आपकी प्रतिक्रयाये मार्ग दर्शी ही होती है i आपके परिहास ने भी मुस्कराने पर मजबूर किया i अन्वेषण को यदि मैं ग़ज़ल मानता तो शायद वह बिना मतले की ग़ज़ल होती i मैं हिंदी का विद्यार्थी हूँ i मेरे शिक्षण काल में हिंदी में गज़लों का इतना प्रचार प्रसार नहीं था i परन्तु अब तो लोग बस गजल ही लिखते है i मेरी रूचि छंदों में है i कुछ गज़ले भी समय के प्रवाह के साथ शायद आपको देखने को मिले i
कौन पूंछता इन फूलो को सौरभ अगर नहीं होता i
देव तरसते रहते लेकिन पूजन स्यात नहीं होता ii सद्मरचित
aaderneey saurabh jee ..aap jaisee sakhsiyat se mitrata ka avsar paakar main dhny manta hoon swam ko ..aapka margdarshan mujhe mila ..main prayas kar raha hoon kee kuchh theek likhoon .barshon se likh raha tha par jaane kya likh raha tha ..itne niyam hote hain kabhee pata hee na tha ..ab mujhe lag raha hai mere prayas ko ek disha milegee ..saadar pranam ke sath
आदरनीय सौरभ जी ....अभी शशी पुरवार जी की रचना पर आपकी समीक्षा पढी ..ग़ज़ल की बारीकियों को जाने इया इतना अच्छा अवसर पहली बार मिला ..अभी ग़ज़ल की कक्षा और ग़ज़ल की बातें के माध्यम से तिलक जी और वीनस जी से से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ..अभी ३६ महोत्सव में मेरी ग़ज़ल पर आपने कुछ और कसावट की बात की ..मैं चाहता हूँ जैसे आपने शशी जी की रचना समीक्षा की है मुझे भी बारीकियों से परिचित कराएं..मैं दिल से ग़ज़ल सीखना चाहता हूँ और आपकी ये मदद मैं कभी नहीं भूलोंगा ..और क्या भैविस्य में भी मैं आपसे इस तरह की बात करने या पूछने की गुस्ताखी कर सकता हूँ की नहीं ...
सौरभ जी बहुत बहुत आभार.....किन्तु शिल्प के सन्दर्भ में मै आपसे कुछ स्पष्ट करना चाहता हूँ आप जिसे मनहरण घनाक्षरी कह रहे हैं वस्तुतः वह मनहरण घनाक्षरी न होकर आशुतोष गणात्मक घनाक्षरी छन्द है जो मेरे द्वारा किया गया घनाक्षरी में नूतन प्रयोग है और जिसे काव्याचार्य अशोक पाण्डे 'अशोक' जी ने 'आशुतोष गणात्मक घनाक्षरी छन्द' नाम से व्यवहृत किया है जिसका शिल्प इस प्रकार है 'रगण जगण' की ५ आवृत्तियों के बाद एक गुरु......अतः आपसे पुनः निवेदन है की इस शिल्प की कसौटी पर इसे कस कर तब निर्णय कीजिये.......पुनः पुनः धन्यवाद और आभार
"पंच सब टंच" पर आपकी सार्थक प्रतिक्रिया हेतु आभार. स्वीकार है.कृपया स्वीकारोक्ति भी सहृदयता से ग्रहण करें: मैं कोई शब्द साधक नहीं हूँ, न मुझे छंद काव्य कविता की गति आदि का ज्ञान है. जब रह नहीं पाता तो छठे चौमासे अपना असंतोष व्यक्त कर देता हूँ- पर उसपर भी जब आप जैसे मर्मज्ञों की सराहना मिलती है, तो गर्व नहीं, संतोष प्राप्त होता है. प्रस्तुतियां पठनीयता की दृष्टिसे नहीं, मंच समझ कर ही करता रहा हूँ, आशा है आप कृपा बनाये रखेंगे. मार्ग दर्शन का भी आभार!
