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ऐसे भी ज़माने में लोगो

ऐसे भी ज़माने में लोगो

ऐसे भी ज़माने में लोगो गमनाक फ़साने होते हैं
दुनिया से तो लाजिम है लेकिन खुद से भी छुपाने होते हैं

कुछ और नए देना है अगर दीजेगा मगर हंसते हंसते
नासूर बना करते हैं जो वो जख्म पुराने होते हैं

उठता है कोई जब दुनिया से कांधे पे उठाया जाता है
महफ़िल से उठाने के पहले इल्जाम लगाने होते हैं

पूछो न शबे फुरकत में क्यों ये दामन भीगा रहता है
दिल रोता है अन्दर अन्दर हँसना तो बहाने होते हैं

सौ बार तपिश मैखाने की इज्जत रख ली जानें दे दी
वो साकी नहीं सागर भी नहीं टूटे पैमाने होते हैं |
मेरे काव्य संग्रह ---कनक ----से


जगदीश "तपिश"

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 12, 2010 at 1:03pm
उठता है कोई जब दुनिया से कांधे पे उठाया जाता है
महफ़िल से उठाने के पहले इल्जाम लगाने होते हैं

बड़ी उँची सोच है तपिश साहिब, कमाल के शे'र निकाला है आपने, बहुत बहुत बधाई इस रचना पर |

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