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ख़्वाबों के रेशमी धागों से .......

ख़्वाबों के रेशमी धागों से .......

कितना बेतरतीब सा लगता है
आसमान का वो हिस्सा
जो बुना था हमने
मोहब्बत के अहसासों से
ख़्वाबों के रेशमी धागों से
ढक गया है आज वो
कुछ अजीब से अजाबों से
शफ़क़ के रंग
बड़े दर्दीले नज़र आते हैं
बेशर्म अब्र भी
कुछ हठीले नज़र आते हैं
उल्फ़त की रहगुज़र पर शज़र
कुछ अफ़सुर्दा से नज़र आते हैं
हाँ मगर
गुजरी हुई रहगुज़र के किनारों पर
लम्हों के मकानों में
सुलगते अरमान
हरे नज़र आते हैं
क्यूँ जीते हैं ये लम्हे आख़िर
रूहानी अफसानों के
मुर्दा मकानों में
फिर भी
जीती है मोहब्बत
इन्हीं लम्हों के शानों पर
साअ'तों की कबाओं में
कभी दुआओं में
तो कभी बददुआओं में
जाने
किसकी नज़र की आतिश से
जल गया वो आसमान
बुना था हमने जो
मोहब्बत के अहसासों से
ख़्वाबों के रेशमी धागों से

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on August 11, 2020 at 5:56pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार। आदरणीय कम्प्यूटर ठीक न होने के कारण प्रत्युतर में विलम्ब हुआ, दिल से क्षमा चाहूँगा।

Comment by नाथ सोनांचली on July 11, 2020 at 12:37pm

आद सुशील सरना जी सादर अभिवादन। बढ़िया रचना सृजित किया है आपने बधाई स्वीकार कीजिये

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