For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

व्यंग्य - देश को समर्पित कर दें ‘भ्रष्टाचार’

भ्रष्टाचार का जिन्न एक बार फिर बाहर आ गया है और इस बार वह सब पर भारी नजर आ रहा है। सत्ता के रसूख का दंभ भरने वाली सरकार भी डरी-सहमी हैं। आधुनिक भारत के ‘गांधी’ के नए अवतरण के बाद ‘भ्रष्टाचार का भूत’ को देश से भगाने के लिए ‘अनशन यज्ञ’ का सहारा लिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि यह नए भारत की ‘अगस्त क्रांति’ है। हालात ऐसे बन गए हैं, जो भी भ्रष्टाचार की खिलाफत में मुंह मोड़ेगा, वह क्रांति की चपेट में आ जाएगा और देश में इस क्रांति से हजारों-हजार बावले नजर आ रहे हैं, ‘हजारे’ के साथ। भले ही कई बरसों से महंगाई ‘डायन’ बनी बैठी है, लेकिन भ्रष्टाचार भी कुछ कम गुल नहीं खिला रहा है, वह भी ‘भूत’ बन गया है और हर किसी के सिर पर सवार हो गया है।
भ्रष्टाचार का भूत ने देश की जनता के दिलो-दिमाग को झकझोरा ही है, साथ ही सरकार की भी चूलें हिला कर रख दी हैं। भ्रष्टाचार ही है, जिसने कईयों के मुंह बंद करा दिए हैं। भ्रष्टाचार के भूत पर लगाम लगाने सरकार बेबस हो गई है। मैं यही कहूंगा, अभी स्थिति ऐसी हो गई कि भ्रष्टाचार को देश को समर्पित कर देना चाहिए, क्योंकि अवाम ने उसे अपनाया हुआ है, बरसों-बरस से। आने वाले दिनों में भी भ्रष्टाचार, जलवा बिखरेता रहेगा, इसमें किसी का क्या जाता है। जैसा चल रहा है, चलने दो ? सरकार भी यही चाहती है। सत्ता के मद में चूर सरकार के संग-संग चल रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ करोड़ों ने हाथों ने ‘अनशन यज्ञ’ में आहुति दे दी है। हजारों-हजार हाथ जैसा चाह रहे हैं, वैसा नहीं हो रहा है, उल्टे भ्रष्टाचार का दिनों-दिन नाम रौशन होता जा रहा है। भ्रष्टाचार का मौज देखिए, विदेशों में भी अपनी शानो-शौकत दिखा रहा है। उसे काले-धन का ‘तमगा’ मिल गया है। जितना चाहे ऐड़ियां रगड़ लो, फिर भी भ्रष्टाचार के सामने बौने ही रहोगे।
आज हर जुबान पर भ्रष्टाचार ही छाया हुआ है। हो भी क्यों न, इतनी हाय-तौबा कब मची है ? भ्रष्टाचार, स्वाभाविक तौर पर इतराएगा ही कि अकेले, उसने देश की जनता को भी जगा दिया और सरकार को भी डरा गया। तभी तो देश से भ्रष्टाचार का भूत भगाने के लिए हर घर से ‘नए भारत का गांधी’ निकल रहा है। ऐसा लग रहा है, जैसे भ्रष्टाचार अब देश से मिटकर रहेगा, मगर हमने उसे इतना अपना लिया है तो इतनी जल्दी भला कैसे साथ छूट सकता है ?
मैं यही कहूंगा कि आजाद भारत के बाद से ही हम भ्रष्टाचार के साथ जी रहे हैं। ये अलग बात है कि नई बोतल से पुराना जिन्न बाहर आ गया है। भ्रष्टाचार रूपी जिन्न, देश में पहले भी दिखाई देता रहा है, परंतु आज उसका रूप जनता की नजर में विकराल ले लिया है। जनता कह रही है कि अब उसकी त्रासदी सहन नहीं होती। जितना धत-करम करना था, कर लिए। अब तो हमारा पीछा छोड़ो। भ्रष्टाचार, हमारी रगों में घुस गया है, उसे बाहर निकालने के लिए निश्चित ही कोई वैक्सीन ही काम आएगी।
भ्रष्टाचार देश से चला भी गया तो हमारा इतना फर्ज तो बनता है कि चौक-चौराहों में उसकी प्रतिमा स्थापित हो जाए। गलियों का नामकरण ‘भ्रष्टाचार’ के नाम पर हो जाए। तब कहीं जाकर हमारी आने वाली पीढ़ी, भ्रष्टाचार को समझ पाएगी। इतिहास में दर्जनों वाकिये दर्ज होते हैं, लेकिन कितने ऐसे होते हैं, जो गुलिस्तां में शामिल होते हैं ? हालांकि, भ्रष्टाचार ने इतना नाम कमा लिया है और देश के हर जेहन में इस कदर समा गया है, ऐसे हालात में भ्रष्टाचार का इतना हक तो बनता है कि उसे इतनी बेदर्दी से बिदा न किया जाए। 
वैसे भी बरसों का साथ, एकबारगी नहीं छोड़ना चाहिए, ऐसा हम कहते-सुनते आ रहे हैं। कई दशकों से भ्रष्टाचार भी हमारी जिंदगी का हिस्सा रहा है, इसे बेरूखी से रूखसत नहीं करना चाहिए। भ्रष्टाचार ने अपने अधिकारों के लिए सोई जनता को जगाया है, इसके बाद उसे इतना अभयदान मिलना चाहिए और उसकी छह दशक की सेवा के लिए हमें देश को उसे समर्पित कर देना चाहिए। ये तो मैंने सूझा दिया, अब अंतिम निर्णय तो जनता-जनार्दन, अन्ना टीम और सरकार को ही लेना है। देखते हैं, आगे होता है, क्या ?


राजकुमार साहू
लेखक व्यंग्य लिखते हैं।

जांजगीर, छत्तीसगढ़
मोबा . - 098934-94714
        

Views: 279

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service