हिंदुस्तान के एक हज़ार मील तक फैलेगा... हमें एक बनाये रखने में नाकामयाब हो गया.
 

२० दिसंबर १९७१: ढाका पतन के ४ दिन बाद लोगों ने जबरन याह्या खान को गद्दी से उतार दिया, मेरे पिता जो संसदीय इकाई के चुने प्रतिनिधि थे पाकिस्तान के नए राष्ट्रपति बनाये गए... संविधान न होने की स्थिति में वे पहले नागरिक थे जो मार्शल ला प्रशासन के अध्यक्ष बने.
 

शिमला २८ जून १९७२:
 

'परिणाम चाहे जो हो यह वार्ता पाकिस्तान का भाग्य बदलनेवाली होगी.' मेरे पिता ने बताया. वे चाहते थे कि मैं वहाँ उनके साथ रहूँ. मेरे पिता निहत्थे बात करने जा रहे थे जबकि हिन्दुस्तान  के पास वे सरे पत्ते थे जिनसे वह सौदेबाजी कर सकता था हमारे युद्धबंदी, ५००० वर्गमील जमीन, आगे और लडाई की स्थिति. 'हर कोई इस बात के संकेत खोजने के चक्कर में रहेगा कि मीटिंग कैसी चल रही है इसलिए बहुत होशियार रहना.' मेरे पिता ने मुझे सलाह दी 'तुम हँसना-मुस्कुराना मत. कहीं यह न लगे कि हमारे फ़ौजी तो हिंदुस्तानी जेल में सड़ रहे हैं और हम मजे लूट रहे हैं... तुम उदास चेहरा भी मत बनाकर रखना... जो यह लगे कि हम मन में कोई उम्मीद नहीं रखते.'
 

'तो मुझे कैसा दिखना चाहिए?' मैंने पूछा.
 

'न तो बहुत खुश दिखो, न ही एकदम गमगीन.'
 

हमारा स्वागत करने के लिए श्रीमती इंदिरा गांधी मौजूद थीं. देखने में वह कितनी छोटी थीं... उससे भी कहीं ज्यादा छोटी जितनी हम उन्हें तस्वीरों में देखते रहे हैं. कितनी भव्य थीं वह उस बरसते एके बावजूद जो उन्होंने साड़ी के ऊपर उस बरसात में पहन रखी थी.
 

अपनी मजबूत स्थिति में बैठीं श्रीमती गांधी एक समूचे निर्णायक फैसले पर पहुँचाना चाहती थीं जिसमें कश्मीर का विवादित हिस्सा भी था. पाकिस्तानी प्रतिनिधि मंडल चाहता था कि एक-एक मुद्दे पर अलग-अलग फैसले लिए जाएं, जैसे सरहद के मामले, युद्ध बंदियों के मामले और कश्मीर का विवाद....'

शेष फिर ...

Views: 708

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 18, 2013 at 7:15pm

आदरणीय संजीव सलिल जी, 1971 के युद्ध का वर्णन, उस समय की खबरे मेरे जहन में आज भी ताजा है ।मै उस समय प्रथम राजस्थान गर्ल्स बटालियन एन सी सी में क्वार्टर मास्टर क्लर्क की नौकरी कर रहा था । इंदिरा गाँधी ने अमेरिका के राष्ट्रपति को पत्र लिख कर अपनी सफाई दी थी, काफी समय तक उस प्रकाशित पत्र  की प्रति मेरे पास थी । हमने युद्ध जीत लिया था, बांगला देश का उदय हुआ था । एक करोड़ पाकिस्तानी फौजी व् शरणार्थी (जिसे प्रिजनर ऑफ़ वार कहते थे) हमारे याहि कई शहरों में कैम्पों में रह रहे थे । करोडो रुपये उनपर भारत सरकार खर्च कर रही थी । जयपुर के महाराज लेफ्टिनेंट कर्नल भवानी सिंह, छाछरो के विजेता बन महावीर चक्र से विभूषित किये गए थे । हम राजनैतिक स्तर पर शिमला समझौते के तहत ही हारे, वर्ना हो सकता है कश्मीर समस्या भी सुलत गई होती । आप के लेख की मै बेसब्री से इन्तजार में हूँ ।आपके लेख से बहुत कुछ जानकारी उपलब्ध होगी, जो नए मित्रो के लिए उत्सकता भरी होगी । मेरा हार्दिक आभार स्वीकारे ।

Comment by sanjiv verma 'salil' on January 18, 2013 at 5:32pm
जिज्ञासा का सदा स्वागत है...

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 18, 2013 at 4:03pm

आदरणीय संजीव जी, 

आपकी सभी रचनाएं, आलेख पूरी तन्मयता के साथ पढ़ती हूँ, पर अपने अल्प ज्ञान के कारण उनपर टिप्पणी नहीं कर पाती, 

इस आलेख को पढ़ कर इस विषय में और बहुत कुछ जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हो रही है, 

अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर समय समय आपके द्वारा प्रदत्त जानकारी के लिए बहुत बहुत हार्दिक आभार. सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मिथिलेश भाईजी,  हार्दिक बधाई इन पाँच मुकरियों के लिए | मेरी जानकारी के अनुसार सभी पदों…"
12 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह-मुकरी * प्रश्न नया नित जुड़ता जाए। एक नहीं वह हल कर पाए। थक-हार गया वह खेल जुआ। क्या सखि साजन?…"
11 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कभी इधर है कभी उधर है भाती कभी न एक डगर है इसने कब किसकी है मानी क्या सखि साजन? नहीं जवानी __ खींच-…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय तमाम जी, आपने भी सर्वथा उचित बातें कीं। मैं अवश्य ही साहित्य को और अच्छे ढंग से पढ़ने का…"
19 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय सौरभ जी सह सम्मान मैं यह कहना चाहूँगा की आपको साहित्य को और अच्छे से पढ़ने और समझने की…"
22 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह मुकरियाँ .... जीवन तो है अजब पहेली सपनों से ये हरदम खेली इसको कोई समझ न पाया ऐ सखि साजन? ना सखि…"
22 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"मुकरियाँ +++++++++ (१ ) जीवन में उलझन ही उलझन। दिखता नहीं कहीं अपनापन॥ गया तभी से है सूनापन। क्या…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"  कह मुकरियां :       (1) क्या बढ़िया सुकून मिलता था शायद  वो  मिजाज…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"रात दिवस केवल भरमाए। सपनों में भी खूब सताए। उसके कारण पीड़ित मन। क्या सखि साजन! नहीं उलझन। सोच समझ…"
yesterday
Aazi Tamaam posted blog posts
Friday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
Thursday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service