सलोने पाँव की थपथप, किलकती तोतली बोली.. तुझे ऐ ज़िन्दग़ी हम दूर से पहचान लेते हैं ॥ bahut hi achchee gazal hai aur ye sher dil ko chhu gaya // mubarak ho saurabh ji
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
Saurabh Pandey's Comments
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सौरभ जी
आपकी प्रतिक्रयाये मार्ग दर्शी ही होती है i आपके परिहास ने भी मुस्कराने पर मजबूर किया i अन्वेषण को यदि मैं ग़ज़ल मानता तो शायद वह बिना मतले की ग़ज़ल होती i मैं हिंदी का विद्यार्थी हूँ i मेरे शिक्षण काल में हिंदी में गज़लों का इतना प्रचार प्रसार नहीं था i परन्तु अब तो लोग बस गजल ही लिखते है i मेरी रूचि छंदों में है i कुछ गज़ले भी समय के प्रवाह के साथ शायद आपको देखने को मिले i
कौन पूंछता इन फूलो को सौरभ अगर नहीं होता i
देव तरसते रहते लेकिन पूजन स्यात नहीं होता ii सद्मरचित
आप जैसे सहित मर्मज्ञ की अनुकूल प्रतिक्रिया ही हमारी कविता के उत्स है
सादर अभिनन्दन
मेरे छोटे से प्रयास को मान देने के लिए सादर आभार
बहुत दिनों बाद समय निकल पाया हूँ क्षमा करें
WAAAAAAAAAAAAAAAAAAH
मेरे व्यंगचित्र आपको पसंद आये, आभार !
आदरणीय सौरभ जी बडे अनुभव की बात आपने कही ! मेरा आशय भी यही था ! धन्यवाद !
aaderneey saurabh jee ..aap jaisee sakhsiyat se mitrata ka avsar paakar main dhny manta hoon swam ko ..aapka margdarshan mujhe mila ..main prayas kar raha hoon kee kuchh theek likhoon .barshon se likh raha tha par jaane kya likh raha tha ..itne niyam hote hain kabhee pata hee na tha ..ab mujhe lag raha hai mere prayas ko ek disha milegee ..saadar pranam ke sath
आदरनीय सौरभ जी ....अभी शशी पुरवार जी की रचना पर आपकी समीक्षा पढी ..ग़ज़ल की बारीकियों को जाने इया इतना अच्छा अवसर पहली बार मिला ..अभी ग़ज़ल की कक्षा और ग़ज़ल की बातें के माध्यम से तिलक जी और वीनस जी से से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ..अभी ३६ महोत्सव में मेरी ग़ज़ल पर आपने कुछ और कसावट की बात की ..मैं चाहता हूँ जैसे आपने शशी जी की रचना समीक्षा की है मुझे भी बारीकियों से परिचित कराएं..मैं दिल से ग़ज़ल सीखना चाहता हूँ और आपकी ये मदद मैं कभी नहीं भूलोंगा ..और क्या भैविस्य में भी मैं आपसे इस तरह की बात करने या पूछने की गुस्ताखी कर सकता हूँ की नहीं ...
मेरी ग़ज़ल नीचे है
छुपी निगाह से जलवे कमल के देखते हैं
लगे न हाथ कहीं हम संभल के देखते हैं
ग़जल लिखी हमे ही हम महल मे देखते हैं
अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं
हया ने रोक दिया है कदम बढ़ाने से पर
जरा मगर मेरे हमदम पिघल के देखते हैं
कहीं किसी ने बुलाया हताश हो हमको
सभी हैं सोये जरा हम निकल के देखते हैं
तमाम जद मे घिरी है ये जिन्दगी अपनी
जरा अभी गुड़ियों सा मचल के देखते हैं
हमें बताने लगा जग जवान हो तुम अब
अभी ढलान से पर हम फिसल के देखते हैं
कभी नहीं मुझे भाया हसीन हो रुसवा
खिला गुलाब शराबी मसल के देखते हैं
अभी दिमाग मे बचपन मचल रहा अपने
किसी खिलोने से हम भी बहल के देखते हैं
हयात जब से मशीनी हुई लगे डर पर
चलो ए आशु जरा हम बदल के देखते हैं
आदरणीय, आपका स्नेह बना रहे...हार्दिक धन्यवाद आपका...
