वाराणसी की प्रसिद्ध साहित्यिक संस्था " परिवर्तन " की ७४ वीं गोष्ठी में पढ़ी गयी मेरी एक ग़ज़ल !
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हार्दिक आभार श्री राकेश जी | लिखना और उसे मंच पर पढना दो अलग अलग पहलू है फिर भी प्रयास जारी है आप सबका स्नेह मिलता रहे सफलता ज़रूर मिलेगी !!
Bahut khub Arun ji, Prastuti ka Lahja bhi bahut umda hai, "chal ke aayin hai meelo se lahare, ghat ki seedhiya dhone do".... Vah vah!!!
आज बातों का असर होता नहीं
मुझको दो चार जादू टोने दो
बहुत ऊँचा शेर है
बहुत ही ऊँचा
हर लिहाज से जिंदाबाद
waah waah kya baat hai
बहुत प्रभावी पाठ. ऐसे अवसरों और प्रयासों से साहित्यिक चेतना समृद्ध होती है.
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ ... .
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