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अब जो बिखरे तो फिजाओं में सिमट जाएंगे 

ओर ज़मीं वालों के एहसास से कट जाएंगे 

 

मुझसे आँखें न चुरा, शर्म न कर, खौफ न खा 

हम तेरे वास्ते हर राह से हट जाएंगे 

 

आईने जैसी नजाकत है हमारी भी सनम 

ठेस हलकी सी लगेगी तो चटक जाएंगे 

 

हम-सफ़र तू है मेरा, मुझको गुमाँ था कैसा 

ये न सोचा था कि तनहा ही भटक जाएंगे 

 

प्यार का  वास्ता दे कर  मनाएगी 'सिया' 

मेरे  जज़्बात से कैसे वो पलट जाएंगे

 

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Comment by Shashi Mehra on September 22, 2011 at 7:50pm

अब जो बिखरे तो फिजाओं में सिमट जाएंगे 

ओर ज़मीं वालों के एहसास से कट जाएंगे bahut hi umda. wah wah.

 

Comment by Vikram Srivastava on September 21, 2011 at 3:49pm

आईने जैसी नजाकत है हमारी भी सनम 

ठेस हलकी सी लगेगी तो चटक जाएंगे ...

वाह वाह !!!! शानदार ग़ज़ल का बेहतरीन शे'र...बधाइयाँ।

 

Comment by mohinichordia on September 20, 2011 at 9:08am

अपने एहसास का इज़हार अच्छा करती हैं आप सिया जी |शुभकामनाएं |

Comment by satish mapatpuri on September 19, 2011 at 11:35pm

मुझसे आँखें न चुरा, शर्म न कर, खौफ न खा

हम तेरे वास्ते हर राह से हट जाएंगे

प्रेम में  त्याग का ही महत्व है .................... इस खुबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई सिया जी

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