For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं स्त्री हूँ रत्नगर्भा ,धारिणी,
पालक हूँ, पोषक हूँ
अन्नपूर्णा,
रम्भा ,कमला ,मोहिनी स्वरूपा
रिद्धि- सिद्धि भी मैं ही ,
शक्ति स्वरूपा ,दुर्गा काली ,महाकाली ,
महिषासुरमर्दिनी भी में ही
में पुष्ट कर सकती हूँ जीवन
तो नष्ट भी कर सकती हूँ ,
धरती और उसकी सहनशीलता भी मैं
आकाश और उसका नाद भी मैं
आज तक कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं हो सका मेरे बगैर ,
फिर भी
पुरुष के अहंकार ने ,उसके दंभ ,उसकी ताकत ने ,
मेरी गरिमा को छलनी किया हमेशा ही
मजबूर किया अग्नि -परीक्षा देने को ,कभी किया चीर-हरण ...
उस खंडित गरिमा के घावों की मरहम -पट्टी न कर
हरा रखा मैंनें उनको ,
आज नासूर बन चुके हैं वो घाव
रिस रहे हैं
आज में तिरस्कार करती हूँ ,
नारीत्व का ,स्त्रीत्व का, मातृत्व का ,किसी के स्वामित्व का ,
अपनी अलग पहचान बनाए रखने के लिए
टकराती हूँ ,पुरषों से ही नहीं ,पति से भी
( पति भी तो पुरुष ही हे आखिर )
स्वयं बनी रहती हूँ पुरुषवत, पाषाणवत ,कठोर 
खो दी है मैंनें
अपने अन्दर की कोमलता ,अपने अन्दर की अलहड़ता,
अपने अन्दर की मिठास
जो लक्षण होता है स्त्रीत्व का
वह वात्सल्य ,
जो लक्षण होता है मातृत्व का
नारी मुक्ति की हिमायती बनी में
आज नहीं पालती बच्चों को
.आया की छाया में पलकर कब बड़े हो जाते हैं
मुझे पता नहीं ,क्योंकि
में व्यस्त हूँ अपनी जीरो फिगर को बनाए रखने में,
में व्यस्त हूँ उंची उड़ान भरने में
लेकिन आत्म-प्रवंचना आत्मग्लानी जागी एक दिन 
जब मेरे ही अंश ने मुझे
दर्पण दिखाया
उसके पशुवत व्यवहार ने मुझे
स्त्रीत्व के धरातल पर लौटाया , 
एक क्षण में आत्म-दर्शन का मार्ग खुला
मेरी प्रज्ञा ने मुझे धिक्कारा
फटी आँखों से मैनें अपने को निहारा
पूछा अपने आप से ,तुम्हारा ही फल है ना ये ?
मिठास देतीं तो मिठास पातीं
संस्कार देतीं तो संस्कार पाता वह अंश तुम्हारा
"पर नारी मातृवत' के
न बनता अपराधी वह
अगर मिलती गहनता संस्कारों की ं
सृजन के लिए जरूरी हे स्त्रीत्व ,पौरुषत्व दोनों के मिलन की
मन और आत्मा के मिलन की
आज जाग गई हूँ
प्रण करती हूँ ,अब ना सोउंगी कभी
आत्म-जागरण के इस पल को न खोउंगी कभी
पालूंगी, पोसूगी अपने अंश को
दूंगी उसे घुट्टी लोरियों में
अच्छा पुरुष, अच्छी स्त्री बनने की
जैसे दी थी जीजाबाई ने शिवाजी को
जैसे दी थी माँ मदालसा ने अपने बच्चों को
करेंगे मानवता का सम्मान
तभी बढ़ेगा मेरी कोख का मान |



मोहिनी चोरडिया

Views: 522

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on October 12, 2011 at 10:35am

माह की श्रेष्ठ रचना चयन हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मोहिनी जी !!

Comment by satish mapatpuri on October 11, 2011 at 11:51pm

BEST CREATION OF THE MONTH  के  लिए बहुत - बहुत बधाई मोहिनीजी

Comment by आशीष यादव on October 6, 2011 at 1:40pm

is rachna ko mahine ki sarwshreshth rachna ghoshit ki gayi hai. aap ko bahut bahut badhai.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 14, 2011 at 10:48pm

छिछले विचारों की ओट में प्रकृति के विरुद्ध हो जाना मात्र भारी ही नहीं पड़ता समूचे क्रियान्वयन को ही अपराध की श्रेणी में डाल देता है.

सशक्त रचना..


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2011 at 8:40pm

मोहिनी जी, भावात्मक विचारों का संयोजन है यह रचना एक गाथा सी प्रतीत हुई , एक एक बिन्दु को बहुत ही गहराई से समेट दिया है आपने, बहुत बहुत आभार आपका | 

Comment by siyasachdev on September 14, 2011 at 6:12pm

भावनाओं को इतनी गहराई से समेटती है आपकी यह रचना कि दिल को छू लेती है..

Comment by Kailash C Sharma on September 14, 2011 at 3:05pm

लेकिन आत्म-प्रवंचना आत्मग्लानी जागी एक दिन 
जब मेरे ही अंश ने मुझे
दर्पण दिखाया
उसके पशुवत व्यवहार ने मुझे
स्त्रीत्व के धरातल पर लौटाया , 
एक क्षण में आत्म-दर्शन का मार्ग खुला 
मेरी प्रज्ञा ने मुझे धिक्कारा
फटी आँखों से मैनें अपने को निहारा
पूछा अपने आप से ,तुम्हारा ही फल है ना ये ?

 

आधुनिकता की आंधी में बहती नारी को बहुत सटीक आइना दिखाती सुन्दर अभिव्यक्ति...बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)

बह्र : 2122 2122 2122 212 देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिलेझूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी…See More
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आपने अन्यथा आरोपित संवादों का सार्थक संज्ञान लिया, आदरणीय तिलकराज भाईजी, यह उचित है.   मैं ही…"
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत शुक्रिया आपका बहुत बेहतर इस्लाह"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी जी, आपने बहुत शानदार ग़ज़ल कही है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय जयहिंद जी, अपनी समझ अनुसार मिसरे कुछ यूं किए जा सकते हैं। दिल्लगी के मात्राभार पर शंका है।…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मनुष्य से आवेग जनित व्यवहार तो युद्धभा में भी वर्जित है और यहां यदा-कदा यही आवेग ही निरर्थक…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीया रिचा यादव जी आपको मेरा प्रयास पसंद आया जानकर ख़ुशी हुई। मेरे प्रयास को मान देने के लिए…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपके…"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service