सौरभ जी बहुत बहुत आभार.....किन्तु शिल्प के सन्दर्भ में मै आपसे कुछ स्पष्ट करना चाहता हूँ आप जिसे मनहरण घनाक्षरी कह रहे हैं वस्तुतः वह मनहरण घनाक्षरी न होकर आशुतोष गणात्मक घनाक्षरी छन्द है जो मेरे द्वारा किया गया घनाक्षरी में नूतन प्रयोग है और जिसे काव्याचार्य अशोक पाण्डे 'अशोक' जी ने 'आशुतोष गणात्मक घनाक्षरी छन्द' नाम से व्यवहृत किया है जिसका शिल्प इस प्रकार है 'रगण जगण' की ५ आवृत्तियों के बाद एक गुरु......अतः आपसे पुनः निवेदन है की इस शिल्प की कसौटी पर इसे कस कर तब निर्णय कीजिये.......पुनः पुनः धन्यवाद और आभार
respected sir,,
sadar pranam
aapki sakaratmak pratikriya ke liye aapka bahut-bahut aabhar..aapse nivedan hai ki aap yun hi sneh dristi evm aashirvad banaye rakhiyega..aabharie rahungi.
श्रद्धेय सौरभजी,
"पंच सब टंच" पर आपकी सार्थक प्रतिक्रिया हेतु आभार. स्वीकार है.कृपया स्वीकारोक्ति भी सहृदयता से ग्रहण करें: मैं कोई शब्द साधक नहीं हूँ, न मुझे छंद काव्य कविता की गति आदि का ज्ञान है. जब रह नहीं पाता तो छठे चौमासे अपना असंतोष व्यक्त कर देता हूँ- पर उसपर भी जब आप जैसे मर्मज्ञों की सराहना मिलती है, तो गर्व नहीं, संतोष प्राप्त होता है. प्रस्तुतियां पठनीयता की दृष्टिसे नहीं, मंच समझ कर ही करता रहा हूँ, आशा है आप कृपा बनाये रखेंगे. मार्ग दर्शन का भी आभार!
abhaar saurabh ji ,aapse baat karna chah rahe the mee, bhi send nahi hua .
आपने मुझे मित्र मान कर बहुत मान दिया है,इसके लिए आपका हृदयातल से आभार!
सादर
आये आपके घर खुशियों की डोली ,हमारी तरफ से आपको हैप्पी होली .
आदरणीय धन्यवाद ,
आपकी हौसला अफजाई मेरी कविता के पौधे में खाद का काम कर रही हैं . एक बार फिर धन्यवाद"
"आदरणीय, श्री सौरभ पाण्डे जी, जी गुरूवर जी, कम्पूटर ज्ञान कम होने के कारण भूल हो जाती है। क्षमा चाहता हूं।"
आदरणीय सौरभ जी आपकी ग़ज़ल के क्या कहने . आप समय समय पर मेरी रचनाओं पर टिप्पड़ी कर के मेरी को ताकत देते हैं। ऐसे ही निरंतर उत्साह बढ़ाते रहिएगा। धन्यवाद।
सलोने पाँव की थपथप, किलकती तोतली बोली..
तुझे ऐ ज़िन्दग़ी हम दूर से पहचान लेते हैं ॥ bahut hi achchee gazal hai aur ye sher dil ko chhu gaya // mubarak ho saurabh ji
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